नवीन जोशी
अभी-अभी अपनी स्थापना की स्वर्ण जयंती मना चुकी समाजवादी पार्टी अगर आज टूटी
है (सिर्फ औपचारिकता ही बाकी है) तो इसकी
वजह अखिलेश और शिवपाल का झगड़ा ही है.
आखिर, अखिलेश के अपने चाचा
से रिश्ते क्यों और कब से बिगड़े? अपने जिस भाई को
मुलायम सबसे ज्यादा मानते हैं, उसी चाचा शिवपाल से
अखिलेश की कबसे ठनने लगी?
अखिलेश के बचपन के पन्ने बताते हैं जब पिता मुलायम राजनीति में घनघोर व्यस्त
रहा करते थे तो अखिलेश की घर और स्कूल की पढ़ाई की देख-रेख शिवपाल और उनकी पत्नी
सरला ही करती थीं. राजनीति के बीहड़ों में लड़ते हुए जब मुलायम सिंह की जान तक को
खतरा था तो उन्होंने तब अपने एक मात्र पुत्र अखिलेश को सुरक्षा कारणों से स्कूल से
निकाल कर घर बैठा दिया था. 1980 से 1982 के उन दो सालों में चाची सरला उसे घर
पढ़ाया करती थीं. अखिलेश की मां बीमार रहती थीं.
सन 1983 में जब अखिलेश को धौलपुर मिलिट्री स्कूल में भर्ती कराया गया तो चाचा
शिवपाल ही उन्हें इटावा से वहां लेकर गए थे. भर्ती की सारी औपचारिकताएं शिवपाल ने
पूरी कीं क्योंकि मुलायम को फुर्सत नहीं होती थी. स्कूल में अखिलेश के गार्जियन
शिवपाल और सरला यादव थे. चाचा-चाची ही अखिलेश से मिलने धौलपुर जाया करते थे.
बीते सितम्बर में जब चाचा-भतीजे का झगड़ा सड़क तक आया तब मुलायम ने कहा भी था कि
अखिलेश को शिवपाल ने ही पाला है. साथ में उन्होंने यह भी जोड़ा था कि समाजवादी
पार्टी बनाने में शिवपाल का बहुत बड़ा योगदान है. तब मुलायम यही बताने की कोशिश कर
रहे थे कि अखिलेश और शिवपाल के रिश्ते कितने पुराने और मजबूत हैं और यह भी कि
शिवपाल पार्टी के लिए कितने जरूरी हैं.
अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद मुलायम न चाचा-भतीजे के रिश्ते बचा सके, न पार्टी. मुलायम
के लिए यह बहुत कष्टकारी समय होगा.
जब शिवपाल समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में मुलायम के कंधे से कंधा मिला कर चल
रहे थे तब मैसूर के इंजीनियरिंग कॉलेज में अखिलेश की दिलचस्पी पढ़ाई के अलावा सिर्फ
खेल और कुछ फिल्मों में थी. समाजवादी पार्टी के गठन की खबर उन्हें अखबारों से देखी
थी. राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी न थी. मैसूर से इंजीनीयरिंग में ग्रेजुएशन करके
वे पोस्ट ग्रेजुएशन करने आस्ट्रेलिया चले गए.
पिता का भी कोई इरादा अखिलेश को राजनीति में लाने का न था. समाजवादी नेता के तौर
पर में वे राजनीति में वंशवाद के सख्त खिलाफ थे. अखिलेश पढ़ाई पूरी करके आस्ट्रेलिया
से लौटे और 1999 में “गर्ल फ्रेण्ड’ डिम्पल से उनकी शादी कर दी गई. वे हनीमून के लिए
गए ही थे कि पिता मुलायम ने फोन करके बताया कि तुम्हें चुनाव लड़ना है. यह बिल्कुल
अचानक हुआ और पिता की खाली की गई कन्नौज सीट से चुनाव जीत कर वे लोक सभा पहुंच गए.
उसी के बाद अखिलेश ने राजनीति और समाजवादी पार्टी की गतिविधियों में दिलचस्पी
लेना शुरू किया. वरिष्ठ पत्रकार सुनीत ऐरन ने अखिलेश यादव पर लिखी अपनी पुस्तक में
एक जगह अखिलेश को यह कहते उद्धृत किया है-“मैं राजनीतिक पिता का बेटा न होता तो आज
फौजी होता.”
शिवपाल तब तक समाजवादी पार्टी में बहुत प्रभावशाली हो चुके थे. मुलायम अपने इस
सबसे छोटे भाई पर बहुत भरोसा करते रहे. उन्हें अघोषित रूप से अपना वारिस मानते रहे.
अखिलेश चाचा शिवपाल का बहुत सम्मान करते थे. अंदरखाने भी किसी खटास के लक्षण नहीं
दिखते थे.
2009 के लोक सभा चुनाव में सपा के खराब प्रदर्शन के बाद अखिलेश ने समाजवादी
पार्टी में ज्यादा रुचि लेनी शुरू की. पार्टी की छवि बदलने की छोटी-छोटी कोशिशें
उन्होंने करनी चाहीं. तब शिवपाल यादव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे.
अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों को राजनीति में प्रश्रय देने और कानून खराब कानून
व्यवस्था के लिए समाजवादी पार्टी की सरकार की हमेशा आलोचना होती रही है. अखिलेश ने
इस छवि से निजात पानी चाही. राजनीति में बहुत अनुभवी नहीं होने के बावजूद एक जुनून
उनमें था. मुलायम सिंह ने जो भी सोचा हो, उसी
साल (2009) पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद शिवपाल से लेकर अखिलेश को दे दिया.
अखिलेश पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में खूब सक्रिय हुए. उन्होंने अपनी
युवा टीम खड़ी की और सपा का रूपांतरण शुरू किया. शिवपाल ने कोई आपत्ति या नाराजगी
तब व्यक्त नहीं की लेकिन इसे अखिलेश के साथ उनके रिश्तों में खटास पैदा होने की
शुरुआत मान सकते हैं.
अखिलेश लगातार सक्रिय और मजबूत होते गए. अमर सिंह को भी अनेक कारणों से
उन्होंने पसंद नहीं किया.शिवपाल के प्रति भी शायद तभी से राय बदलनी शुरू हुई हो.
2012 के विधान सभा चुनावों में अखिलेश
की खूब चली. डी पी यादव को कैसे उन्होंने किनारे किया यह किस्सा खूब प्रचलित है. तभी
से उनकी एक अलग और साफ-सुथरी छवि बननी शुरू हुई. यह शिवपाल और मुलायम की छवि से
भिन्न थी.
2012 के चुनाव में सपा को विधान सभा में पूर्ण बहुमत मिलने का श्रेय अखिलेश के
हिस्से आया और बिल्कुल अचानक ही मुलायम ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाना तय किया.
शिवपाल ने मुलायम के इस प्रस्ताव का सख्त विरोध किया. मुलायम ने कैसे उन्हें मनाया और साढ़े चार साल कैसे सरकार में खीचतान चली, यह
सब ताजा इतिहास है.
चाचा-भतीजे के बचपन से चले आ रहे मीठे रिश्ते एक बार कड़ुवे हुए तो फिर बात
बिगड़ती चली गई. (BBC, Dec 31, 2016)
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