भाजपा ने उत्तर प्रदेश में
दलित-पिछड़ा वोट बैंक में सेंध लगाने का सघन अभियान छेड़ दिया है. सपा-बसपा-रालोद के
गठबन्धन की तगड़ी चुनौती का सामना करने के लिए कई स्तरों पर काम चल रहा है.
सपा-बसपा नेतृत्व से असंतुष्ट उप-जातियों का समर्थन जुटाने की हरचंद कोशिश हो रही
है.
दलित बस्तियों में पर्चे-पोस्टर बांटे जा रहे हैं जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुम्भ में
सफाई कर्मियों के पैर धोते दिखाया गया है. इन पोस्टरों में आम्बेडकर की स्मृति से
जुड़े स्थानों की तस्वीरें भी हैं जिन्हें भाजपा सरकार संवार रही है.
पिछड़ी जाति की तुरुप चाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं ‘पिछड़ी जाति’ का तुरुप चल दिया है. उन्होंने अपनी
पिछड़ी जाति का उल्लेख करते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह सभी पिछड़ी जातियों
को ‘चोर’ कह कर उनका अपमान कर रही है.
सन 2014 के चुनावों में मोदी ने अपनी
पिछड़ी जाति का उल्लेख बार-बार किया था. उनका कोई भाषण तब ‘चायवाला’ और ‘पिछड़ी जाति’
कहे बिना पूरा नहीं होता था. इसका उद्देश्य पिछड़ी जातियों और गरीबों
से अपने को जोड़ना था. तब उन्हें पिछड़ी और दलित जातियों के अच्छे वोट मिले थे.
उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटें जिताने में इन मतदाताओं के समर्थन का बड़ा हाथ
था.
इस बार फिर यही पत्ते चले जा रहे
हैं. सपा-बसपा-रालोद के एक साथ आ जाने से भाजपा को बहुत बड़ी चुनौती मिल रही है.
पिछड़ों-दलितों-मुसलमानों के इस मजबूत वोट बैंक में सेंध लगाए बिना दिल्ली की गद्दी
दोबारा पाना आसान नहीं होगा.
दलितों के पैर धोने वाले
पोस्टर
‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’
में गुरुवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की दलित
बस्तियों में जो पर्चे-पोस्टर बंटवाए जा रहे हैं उनमें वे तस्वीरें हैं जो
प्रधानमंत्री के कुम्भ-स्नान के बाद खूब प्रचारित हुई थीं. इनमें मोदी सफाई कर्मियों और नाव
वालों के पाँव धो कर पोछ रहे हैं. आम्बेडकर की स्मृति से जुड़े इन पांच स्थलों की
फोटो भी इनमें हैं -मऊ का आम्बेडकर जन्म
स्थल, लंदन का उनका डेरा, नयी दिल्ली
का आम्बेडकर स्मारक, दीक्षा भूमि- जहां उन्होंने बौद्ध धर्म
ग्रहण किया था और दादर, मुम्बई का वाला स्मारक. भाजपा सरकार
इन्हें विकसित कर रही है.
दलितों में सफाईकर्मियों यानी
बाल्मीकियों का बड़ा समुदाय है. मोदी ने कुम्भ में उन्हें ‘कर्मयोगी’ कहकर उनके पाँव धोये थे. उनके साथ नाव
चलाने वाले मल्लाह भी थे जो पिछड़ी जातियों में आते हैं. इन पर्चों से भाजपा दोनों समुदायों
को बताना चाह रही है कि मोदी जी उनका कितना ख्याल रखते हैं.
बुधवार को सोलापुर (महाराष्ट्र) में मोदी
केभाषण को भी इसी कोण से देखना चाहिए. उन्होंने कहा- ‘कांग्रेस ने कई बार मेरी जाति को गालियाँ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उनके
नेताओं ने बार-बार मुझे और मेरी जाति को गालियां दी है. मुझे गाली दो, मेरा अपमान करो, मैं सह लूंगा. लेकिन इस बार वे और
नीचे गिर गये हैं. पूरे पिछड़े समुदाय को चोर कह रहे हैं. मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूंगा.’
मतदान अब उन क्षेत्रों की तरफ बढ़ रहा
है जहाँ ये जातियाँ, खासकर पिछड़े मतदाता
निर्णायक हैं. चंद रोज पहले उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ‘जय भीम’ कह कर दलित मतदाताओं का स्वागत किया
था. मोदी जानते हैं कब, कहां, कौन सा पत्ता चलना है.
