प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण
सुनते हुए, उनके टोन व तंज का तीखापन
महसूस करते हुए और उनके हाव-भाव एवं मुख-मुद्राएँ देखते हुए अक्सर आश्चर्य के साथ खेद
भी होता है. इन दिनों तो खैर, वे अपनी पार्टी के चुनाव
प्रचार पर निकले हैं, जिसमें अब नैतिकता और मर्यादा की कोई
जगह नहीं बची, लेकिन जब वे किसी सरकारी कार्यक्रम, सार्वजनिक सभा या किसी समारोह को सम्बोधित कर रहे होते हैं, तब भी अक्सर उनकी विपक्षी-निंदा और उनका टोन सुनकर विश्वास करना मुश्किल
हो जाता है कि हम अपने प्रधानमंत्री को सुन रहे हैं.
“पाकिस्तान चाहता है कि मोदी चुनाव हार जाए”-
हाल की एक चुनाव सभा में अपने प्रधानमंत्री के मुँह से यह सुनना बहुत
अफसोस पैदा करता है. चुनाव हमारे देश में हो रहा है. पाकिस्तान क्या चाहता है इससे
क्या मतलब? अमेरिका या रूस क्या चाहते हैं, यह तो वे नहीं बताते. पाकिस्तान ही क्यों?
पाकिस्तान उनके भाषणों में छाया रहता है. उसी सभा मोदी ने कहा- “विरोधी
नेताओं के भाषणों पर पाकिस्तान में तालियाँ बजती है, वे
वहाँ के अखबारों की सुर्खियाँ बनते हैं.” इशारा शायद यह है कि विरोधी नेता पाकिस्तान-परस्त
हैं या पाकिस्तान उनका समर्थन कर रहा है. तो?
भारतीय मतदाताओं से अपने लिए वोट
माँगते हुए मोदी अपनी पाँच साल की उपलब्धियों पर भरोसा करने की बजाय पाकिस्तान की
बात क्यों करते हैं? पाकिस्तान क्या हमारी
जनता के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है? हमारी भूख, गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और
किसानों-दलितों-अल्पसंख्यकों-महिलाओं, आदि की अनेकानेक
समस्याओं के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है? या पाकिस्तान ने
मोदी जी को पिछले पाँच साल में जनता की भलाई के काम ही नहीं करने दिये?
प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों का एक
और सतत राग ‘हिंदू-मुसलमान’ है. अभी दो दिन पहले एक और चुनावी सभा में मोदी ने कहा- “कांग्रेस ही है जिसने हिंदू-आतंकवाद शब्द गढ़ कर इस देश के करोड़ों हिंदुओं का अपमान
किया है. इसीलिए उनके नेता हिंदुओं के आक्रोश से डर कर उस सीट से चुनाव लड़ने जा
रहे हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं. क्या एक भी उदाहरण है कि
कोई हिंदू आतंकवादी बना?”
यहाँ इस बहस में पड़ने का समय नहीं है
कि कोई हिंदू आतंकवादी बना या नहीं. सभी मानते हैं कि किसी आतंकवादी का कोई धर्म
नहीं होता. सवाल यहाँ यह है कि प्रधानमंत्री किसे और क्यों बता रहे हैं कि ‘हिंदू आतंकवादी’ शब्द कांग्रेस ने इस्तेमाल करना
शुरू किया? जनता कांग्रेस से क्रुद्ध है या मोदी जी चाहते
हैं कि जनता कांग्रेस को हिंदू-विरोधी मान ले? हिंदू-विरोधी
माने मुसलमान-समर्थक? यही न?
सन 2017 के उत्तर-प्रदेश विधान सभा
चुनाव के दौरान कही गयी मोदी जी की एक बात आज तक कानों में गरम शीशे की तरह चुभती
है. तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार को लक्ष्य करके उन्होंने फतेहपुर की सभा में कहा
था- “अगर आप कब्रिस्तान बनवाते हो तो श्मशान
घाट भी बनवाना पड़ेगा. अगर रमजान में चौबीस घण्टे बिजली देते हो तो दीवाली में भी
बिना ब्रेक बिजली देनी होगी. ये भेदभाव नहीं चलेगा.”
हमारे प्रधानमंत्री हिंदू-मुसलमान का
मुद्दा उठाने के लिए श्मशान-कब्रिस्तान और रमजान व दीवाली तक चले गये?
ऐसी तुच्छ बातें तो गिरिराज सिंह और संजीव बालियान जैसे अभद्र
नेताओं के मुँह से भी शोभा नहीं देती. उनके साथ तो देश के प्रधानमंत्री पद की
गरिमा नत्थी है.
