हमारे यहां बहस-मुबाहिसे के मुद्दे तेजी से बदलते रहते हैं. अक्सर यह जानना
कठिन होता है कि चुनाव आते-आते जनता के दिल-दिमाग में कौन सा मुद्दा हावी रहेगा. आठ नवम्बर तक गुलाम कश्मीर में भारतीय फौजों की सर्जिकल
स्ट्राइक्स बहस का मुद्दा थी. लग रहा था कि राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत यह मुद्दा
यूपी के चुनाव तक खिंचेगा और भाजपा को इसका
फायदा होगा. आठ नवम्बर की शाम प्रधानमंत्री ने हजार और पांच सौ के नोटों को बंद
करने का ऐलान क्या किया, पूरे देश का माहौल ही
बदल गया. नोटबंदी के बाद नए और छोटे नोटों की भारी किल्लत से छिड़ी बहस खत्म होना
तो दूर, मंद भी नहीं पड़ रही.
शुरू में लग रहा था कि नरेंद्र मोदी ने भाजपा के पक्ष में एक और जोरदार मुद्दा
जुटा लिया है. काले धन पर रोक और जाली नोटों पर अंकुश से आतंकवादियों की आर्थिक
रीढ़ तोड़ने का जबरदस्त प्रचार करके मोदी अपनी पार्टी को चुनावों की नजर से बहुत आगे
ले गए हैं. मगर अब सवा महीने बाद माहौल कुछ दूसरा
नजर आता है.
बैंकों में और एटीएम के बाहर लगी लम्बी लाइनें और अपना ही धन न निकाल
पाने की कुण्ठा से जनता का धैर्य चुक रहा है. पहले जो लोग घण्टों लाइन में खड़े
होने को सीमा पर तैनात जवानों की देशभक्ति से जोड़ कर देख रहे थे, वे भी अब सवाल करने लगे हैं कि करोड़ों रु की नई करंसी काला
धन वालों के पास कैसे पहुंच रही है? चंद मामले पकड़ में आ
रहे हैं, लेकिन यह तो साबित
हो ही रहा है कि जिनके पास काला धन था वे आसानी से नई करंसी में भी काला धन जुटा
ले रहे हैं, जबकि आम जनता दो-चार
हजार रु भी बैंक से निकालने के लिए घंटों लाइन लगाती है और अक्सर निराश होती है.
नोटबंदी का समर्थन करने वाले भी मानने लगे हैं कि मोदी सरकार ने इसके लिए अच्छी
तैयारी नहीं की और काला धन पर रोक कम ही लग पा रही है. मामला भाजपा के खिलाफ जाता
भी लग रहा है.
लेकिन निश्चित रूप से आज हम नहीं कह सकते कि जब फरवरी-मार्च में चुनाव होंगे तब
भी यह मुद्दा जनता के जेहन में होगा. नकदी का संकट इसी तरह बना रहा तो न केवल
मुद्दा बहुत गरम होगा बल्कि भाजपा को नुकसान भी पहुंचाएगा, लेकिन अगर संकट खत्म हो गया तो जनता इस मुद्दे को भूल चुकी
होगी. तब कुछ और ही मुद्दा गरम होगा. हम बहुत जल्द मुद्दे बनाते और भूलते हैं. इसी
तेजी से राजनीतिक दलों का मोल बढ़ता घटता रहता है.
सभी पार्टियों को यह बात बहुत अच्छी तरह मालूम है. भाजपा ने तो अपने लाभ वाले
मुद्दों को जनता के बीच गरम बनाए रखने के लिए नई रणनीति बना ली है. उसने कोई
देढ़-दो हजार मोटर साइकिलें खरीदी हैं और अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित कर रही है कि वे घर-घर जाकर लोगों
से उन मुद्दों की चर्चा करते रहें जो मोदी सरकार ने ‘देश हित’ में उठाए हैं. इस
तरह वह सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक्स और नोटबंदी के ‘साहसिक’ फैसलों का लाभ उठाने के लिए कमर कस रही है, जबकि उसके विरोधी दल फिलहाल यह आरोप लगाने में व्यस्त हैं कि
भाजपा ने ये मोटर साइकिलें काले धन से खरीदी हैं.(NBT, Dec18, 2016)
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