हजार और पांच सौ के नोट बंद किए जाने के बाद आम धारणा थी कि सबसे ज्यादा
नुकसान मायावती और समाजवादी पार्टी के बड़े
नेताओं का हुआ होगा. इस पर चुटकियां भी ली जाती थीं. चंद रोज पहले अचानक प्रवर्तन
निदेशालय की ओर से बताया गया कि नोटबन्दी के बाद बहुजन समाज पार्टी के बैंक खाते
में 104 करोड़ रु जमा किए गए.मायावती के भाई आनंद कुमार के खाते में इसी बीच एक
करोड़ 43 लाख जमा हुए. मीडिया में इसे बड़े खुलासे के तौर पर उछाला गया. अगले ही दिन
मुस्कराती-खिलखिलाती मायावती ने इसे बहुजन समाज से पार्टी मिले चंदे की रकम बता कर
सारे खुलासे की हवा निकाल दी. इसी के साथ उन्होंने पलट दांव भी चला. भाजपा को
चुनौती दी कि वह बताए कि आठ नवम्बर के बाद उसके और उसके बड़े नेताओं के खाते में
कितनी रकम जमा की गई?
जो भाजपाई मायावती को घेरना चाह रहे थे वे अब खिसियानी बिल्ली की तरह लग रहे
हैं. यह सवाल अब बहुत बड़ा हो गया है कि आखिर भाजपा के खाते में कितने पुराने नोट
जमा हुए? इससे भी बड़ा सवाल यह
है कि मोदी जी ने राजनीतिक दलों को क्यों छूट दे दी कि वे पुरानी करंसी में चाहे
जितनी रकम अपने खातों में जमा करें, उनसे पूछताछ नहीं की
जाएगी. वह मोदी जी जो अपनी सभाओं में गरज-गरज कर कह रहे हैं कि उन्होंने काले धन
वालों की कमर तोड़ दी है, भ्रष्टाचार पर बड़ी
चोट कर दी है, आदि-आदि, वही मोदी जी राजनीतिक दलों को मिलते भारी चंदे को सार्वजनिक
क्यों नहीं करना चाहते, जबकि वह काले धन को
संरक्षण देने का सबसे बड़ा जरिया है? राजनीतिक दलों को
मिलने वाले चंदे को यूपीए सरकार ने सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर कर दिया था.
अब मोदी सरकार भी उसी नक्शे कदम पर है. काला धन और भ्रष्टाचाचार खत्म करना है तो
राजनीतिक दलों को उस प्रक्रिया से क्यों बख्शा जाना चाहिए?
काले धन और भ्रष्टाचार का एक बड़ा स्रोत है सांसद और विधायक निधि. मोदी जी इसे
खत्म करने की मांग पर चुप क्यों हैं? बल्कि, खबर यह है कि सांसद निधि की रकम बढ़ाए जाने पर विचार हो रहा
है. मोदी जी हमारे पूरे तंत्र से भ्रष्टाचार और काला धन खत्म करना चाहते हैं. बहुत
अच्छी बात है. लेकिन जनता देख रही है कि करोड़ों की नई करंसी काला धन रखने वालों के
पास सबसे पहले पहुंची जबकि जनता सौ के नोट के लिए भी तरसती रही. आखिर यह सब इसी
सिस्टम को चलाने वालों के कारण हुआ. जनता यह भी जानती है कि सांसद और विधायक निधि
का किस तरह दुरुपयोग होता है, उसमें कितना
भ्रष्टाचार है. लेकिन कोई भी प्रधानमंत्री उसे खत्म करने का साहस नहीं कर सका. अगर
मोदी जी अन्य प्रधानमंत्रियों से अलग हैं, जैसा
कि वे खूब दावा करते हैं, तो यह काम उन्हें
जरूर करना चाहिए.
बसपा के खाते में जमा हुई रकम का आंकड़ा तो लीक कर दिया गया लेकिन भाजपा समेत
अन्य दलों के खातों में जमा हुई पुरानी करंसी के बारे में जानने का अधिकार जनता को
क्यों नहीं है? (NBT, Jan 01, 2017)
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