चुनाव की तिथियां घोषित होने के बाद राजनैतिक दलों के बैनर-पोस्टर हटा दिए गए
हैं. चौराहे और सड़कें साफ और खुली-खुली दिखने लगी हैं. सपा के पारिवारिक सत्ता संग्राम में तो बैनरों-होर्डिंगों
की बाढ़-सी आ गई थी, इतनी कि सामने से
आने वाला ट्रैफिक भी इनके कारण मुश्किल से दिखता था. राजनीतिक होर्डिंगें डिजायन
और प्रस्तुति में आंख की किरकिरी जैसी लगती हैं लेकिन पिछले दिनों कुछ रोचक और
रचनात्मक होर्डिंग दिखाई दीं. सपा के झगड़े ने नारे लिखने वालों की रचनात्मकता भी
खूब बढ़ाई.
अखिलेश को जब उनके खेमे ने सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया तो कालिदास मार्ग व
लोहिया पथ के इर्द-गिर्द कुछ होर्डिंग बोल्ड अक्षरों में ध्यान खींच रहे थे- ‘लोहा तप कुंदन हुआ’. एक तरफ मुलायम और
दूसरी तरफ अखिलेश के चेहरे थे. आम
तौर पर राजनैतिक होर्डिंग नेताओं के चेहरों और नामों से भरी रहती हैं और उन्हें पढ़
पाना भी दुष्कर होता है लेकिन यह होर्डिंग अपने डिजायन और नारे के कारण खास बन गई.
आप कह सकते हो कि लोहा तो तप कर कुंदन नहीं बनता लेकिन यहां सिर्फ भावना देखिए. होर्डिंग लगवाने वाला भक्त ‘बूढ़े नेता जी’ को यह संदेश दे रहा है
कि उसके युवा नेता ‘कुंदन’ बन गए हैं, अब आप संरक्षक ही
ठीक! इस समर्थक के मन में शायद लोहे को प्रतीक बनाने के पीछे मुलायम के लिए
बहु-प्रचलित यह नारा रहा हो- ‘मन से हैं मुलायम और
इरादे लोहा’, खैर.
अखिलेश के समर्थन में एक और होर्डिंग कह रही थी- ‘फिर सौंप दो उजाले के हाथ कुर्सी’.
पृष्ठभूमि
में बिजली के लट्टू लटक रहे थे. अखिलेश को ‘उजाला’ बताया जा रहा था और साथ ही यह भी कि उनके राज में बिजली की कोई कमी नहीं रही.
सच-झूठ का सवाल क्या उठाना, हम तो यह कहना चाह
रहे कि नारा नए अंदाज का ध्यान खींचू था. एक और होर्डिंग बहुत बड़े अक्षरों में सिर्फ
‘बधाई’ कह रही थी. उसमें किसी का फोटो नहीं था लेकिन साफ है कि उस
मौके पर बधाई न शिवपाल को दी जा सकती थी, न
मुलायम को!
सपा के झग़ड़े के चरम दौर में प्रधानमंत्री की भी चुनावी रैली लखनऊ में हुई.
मोदी जी एक नारा उछाल गए- ‘मैं कहता हूँ
भ्रष्टाचार मिटाओ, वे कहते हैं मोदी को
हटाओ’. पता नहीं उनके जेहन में कहीं
साठ-सत्तर के दशक का इंदिरा गांधी का
लोकप्रिय नारा था या वे अपनी रौ में ऐसा
कह गए, लेकिन सोशल साइटों पर लोग फौरन
सक्रिय हो गए कि जैसे इंदिरा गांधी ने देश से गरीबी हटा दी थी, वैसे ही मोदी जी भ्रष्टाचार खत्म करेंगे. मोदी के आलोचकों ने याद दिलाया कि इंदिरा गांधी ने तब नारा
दिया था- ‘मैं कहती हूँ गरीबी
मिटाओ, वे कहते हैं इंदिरा हटाओ’. सब जानते हैं कि गरीबी हटाओ का नारा खोखला साबित हुआ था.
श्रीमती गांधी के आलोचकों ने तब नारे को बदल कर “गरीब मिटाओ’ कर दिया था. मोदी जी का नारा क्या रूप लेगा, वक्त ही बताएगा.
चुनाव सिर पर हैं तो नारों और जुमलों की भरमार होगी. गीत-संगीत भी सुनाई
देंगे.आचार संहिता के कारण होर्डिंग नहीं दिखेंगे लेकिन जनता तक लुभावने नारे
पहुंचाने के लिए राजनैतिक दलों के पास उपायों की कमी नहीं. (NBT, Jan 08, 2017)
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