Friday, April 26, 2019

आपकी गाड़ी की टेल-लाइट जलती है?


‘जेण्टलमैन, मेक योर टेल लाइट वर्किंग... अभी मैंने कुचल दिया होता’- वर्षों पहले एक सयाने व्यक्ति ने बीच सड़क पर टोका था.  वह नौकरी के शुरुआती दिन थे. अगले दिन के अखबार के पन्ने तैयार करके देर रात घर लौटना होता था. स्कूटर की पिछली बत्ती कभी खराब हो गयी होगी. हेड लाइट जरूरी लगती थी, टेल लाइट पर ध्यान नहीं दिया. लगभग सुनसान अंधेरी सड़क पर चले जा रहे थे कि पीछे से हॉर्न बजा. फिर एक कार बराबर आयी और खिड़की से बुजुर्ग की डॉट सुनाई दी- भले आदमी, अपने स्कूटर की टेल लाइट ठीक करा लो.

यह समझने में कुछ देर लगी कि उन्हें सड़क पर आगे चलती मेरी स्कूटर दूर से नहीं दिखाई दी होगी. पास आने पर अचानक ब्रेक लगना पड़ा होगा. तभी मुझे सचेत करना जरूरी समझा. वाहनों पर पीछे की बत्ती का जलना कितना जरूरी है, समझ में आया.

पिछले दिनों लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे में कुछ भीषण दुर्घटनाएं हुईं.  तेज रफ्तार एक बस आगे जा रहे ट्रक में जा भिड़ी और आग का गोला बन गयी. एक और बस अचानक ब्रेक लगाने से पलट गयी. कई की जान गईं. ऐसी कई दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण वाहनों की टेल लाइट का न जलना है. हाई-वे में वाहन तेज चलते हैं. टेल लाइट के बिना चल रहे वाहन पीछे से आ रही गाड़ियों को दूर से दिखते नहीं. नजदीक आने पर वे अचानक दिखते हैं और बड़ी दुर्घटनाएं हो जाती हैं.

हाई-वे पर ज्यादातर ट्रक बिना टेल लाइट के दिखते हैं. ट्रैक्टर, ट्रॉलियां, डम्पर वाले तो कभी ध्यान नहीं देते कि टेल लाइट भी कोई चीज होती है और कितनी आवश्यक. इसीलिए ट्रेक्टर-ट्रॉलियों में वाहनों के पीछे से भिड़ने की दुर्घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं.    

शहरों में भी अक्सर हम देखते हैं कि चौपहिया-दुपहिया वाहन बिना टेल लाइट के दौड़ते रहते हैं. हेड लाइट तो लोग ठीक करा लेते हैं लेकिन टेल लाइट और ब्रेक-लाइट की ओर ध्यान बहुत कम लोग देते हैं. टेम्पो, ऑटो, डाला, आदि कमर्शियल वाहन वैसे भी खचड़ा हालत में दौड़ाए जाते हैं. उनमें टेल लाइट-ब्रेक लाइट पर खर्च कौन करे. अंधेरे में या अचानक ब्रेक लगाने पर पीछे आ रहा वाहन भिड़ जाए, कोई चोट खा जाए, यह भी भला कोई चिंता करने की बात है!   

यह आपराधिक लापरवाही हमारे ही देश में सम्भव है. यूरोप-अमेरिका को छोड़ दीजिए, सिंगापुर-थाइलैण्ड जैसे छोटे-छोटे देशों में भी बिना टेल लाइट गाड़ी चलाना संगीन अपराध है. अपने मोटर वाहन अधिनियम में इसे आवश्यक बताया गया है. इसका उल्लंघन दण्डनीय अपराध भी है लेकिन सिर्फ कागज पर. ट्रैफिक पुलिस वीवीआईपी वाहनों को बेधड़क गुजर जाने देने के लिए तैनात होती है या अवैध वसूली के लिए. परिवहन विभाग का काम खटारा और खतरनाक वाहनों को परमिट देना है. आश्चर्य नहीं कि सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतें हमारे देश में होती हैं.

लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर बढ़ती दुर्घटनाओं का संज्ञान लेते हुए सुना है कि परिवहन आयुक्त इस मार्ग पर वाहनों के लिए रेट्रो रिफ्लेक्टिव टेप लगाना अनिवार्य करने का सुझाव देने जा रहे हैं. लाल-पीला यह टेप रोशनी पड़ने पर चमकता है. यह चमक पीछे से आने वाले वाहनों को सचेत कर देगी. पहल अच्छी है लेकिन सिर्फ उसी मार्ग पर ही क्यों? सभी वाहनों के लिए अभी मार्गों पर इसे अनिवार्य क्यों नहीं किया जाता?

सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल यह कि वाहनों पर यह टेप लगा है, इसे सुनिश्चित कौन करेगा? मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार टेल लाइट जले, इसका ही पालन सख्ती से क्यों नहीं किया जाता?

एक जमाना था जब साइकिल और रिक्शे के लिए भी रात में ढिबरी जलाना अनिवार्य था.  शायद अंग्रेजों के जमाने से नियम रहा होगा. आजादी के बाद हमने नियम-कानूनों से भी आज़ादी पा ली.      


(सिटी तमाशा, नभाटा,
27 अप्रैल, 2019)

1 comment:

सुधीर चन्द्र जोशी 'पथिक' said...

सार्थक लेख ! टेल लाइट इतनी महत्वपूर्ण होते हुए भी लोग इस पर कितना कम ध्यान देते हैं और जिस तरह ट्रैफिक पुलिस इसकी अनदेखी करती है, आश्चर्यजनक और दुःखद दोनो है। जिसकी गाड़ी की टेल लाइट खराब हो, कब दुर्घटना का शिकार हो जाये, कहा नहीं जा सकता। इसके अतिरिक्त ट्रकों में पीछे बाहर को निकली हुई सरिया और उनमें दिन में कोई लाल कपड़ा न लटकाना या रात में लाल रोशनी न करना भी बहुत ख़तरनाक है। कई दुर्घटनाएँ इन सरियों से टकरा कर होना भी हमारे संज्ञान में है। परन्तु हम इन महत्वपूर्ण बातों को कोई महत्व ही नहीं देते है। यह हमारे. लिए रोज़मर्रा की सामान्य बातों जैसा हो गया है। इसके साथ ही बहुत तेज़ और सीधे आँखों में पड़ने वाली हैडलाइट्स भी दुर्घटना के बड़े कारणों में से एक है। पता नहीं पहले कौन जागेगा- हम या व्यवस्था !