आप बीमार हैं। डॉक्टर की बताई दवा खा रहे हैं लेकिन कोई सुधार नहीं हो रहा। डॉक्टर भी चकित हैं कि उनका निदान तो बिल्कुल सही है लेकिन दवा काम क्यों नहीं कर रही। वही दवा दूसरी कम्पनी की खाने को कहते हैं तो दो दिन में आराम आ जाता है। डॉक्टर कहते हैं, पहली वाली दवा नकली रही होगी। एक सामान्य आदमी कैसे पहचाने कि दवा असली है या नकली? अक्सर दुकानदार भी नहीं जानते कि वे नकली दवा बेच रहे हैं। धंधेबाज दवाओं की सप्लाई चेन में गहरी घुसपैठ किए हुए हैं।
ज्वर उतारने के लिए पैरासैटामॉल हो या कोविड के इलाज में
प्रयुक्त होने वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन, बाजार में नकली माल भरा पड़ा है। कानपुर
पुलिस ने तीन दिन पहले अमीनाबाद में छापा मारकर नकली दवाओं का बड़ा कारोबार पकड़ा। पहले
भी ऐसी पकड़-धकड़ होती रही है लेकिन यह कारोबार फिर भी फलता-फूलता आया है।
कोरोना-काल में यह पूरे जोरों पर था। इस काल में सबसे अधिक मुनाफा दवा कम्पनियों
ने कमाया और उनकी आड़ में नकली दवा के धंधेबाजों ने।
अधिक से अधिक कमाई की हवस ने जीवन बचाने वाली वस्तुओं को भी
जहर में बदल डाला है। जिन वस्तुओं की सबसे अधिक मांग होती है, उन्हीं
में सबसे अधिक नकली माल खपाया जाता है। जिन विभागों को इस पर नियंत्रण करने का
उत्तरदायित्व है, वे उसी सरकारी तंत्र का हिस्सा हैं जिसकी
स्थाई पहचान नाकारा और भ्रष्ट की हो चुकी है। पुलिस ने जब नकली दवाओं का जखीरा
पकड़ा तो खाद्य एवं औषधि सुरक्षा विभाग श्रेय लूटने तत्काल वहां पहुंच गया।
जीवन में धन को इतना महत्व दे दिया गया है कि लोग उसके लिए
कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। वही सफलता और रुतबे की असली पहचान हैं। ईमानदारी, नैतिकता
और मर्यादाओं की बात हंसी में उड़ा दी जाती है। धन-सम्पत्ति है तो आप सब कुछ कर
सकते हैं। ईमान और व्यवस्था सब खरीद सकते हैं। इसीलिए अपने चारों तरफ बेहिसाब धन
कमाने की हवस दिखती है, चाहे प्रशासन और राजनीति का क्षेत्र
हो या उद्योग-व्यापार का।
जब मेडिकल कॉलेज के कुछ कर्मचारी रेमडेसिविर के इंजेक्शन की
चोर बाजारी कर रहे थे तब उतना आश्चर्य नहीं हुआ था। जब इसी काम में लिप्त लोहिया
अस्पताल के एक डॉक्टर की गिरफ्तारी हुई तो सदमा-सा लगा। आखिर एक डॉक्टर को अस्पताल
की दवा की चोर बाजारी में शामिल होने की ललक क्यों कर हुई होगी?
बेरोजगारी के भयानक दौर ने भी नकली कारोबार और चोर बाजार को
फलने-फूलने का खूब मौका दिया है। नौकरी मिलती नहीं और मिले भी तो वहां तरक्की और
कमाई के लिए कड़ी मेहनत चाहिए। काले धंधों में बहुत शीघ्र मालामाल होने की सम्भावना
है। मालामाल होना ही आज जीवन की सार्थकता है। इसीलिए कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के, सरकारी
अफसर, राजनेता, पुलिस, डॉक्टर, व्यापारी, आदि-आदि बेहिसाब
धन कमाने के रास्ते तलाशते रहते हैं। अपवाद हैं लेकिन चारों तरफ से इतनी खबरें आती
हैं कि लगता है वे कम होते जा रहे हैं।
मनोरंजन और शिक्षा के माध्यम कही जाने वाली फिल्में, टीवी और
विशेष रूप से अब लोकप्रिय हो गए ‘ओटीटी’ के ‘सीजन-सीरियल’ क्या सिखा रहे
हैं। बीमारी के दौरान मैंने पहली बार दो ‘लोकप्रिय’ ओटीटी सीरियल देखे। इतना बड़ा झटका लगा कि मानसिक संतुलन हिल गया। भयानक हिंसा,
पोर्न की हद तक सेक्स, ऐसी गालियां जो लिखी या
जिह्वा पर लाई नहीं जा सकतीं, दिन-रात साजिशें, नाते-रिश्तों का खून, वगैरह देखकर रातों की नींद उड़ गई।
यह सब कुछ धन-सम्पत्ति के लिए होता दिखाया गया है।
यही सब मनोरंजन के रूप में (लेट अस हैव सम फन) जीवन में साकार हो रहा है।
(सिटी तमाशा, नभाटा, 26 जून, 2021)