तो, चुनाव
आयोग सो रहा था और अब जाग गया है!
उत्तर
प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, पूर्व
मुख्यमंत्री और बसपा अध्यक्ष मायावती, केंद्रीय मंत्री
मेनका गांधी और सपा नेता एवं पूर्व मंत्री आजम खान को दो से तीन दिन के लिए चुनाव
प्रचार करने से रोकने के चुनाव आयोग के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लगता
है कि आयोग अब जाग गया है. इसलिए इस मामले में अब और कोई आदेश देने की जरूरत नहीं
है.
सुप्रीम
कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग के एक ‘सक्षम प्रतिनिधि’ को
भी तलब किया था ताकि चुनाव आयोग की शक्तियों पर विचार करते समय वह वहाँ मौजूद रहे.
एक दिन पहले एक एनआरई की पीआईएल पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा था कि धर्म
और जाति के आधार पर वोट मांग कर आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर क्या
कार्रवाई की जा रही है. तब आयोग की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि उसके अधिकार
सीमित हैं. वह सिर्फ नोटिस देकर जवाब मांग सकता है और एफआईआर दर्ज करा सकता है.
तभी मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने तय किया था कि मंगलवार
को वह इसी बारे में सुनवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट के यह कहते ही कि वह
अगले दिन चुनाव आयोग की शक्तियों पर विचार करेगा, आयोग
को अपनी शक्तियों की याद आ गयी. उसने उक्त चार नेताओं पर आचार संहिता उल्लंघन के
मामलों में कार्रवाई कर दी. योगी और आजम खान को 72 घण्टे यानी तीन दिन और मेनका
तथा मायावती को 48 घण्टे यानी दो दिन के लिए चुनाव प्रचार करने से रोक दिया.
इसी से साबित हो जाता है कि उसके पास
पर्याप्त शक्तियाँ हैं और वह चाहे तो आचार संहिता उल्लंघन के मामलों पर कड़ा रुख
अपना सकता है, बशर्ते कि वह सोया हुआ न
हो. चुनाव आयोग सोया हुआ था या जानबूझ कर आंखें बंद किये हुए था, यह तो वही बता सकता है.
टीएन शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त
रहते साबित कर दिया था कि चुनाव आयोग क्या-क्या कर सकता है,
बशर्ते कि उसकी आंखें खुली हों और वह किसी दवाब में न आये. देश में
जब सत्रहवीं लोक सभा के चुनाव हो रहे हों और आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतें
लगातार आ रही हों, तब चुनाव आयोग आंखें कैसे मूँदे रह सकता
है?
मामला सिर्फछुटभैय्ये नेताओं और
प्रत्याशियों की ‘जुबान फिसलने’ या जानबूझ कर जातीय-धार्मिक अपीलें करने या व्यक्तिगत अशालीन टिप्पणियाँ
करने का नहीं था. मामला था संविधान की शपथ लेकर महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे
जिम्मेदार नेताओं द्वारा खुले आम आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाने का.
देखिए, देश
के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री पद पर बैठे ‘गोरक्षपीठाधीश्वर’
आदित्यनाथ योगी क्या कह रहे थे- ‘उन्हें अली
प्यारे हैं तो हमें बजरंगबली प्यारे हैं.’ और ‘हरे वायरस’ से सावधान रहना है. चार बार राज्य की
मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती कहती है- ‘मुसलमान अपने वोट का
बंटवारा न करें और सिर्फ गठबंधन के उम्मीदवार को ही वोट दें.’ मेनका गांधी एक मुस्लिम बहुल गाँव में साफ-साफ कहती हैं- ‘जीत तो मैं रही हूँ लेकिन मुसलमानों के वोट के बिना जीती तो ऐसे में दिल
खट्टा हो जाता है. फिर आपको मेरी जरूरत पड़ेगी तो मैं सोचूंगी कि रहने दो...’ और आजम खान तो विवादास्पद बयानों
के लिए जाने ही जाते हैं. ‘खाकी अंडरवियर’ वाली टिप्पणी अमर सिंह के लिए हो या जया प्रदा के लिए, है तो अभद्र ही और अवांछित.
आचार संहिता उल्लंघन के इन मामलों का
चुनाव आयोग को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए था. वह तो नहीं हुआ लेकिन जब आयोग के पास
शिकायतें पहुँचाई गईं तब भी वह टाल-मटोल वाले अंदाज में रहा. किसी मामले में वह
नोटिस जारी करके बैठा रहा तो किसी में नोटिस का जवाब न आने पर भी चुप लगाए रहा.
इससे पहले भी उसकी ‘सुस्ती’ या ‘नींद’ के लक्षण दिखाई दे
रहे थे.
आचार संहिता लागू होने के बाद भी
प्रधानमंत्री ने उपग्रह मार गिराने की क्षमता के सफल प्रदर्शन की घोषणा करने के
लिए राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया. चुनाव आयोग से इसकी पूर्व अनुमति भी नहीं
ली और शिकायत करने पर इसे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना. आयोग के इस निर्णय पर
सवाल उठे. चुनावों की घोषणा के बाद ‘नमो टीवी’ लांच किया गया. उस पर जारी नरेंद्र मोदी के प्रचार पर आयोग कई दिन तक चुप
लगाए रहा. फिर उस पर ‘राजनैतिक प्रसारण’ पर रोक लगाने का फैसला हुआ भी तो बहुत देर से. अब भी ‘नमो टीवी’ विज्ञापन प्लेटफॉर्म के रूप में भाजपा और
मोदी का प्रचार कर रहा है. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने भारतीय सेना को ‘मोदी की सेना’ कहा और चौतरफा आपत्तियों के बाद चुनाव
आयोग सिर्फ उन्हें यह ‘सलाह’ दे सका कि
भविष्य में सावधान रहें.
यही नहीं,
राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठे कल्याण सिंह ने अपने को भाजपा
कार्यकर्ता बतते हुए मोदी को जिताने की अपील की. इसे आचार संहिता का उल्लंघन मानते
हुए चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा. राष्ट्रपति ने वह पत्र गृह मंत्रालय
को भेज दिया और सरकार चुप लगाकर बैठ गयी. चुनाव आयोग ने जानने की कोशिश तक नहीं की
कि उस पर क्या हुआ. ऐसे संगीन मामले में सरकार कैसे और क्यों चुप बैठी है, यह पूछने की जरूरत अब तक नहीं समझी है.
ये मामले बता रहे थे कि चुनाव आयोग,
जिस पर निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने का दायित्व है, सोया है या सोने का बहाना कर रह रहा है. इतना उनींदा हमारा चुनाव हाल के
वर्षों में नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद ही
सही, चुनाव आयोग नींद से जागा है तो उम्मीद
है कि वह फिर ऊंघने नहीं लगेगा. देश के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण चुनाव है. इसे
सम्पन्न कराने तक उसे बराबर सजग और सक्रिय रहना होगा.
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