Friday, April 19, 2019

आप यह तमाशा देख कर हैरान तो नहीं?



सत्रहवीं लोक सभा के लिए चुनाव हो रहे हैं. विभिन्न राजनैतिक दलों के स्टार प्रचारकों और प्रत्याशियों के भाषण सुनिए और सुबह अखबार में दैनंदिन जीवन से जुड़ी खबरों पर नजर डालिए. क्या भाषणों, दावों और जमीनी हकीकत में कोई साम्य, कोई सम्बंध दिखाई देता है?

एक खबर बता रही है कि राजधानी के बड़े-बड़े अस्पतालों में पर्याप्त वेण्टीलेटर नहीं होने से मरीज दम तोड़ रहे हैं. एक और खबर है कि कोहरे के कारण रद्द कई ट्रेनें गर्मी में भी नहीं चल रही हैं और यात्री परेशान हैं. और देखिए- राजधानी में ही बिना पंजीकरण के फर्जी अस्पताल चल रहे हैं, लखनऊ विश्ववविद्यालय में लॉ की फर्जी डिग्री बेचने का धंधा चल रहा है, बिना जमीन और नक्शे के बिल्डर रेरा में रजिस्ट्रेशन कराने पहुँच गये, सफाई कर्मचारियों ने स्मार्ट घड़ी पहनने के विरोध में हड़ताल की तो नगर निगम ने कामचोरी पकड़ने वाली यह व्यवस्था ही वापस ले ली. हैरान करती हैं ऐसी कई खबरें या अब नहीं करतीं?

उधर, यह भी पढ़ने को मिल रहा है कि अमुक प्रत्याशी की सम्पति पिछले पाँच साल में कई करोड़ रु बढ़ गयी, अमुक दल के नेता की सम्पत्ति में इतनी भूमि, इतने मकान और इतने जेवरात बढ़ गये. सभी प्रत्याशियों के यह वादे भी खूब छप रहे है कि विकास के लिए वोट दीजिए, कि हमने पिछले पाँच साल में शहर के लिए क्या-क्या कर दिया, कि हमने तो अपने शासन काल में लखनऊ को चमका दिया, आदि-आदि.

एक वेण्टीलेटर की कीमत कुछ लाख रु होती है, जिससे कारगर इलाज मिलने तक मरणासन्न मरीज की सांसें थामी जा सकती हैं. मेडिकल कॉलेज को कम से कम 400 वेण्टीलेटर की आवश्यकता है. हैं सिर्फ 214 जिनमें से कुछ खराब हैं. बलरामपुर अस्पताल में चार वेण्टीलेटर हैं लेकिन चलाने वाला स्टाफ नहीं है. सिविल में तीन साल पहले आठ वेण्टीलेटर खरीदे गये थे लेकिन अब तक चालू नहीं किये जा सके. बाकी अस्पतालों का भी कमोबेस यही किस्सा है.

नेताओं की सम्पत्ति करोड़ों-अरबों में बढ़ रही है लेकिन अस्पतालों में वेण्टीलेटरों की संख्या नहीं बढ़ पाती. खरीदे जाने के बावजूद वे इंस्टॉल नहीं हो पाते. खराब हो जाते हैं तो ठीक नहीं हो पाते. स्टाफ नहीं मिलता इसलिए वे चालू नहीं हो पाते. वेण्टीलेटर के लिए तीमारदार यहाँ से वहाँ भटकते रहते हैं और मरीजों की सांसें थम जाती हैं. पांच साल में नेताओं की बढ़ी सम्पत्ति और बंद हुए वेण्टीलेटरों में कोई रिश्ता होता है?

इस बार जाड़े में कोहरा ज्यादा नहीं पड़ा था लेकिन ट्रेनें बदस्तूर रद्द की गईं. गरमी आ गयी लेकिन ये ट्रेनें अब तक नहीं चलाई गयी हैं. क्या रेल मंत्री, रेलवे बोर्ड और बड़े अधिकारियों को पता है कि जनता कितनी परेशानी झेल रही है? जो ट्रेनें चल रही हैं, उनकी लेट लतीफी छुपाने के लिए आईआरटीसी की साइट गलत जानकारी देती है.चुनाव लड़ने वाले इन ट्रेनों से नहीं चलते. चुनाव प्रचार के लिए उड़ रहे चार्टर्ड विमानों तथा रद्द एवं लेट लतीफ ट्रेनों में कोई सम्बंध है?

नेता दावा कर रहे हैं लखनऊ स्मार्ट सिटी बन गया है. उन्हीं पन्नों पर ये खबर भी  होती हैं कि कितने अवैध निर्माण फल-फूल गये, बिना पार्किंग बने कितने कॉम्प्लेक्स जाम का कारण हैं, इंजीनियर ही बिल्डरों को अवैध निर्माण करने देते हैं, कि अवैध होटल, अस्पताल, मॉल सील करने के आदेश के बावजूद चल रहे हैं, कि.., कि...

छोड़िए, हकीकत से हलकान मत होइए. यह चुनाव का समय है. आप राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा, धर्म रक्षा, घुसपैठियों और पाकिस्तान पर ध्यान दीजिए. वेण्टीलेटरों के बिना दम तोड़ते मरीज, रद्द ट्रेनें और चौतरफा अव्यवस्था का रोना तो लगा ही रहता है.        


(सिटी तमाशा, नभाटा, 20 अप्रैल, 2019)

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