Tuesday, July 05, 2011

‘दावानल’ से उठी ‘आमा’ की वेदना

(दो जून, 2011 को नैनीताल समाचार में छपी यह रपट बस यूं ही पोस्‍ट कर दे रहा हूं- न. जो. )
उत्तरांचल संस्कृति युवा मंच द्वारा 1 मई को भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनउ के बी.एम. शाह प्रेक्षागृह में नवीन जोशी के बहुचर्चित उपन्यास ‘दावानल’ पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर ‘दावानल’ की पृष्ठभूमि से प्रेरित राहुल सिंह बोरा द्वारा लिखित एवं जीवन सिंह रावत द्वारा निर्देशित लघु फिल्म ‘आमा’ का प्रदर्शन भी किया गया। प्रकाशन के पाँच वर्ष बाद ‘दावानल’ पर परिचर्चा उन युवा सृजनकर्मियों द्वारा आयोजित की गई थी, जिनका पहाड़ से नाता बचपन में ही टूट चुका है। जो लखनऊ में पले-बढ़े और आज व्यक्तिगत और सामाजिक सवालों के जवाब तलाश रहे हैं। उत्तराखण्ड जन आन्दोलनों पर आधारित ‘दावानल’ एक ओर वन सम्पदा पर ग्रामवासियों के नैसर्गिक अधिकारों और आपसी संवेदनात्मक सम्बन्धों का साक्षात्कार कराता है तो दूसरी ओर अदूरदर्शी वन नीतियों के कारण बर्बाद होते पहाड़ी जनजीवन की तस्वीर खींचता है। इस प्रकार यह क्षेत्र विशेष का उदाहरण लेकर वन और सम्पूर्ण मानव समाज के साहचर्य का दर्शन स्थापित करता हुआ एक सार्वभौमिक रूप से समसामयिक बन जाता है।

साहित्यकार धनसिंह मेहता ‘अंजान’ ने कहा कि सत्ता और शक्ति के उपभोगार्थ हमारे राजनैतिक कर्णधार प्रकृतिजनित समस्याओं और समाज की विषम परिस्थितियों को अपने हित में और अधिक बिगाड़ देते हैं। ‘दावानल’ इस कुचक्र का खुलासा करता है। ‘दावानल’ पूरे चिपको आन्दोलन की चीरफाड़ करता हुआ उसके असली दिव्य स्वरूप को सामने रखता है। ज्ञान पंत ने ‘दावानल’ को पहाड़ का सम्पूर्ण यथार्थ बताया। अन्त में नवीन जोशी ने ‘दावानल’ के माध्यम से चिपको आन्दोलन को ब्यौरेवार प्रस्तुत किया और बताया कि किस तरह भोली-भाली ग्रामीण स्त्री गौरा देवी की वनों पर नैसर्गिक अधिकारों की लड़ाई को प्रचारधर्मियों एवं प्रचारलोलुपों के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण की लड़ाई बना दिया गया। ब्रिटिश शासन की दमनकारी वन नीतियाँ आज़ाद भारत में और क्रूर हो गईं। ग्रामीणों के वनों पर नैसर्गिक अधिकारों को छीन लिया गया। कार्यक्रम का संचालन ललित पोखरिया द्वारा किया गया।

इस मौके पर प्रदर्शित ‘आमा’ फिल्म के लेखन, निर्देशन, सिनेमेटोग्राफी, अभिनय और सम्पादन से जुड़े लगभग सभी कलाकार ‘निसर्ग’ संस्था का नाट्य प्रशिक्षण कार्यक्रम उत्तीर्ण करने के पश्चात् अनेक रंग संस्थाओं की नाट्य प्रस्तुतियों में अपने को स्थापित कर चुके हैं। मुख्य अभिनेता अनुराग मिश्र, निर्देशक जीवन सिंह रावत, तथा लेखक राहुल सिंह बोरा ने भी ‘दावानल’ और ‘आमा’ के सन्दर्भ में अपने-अपने विचार व्यक्त किये। ‘आमा’ एक दादी और उसके पोते के बीच रिश्ते की कहानी है। शहर में रहने वाला पुष्कर अपनी आमा से नहीं मिल पाता। एक रोज उसे दादी की चिट्ठियाँ मिलती हैं, लेकिन तब तक दादी की मौत हो चुकी होती है। इन पत्रों से पुष्कर में अपनी दादी और अपनी जड़ों के बारे में जानने की ललक भी पैदा होती है और वह अपनी जड़ों की तलाश में निकल जाता है। फिल्म की शूटिंग रानीखेत के पास स्थित गटोली गाँव, रानीखेत बाजार और लखनऊ में हुई है।
-ललित पोखरिया