“समाज में यह
संदेश अवश्य जाना चाहिए कि, जो लोग
अपने आर्थिक लाभ के लिए अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं और भ्रष्ट तरीकों एवं
साधनों से अपने नापाक इरादे पूरे करने में सफल हो जाते हैं, यहाँ
तक कि अपने पूर्ण अवैध काम को वैध करवा लेते हैं, ऐसे लोगों
को कतई बख्शा नहीं जाएगा और उनके साथ बहुत सख्ती से पेश आया जाएगा, उनका अवैध निर्माण, जब भी नोटिस में आए, किसी भी स्तर पर ढहा दिया जाएगा.”
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कानपुर
शहर के सिविल लाइंस जैसे प्रमुख इलाके में करीब 22,500
वर्ग मीटर जमीन पर बने एक अवैध मॉल को बिना किसी विलम्ब के तत्काल ध्वस्त करने का
आदेश देते हुए हाल ही में यह टिप्पणी की है. यह कानपुर शहर के मास्टर प्लान में
आयुर्वेदिक गार्डन के रूप में दिखाई गयी थी. उच्च न्यायालय ने कानपुर विकास
प्राधिकरण को आदेश दिया है कि मॉल को ध्वस्त करने के बाद वह जगह वैसी ही बना दी
जाए जैसी कि वह भूमि हस्तांतरण के समय थी.
उच्च न्यायालय का यह फैसला इसलिए बहुत
महत्त्वपूर्ण है कि राजधानी लखनऊ समेत
हमारे सभी बड़े शहर अवैध व्यावसायिक निर्माणों से अटे पड़े हैं. आवासीय भवनों
ही में बड़े व्यावसायिक निर्माण नहीं किये गये, बल्कि
हरे-भरे पार्क, तालाब और खेल के मैदान तक कंक्रीट के ढांचों
में बदल दिये गये. मास्टर प्लान की धज्जियाँ उड़ाने में खुद प्राधिकरणों, निगमों, परिषदों और सरकारी विभागों के भ्रष्ट
अधिकारियों की मिली भगत है.
अदालत की यह टिप्प्णी काबिले गौर है
कि मास्टर प्लान में आयुर्वेदिक गार्डन के रूप में दिखाई गयी यह खुली जगह कानपुर
शहर की जनता के हित में थी, जो कि बड़े
पैमाने पर उद्योगों के कारण वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है. इस भूमि को आयुर्वेदिक
गार्डन के रूप में विकसित करने की योजना बना कर जनता को साफ हवा में सांस लेने का
अवसर दिया गया था. एक घराने के लाभ के लिए वहाँ मॉल बनवा देने से यह उद्देश्य विफल
हो गया.
हाई कोर्ट इस सख्त फैसले से समाज में
जो संदेश भेजना चाह रहा है, क्या
हमारा शासन-प्रशासन भी वैसा चाहता है? लखनऊ, कानपुर, मेरठ, बनारस, इलाहाबाद जैसे महानगर हों या दूसरे छोटे नगर, मास्टर
प्लान सब जगह खुलीआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं. सारे अवैध काम धनबल और सत्ताबल से
वैध बनाये जा रहे हैं.
राजधानी लखनऊ का ताजा उदाहरण ले
लीजिए. लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ने बिजली विभाग से लिखित अनुरोध किया कि
आवासीय भवनों में खुले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बिजली कनेक्शन न दिये जाएँ.
अवैध निर्माणों को बिजली कनेक्शन नहीं मिलेगा तो यह सिलसिला कुछ थमेगा. लेकिन
बिजली विभाग ने इसे ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’
की आड़ में खारिज कर दिया. यानी अवैध निर्माणों को बिजली कनेक्शन
शासन देता रहेगा.
क्या ‘ईज
ऑफ डूंइंग बिजनेस’ यानी व्यापार करने में आसानी के लिए सारे
नियम-कानून ताक पर रख दिये जाएंगे? फिर तो बीच चौराहे पर
शोरूम खोलने से भी मना नहीं करना चाहिए. जो जहाँ चाहे कब्जा करे और बिजनेस शुरू कर
दे, उसे छेड़ा नहीं जाना चाहिए. क्या शासन इस तरह अवैध
कब्जेदारों, नियम विरुद्ध निर्माण करने वालों को बचा नहीं रहा?
तो,
हाई कोर्ट की मंशा कैसे पूरी हो? समाज में यह संदेश कैसे जाए
कि भ्रष्ट तरीके अपनाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा और उनके अवैध निर्माण किसी भी
स्तर पर ढहा दिये जाएंगे? चारों तरफ हम देख ही रहे हैं कि
सत्ता में बैठे लोग नहीं चाहते कि अवैध निर्माण और कब्जे रुकें.
(सिटी तमाशा, नभाया, 6 अप्रैल, 2019)
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