सिटी तमाशा
समाजवादी पार्टी का शासन सपाइयों की गुण्डागर्दी के लिए कुख्यात रहा है. उसके कई सांसद, विधायक, और ज्यादातर छुटभैये नेता तक अपने को कानून से ऊपर मानते
रहे. थाने में इंस्पेकटर का गिरेबां पकड़ने, दफ्तर
में अफसरों को पीटने, चुंगी में तोड़फोड़
मचाने वाले सपाइयों को उनके बड़े नेताओं से कभी डांटने या समझाने की कोशिश नहीं की.
वे इनकार की मुद्रा में रहते थे कि ऐसा नहीं होता. मुलायम कभी-कभार अपने
मंत्रियों-विधायकों को चेतावनी दे दिया करते थे.
भाजपा नेताओं ने विधान सभा चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाया और प्रदेश में
बदलाव लाने का, गुण्डागर्दी दूर
करने का, व्यवहार में शुचिता
लाने का वादा किया. प्रचण्ड बहुमत से भाजपा की सरकार बनने के बाद सबने परिवर्तन की
उम्मीद की. कार्य-संस्कृति बदलने में, शासन का फर्क दिखने
में कुछ समय तो लगता ही है. लेकिन सत्ताधारियों के आचरण में भी अब तक कोई परिवर्तन
नहीं दिख रहा. कुछ सांसदों, कुछ मंत्रियों और कई
विधायकों के आचरण को देख कर लग ही नहीं रहा कि सपा की सरकार चली गयी है.
कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी के गनर की जिद से लोहिया संस्थान की एमआरआई मशीन
खराब हो गयी, पचास लाख से ज्यादा
का नुकसान हुआ, मरीजों की जांच ठप
हो गयी. तब हमने सोचा कि भाजपा के वरिष्ठ मंत्री हैं, जनता से, खासकर मरीजों से जरूर
माफी मांगेंगे. गनर पुराने बददिमाग हैं लेकिन वे तो परिवर्तन लाने वाली टीम के
वरिष्ठ सदस्य हैं. मरीजों को उनकी वजह से परेशान होना पड़ा, अस्पताल को लम्बा चूना लगा तो उन्हें निश्चय ही बहुत अफसोस
हुआ होगा. वे शायद उसकी भरपाई भी करा दें लेकिन उन्हें इसका दुख हुआ, इसका भी कोई संकेत नहीं. क्षमा और भरपाई दूर की बात.
बिल्कुल ताजा मामला भाजपा विधायक श्रीराम सोनकर का है. उन्होंने वन-वे में
अपनी गाड़ी गलत दिशा से लाने की जिद कर दी. होमगार्ड ने रोका तो उनके समर्थकों ने
उसकी पिटाई कर दी और गलत दिशा से ही गाड़ी ले गये. संकरी सड़क पर जाम भी लगा.
होमगार्ड वाले सीएम से ठीक ही पूछ रहे हैं कि थप्पड़ खाकर कैसे ट्रैफिक सम्भालें. सपा
सरकार में भी वे पिटते थे. कर्तव्य निभाने पर अब भी मार खा रहे हैं.
रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह को ‘बाहुबली
पूर्व विधायक’ के लोगों द्वारा धमकाने, बाराबंकी की भाजपा सांसद प्रियंका सिंह रावत की विमान में चाकू लाने की जिद, और लखनऊ के भाजपा पार्षद जितेंद्र उपाध्याय द्वारा पार्क
में पाण्डाल लगाने के लिए झूले उखाड़ने के मामले पिछले हफ्ते चर्चा में रहे. ऐसी
अराजकता पर बड़े भाजपा नेताओं और मुख्यमंत्री की चुप्पी आश्चर्य में डालती है.
बदलाव का सुखद अनुभव होता अगर भाजपा नियम-कानून तोड़ने वाले अपने
मंत्रियों-विधायकों को डांटती और जनता को हुई असुविधा के लिए उनकी ओर से क्षमा
मांगती. मुख्यमंत्री की ओर से ऐसा बयान आता तो निश्चय ही बेलगाम विधायकों, पार्षदों को शर्म आती और यह प्रवृत्ति थमती. अपनी ड्यूटी निभा रहे होमगार्ड की पिटाई करवाने वाले विधायक के खिलाफ खुद
भाजपा रिपोर्ट लिखवाती तो एक नजीर बनती. लेकिन हुआ उलटा, होमगार्ड ने जो तहरीर दी उसमें से विधायक का ही नाम हटा
दिया गया.
बातें करना, दूसरे की निंदा करना
बहुत आसान है. नेता से जनसेवक बनना, गाड़ी की बजाय दिमाग
की लाल बत्ती उतारना, सबसे पहले खुद
नियम-कानून का पालन करना आसान नहीं.
(नभाटा, 10 जून, 2017)
1 comment:
आपके उपरोक्त लेख से में पूर्णतः सहमत हूँ। जबतक ये अपने इस चरित्र में सुधार नही करेंगे, कानून और व्यवस्था का भी बुरा हाल ही रहेगा। ऐसे मंत्री, विधायक या पार्टी सदस्यों के खिलाफ तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए न कि सरकार या पार्टी का शीर्ष खामोश हो एक कोने में छुप जाये।
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