जय भीम,
जय आम्बेडकर
अलीगढ़ की चुनाव सभा में मोदी ने अपने
भाषण की शुरुआत ‘भारत माता की जय’ और ‘जय भीम’ से की थी. अलीगढ़,
हाथरस और बुलन्दशहर के मतदाताओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने आम्बेडकर
की तारीफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और कहा कि दलितों को सपा-बसपा-रालोद गठबंधन
के झांसे में नहीं आना चाहिए जो जाति के आधार पर मतदान करने की बात करते हैं.
उन्होंने दलित मतदाताओं को लक्ष्य करके
कहा कि – ‘आपके समर्थन से यह चौकीदार
आम्बेडकर के दिखाये मार्ग पर चलने की कोशिश कर रहा है. हमारी सरकार ने बाबा साहेब
आम्बेडकर को पूरा सम्मान दिया है. उनसे जुड़े पाँच स्थानों को तीर्थ का दर्जा दिया
है. मोदी ने यह भी कहा कि आम्बेडकर महान अर्थशास्त्री, नीति-निर्माता,
लेखक और कानून-विशेषज्ञ थे. बाबा साहेब के
बनाए संविधान की ताकत यह है कि एक व्यक्ति जो समाज के वंचित, शोषित वर्ग से आया,
आज देश के राष्ट्रपति के पद पर बैठा है, ग्रामीण
और किसान परिवार से आने वाला उप-राष्ट्रपति है और एक चायवाला देश का प्रधानमंत्री
है.
मोदी की जाति पर विवाद
हुआ था
2014 के चुनाव में जब मोदी ने अपने
को पिछड़ी जाति का बताना शुरू किया था तो इस पर खूब विवाद छिड़ा था. कांग्रेस ने
पुराने दस्तावेज निकाल कर बताया था कि मोदी वास्तव में ‘घांची’ जाति के हैं जो अगड़ी जातियों में शामिल है.
सन 2002 में जब वे मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने राजनैतिक लाभ लेने के लिए अपनी जातो
को पपिछड़ी जातियों में शामिल करा दिया था.
गुजरात कांग्रेस के नेता शक्ति सिंह गोहिल ने यह आरोप लगाते हुए सन 2002 का
वह सर्कुलर भी जारी किया जिसमें ‘घांची’ जाति को ओबीसी में डालने का आदेश हुआ था.
उसी के बाद से मोदी ने अपनी पिछड़ी
जाति का मुद्दा जोर-शोर से उठाया और कहा कि कांग्रेस पिछड़ी जातियों का अपमान करती
है. उत्तर प्रदेश की चुनाव सभाओं में उन्होंने यह मुद्दा खूब उठाया और दलितों एवं
पिछड़ी जातियों के काफी वोट पाने में सफल रहे थे. इस बार वे फिर वही पत्ते खेल रहे
हैं.
उत्तर प्रदेश में दलितों और पिछड़ों
की कतिपय उप-जातियाँ बसपा और सपा नेतृत्व से नाराज हैं. जाटव पूरी तरह मायावती के
साथ हैं लेकिन पासी, बाल्मीकि समेत कई
कुछ उप-जातियों में यह नाराजगी है कि बसपा के सत्ता में आने का लाभ उन्हें नहीं
मिला. उनका मायावती से मोहभंग हुआ है. हाल के वर्षों में उनका नया नेतृत्व भी उभरा
है. इसी तरह गैर-यादव पिछड़ी जातियों में सपा के प्रति नाराजगी है.
भाजपा इन्हीं दलित एवं पिछड़ी
उप-जातियों को अपने साथ लेने के लिए पूरा जोर लगा रही है. कई दलित नेताओं को बसपा
से तोड़ कर उसने अपने साथ लिया है. दलितों और पिछड़ों को अच्छी संख्या में टिकट भी दिये हैं. गैर-यादव पिछड़ी जातियों को
27 फीसदी आरक्षण में अलग से कोटा देने का झुनझुना भी दिखाया है.
यूपी में भाजपा का प्रदर्शन इस पर
निर्भर करता है कि वह दलित-पिछड़ा वोट बैंक में कितनी सेंध लगा पाती है.
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