Sunday, January 08, 2017

नोटबंदी ने साबित किया कि नेता जनता को जानते ही नहीं


नोटबंदी के केंद्र सरकार के फैसले ने इस बात पर भी मोहर लगा दी कि हमारे नेता इस विशाल देश की असली जनता को कतई नहीं जानते. अखिल भारतीय राजनीतिक दल हों या क्षेत्रीय पार्टियां, उनके नेता जनता से पूरी तरह कट गए हैं. वे दलितों के घर रात बिताने और खाने खाने का नाटक चाहे जितना करें, गरीब-गुरबे कैसे जिंदगी बिताते हैं, इसका उन्हें अहसास तक नहीं.
नोटबंदी ने आम भारतीय जन को नाकों चने चबवा दिए, जबकि मकसद यह नहीं था. बताया गया मकसद यह है कि इससे काला धन बेकार हो जाएगा और जाली नोटों पर भी रोक लग जाएगी, साथ ही, आतंकी-आपराधिक गतिविधियां भी बंद होंगी. अच्ची असर का पता तो बाद में चलेगा अभी इसका सबसे बुरा असर जो हुआ है उसकी कल्पना सरकार के नेताओं ने नहीं की थी. वजह यह कि उन्हें सीधी-सादी जनता के बारे में कुछ पता ही नहीं. वे खुश थे कि देश की अधिसंख्य जनता को बैंकिंग के दायरे में ले आया गया है, इसलिए उस पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा.
हुआ ठीक उलटा. नोटबंदी की मार सबसे ज्यादा आम जनता पर पर पड़ी. इस देश का सामान्य आदमी आज भी अपनी छोटी-बड़ी बचत नकदी के रूप में घर में छुपा कर रखता है. एक बड़ी आबादी का आज भी बैंक खाता नहीं है और जिनका है भी उनमें ज्यादातर बैंकों पर उतना भरोसा नहीं करते. ग्रामीण जनता तो अपनी बचत घर में रखती ही है, शहरी परिवार भी बचत का बड़ा भाग आपातकालीन जरूरतों के लिए घर में रखते हैं. नोटबंदी के फैसले से ये सारे लोग बहुत परेशान हुए और अब भी हैं. इस वर्ग में डेबिट-क्रेडिट कार्ड का चलन भी बहुत कम है. 
अगर केंद्र सरकार में बैठे नेताओं को आम जनता की जीवन-स्थितियों की समझ होती तो वह पहले पर्याप्त मात्रा में छोटे नोटों की आपूर्ति सुनिश्चित करती. सौ-सौ के पर्याप्त नोटों की बजाय दो हजार वाले नोट बैंकों में भेजे गए, जो आसानी से मिल रहे हैं लेकिन बाजार में छुट्टे न होने के कारण चल नहीं पा रहे. एटीएम हों या बैंक, भीड़ सौ-सौ के नोटों के लिए ही मारा-मारी मचा रही है. फैसले के दस दिन बाद तक पांच सौ के नए नोट भी बैंकों तक नहीं पहुंच पाए हैं.  
दूसरी बात यह कि काला धन रखने वालों के पास मजदूरों-गरीबों के रूप में बड़ी बेरोजगार फौज मौजूद है, जिसे उन्होंने अपने पुराने काले नोट बदलवाने के लिए बैंकों की लाइन में खड़ा कर दिया है. कहीं तो सैकड़ों की संख्या में आईडी बैंकों के उच्चाधिकारियों तक पहुंचा कर पुराने काले को नए काले में बदला जा रहा है. जन-धन खाते तो इसी के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं. इस तरह बहुत सारा काला धन अब भी काला बना रहेगा.

केंद्र सरकार की मंशा साफ रही होगी लेकिन फैसले के पीछे जल्दबाजी साफ दिखाई देती है. यह अकारण नहीं कि सारी परेशानी आम जनता को है, प्रभुत्व वर्ग को कोई चिंता या परेशानी नहीं दिखती. फैसले से पहले पूरी तैयारी नहीं होने के कारण काले धन पर पूरा अंकुश नहीं लग पा रहा. यही वजह है कि आए दिन रिजर्व बैंक को नए निर्देश जारी करने पड़ रहे हैं.  (NBT, 20-11-2016)

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