अभी कोलकाता में मोदी जी कह आये कि हमने पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर हमला किया
तो पाकिस्तान और ममता बनर्जी को परेशानी हो गयी. कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून पर पुनर्विचार की बात कहे एतो मोदी जी ने अपने भाषण
में कह दिया कि कांग्रेस सेना का कवच ही छीन लेना चाहती है,
जबकि स्वयं उनकी सरकार अरुणाचल के कुछ हिस्सों में इसी कानून को उठा
लेती है.
जब कभी मोदी जी इशारों में सोनिया
गांधी और राहुल गांधी की चर्चा करते हैं तो देखिए उनका टोन कितना घृणा भरा हो जाता
है. अपनी एक हथेली पर दूसरी हथेली पटकते हुए, वितृष्णा
से मुँह टेढ़ा करके वे ऐसी फुत्कार छोड़ते हैं जैसे किसी मुहल्ले की झगड़ालू औरतें या
बच्चे एक-दूसरे को नीचा दिखने के लिए करते हैं. कांग्रेस और नेहरू-गांधी खानदान से
उनका विरोध समझ में आता है. उनकी कटु आलोचना करना भी राजनीति का हिस्सा है लेकिन
स्वर की घृणा और इशारों की वितृष्णा क्या बताती है?
आप प्रधानमंत्री पद पर बैठे हैं,
विरोधी नेताओं से आपकी वैचारिक मतभिन्नता दिखनी चाहिए, घृणा और वैमनस्य नहीं. तब भी नहीं, जब कि विरोधी
नेता मर्यादा तोड़ रहे हों. प्रधानमंत्री पद पर नरेंद्र मोदी नाम का व्यक्ति बैठा
है, इसकी गरिमा बनाए रखने की जिम्मेदारी उन्हीं की है. किसी
विरोधी नेता की ‘दादी’ और ‘नानी’ पर अपने प्रधानमंत्री अशालीन कटाक्ष करें तो
मर्यादा बचेगी?
मोदी जी की हाल की यूपी यात्रा का एक
भाषण याद कर लीजिए. यहां सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन है. उसके खिलाफ बोलते हुए वे कह
गये- तीनों पार्टियों का पहला अक्षर जोड़ कर देखिए तो ‘सराब’ बनेगी (सपा का स,
रालोद का रा और बसपा का ब). यह सराब आपको बरबाद कर देगी. मोदी जी को
जुमले गढ़ना और द्वि-अर्थी वाक्य बनाना पसंद है लेकिन इसके लिए कुछ भी हास्यास्पद
गढ़ देंगे? अगले दिन सभी विपक्षी नेता ‘सराब’
को ‘शराब’ बना देने के
लिए प्रधानमंत्री की खिल्ली उड़ाने लगे थे.
मोदी जी ऐतिहासिक तथ्य भी अपने
मन-मुताबिक तोड-मरोड़ देते हैं. जैसे सम्राट अशोक का जिक्र करते हुए उन्होंने पाकिस्तान
स्थित तक्षशिला को बिहार में बता दिया. चंद्रगुप्त मौर्य को गुप्त वंश का सम्राट
कह डाला. सिकंदर कभी बिहार नहीं पहुँचा लेकिन मोदी जी ने बिहारियों से उसे हरवा
दिया. मगहर में वे बिना संकोच कह गये कि यहाँ कबीर, गुरु
नानक और बाबा गोरखनाथ ने एक साथ बैठ कर आध्यात्मिक चर्चा की थी. जबकि उनके समय में
कम से कम तीन सौ साल का अंतराल है. ऐसी हास्यास्पद गलतियों पर उनकी ओर से कभी कोई
सफाई या स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. बीबीसी ने तो एक रोचक खबर भी प्रसारित की थी
जिसका शीर्षक था- ‘नरेंद्र मोदी की 11 ऐतिहासिक गलतियाँ.’
क्या मोदी जी जनता को मूर्ख सम्जहते हैं
या बना रहे हैं? मुंह से कभी कुछ गलत निकल
जाना एक बात है और जान-बूझ कर या अज्ञान में झूठ बोलना अलग बात. मोदी जी जब ऐसा
करते हैं तो वे प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ध्यान नहीं रखते.
नरेंद्र मोदी कभी संघ के प्रचारक थे.
तब वे क्या बोलते थे, कौन ध्यान देता
होगा. आज वे भाजपा के बड़े नेता होने के
साथ देश के प्रधानमंत्री भी हैं. उनकी बातों पर देश-दुनिया कान देती है. वे
धुआँधार बोलते हैं. जनता को अपने भाषणों में बहा ले जाना जानते हैं लेकिन जो बातें
प्रधानमंत्री के मुँह से शोभा नहीं देतीं, उनके साथ देश और
पद का मान-सम्मान भी बह जाता है.
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