Saturday, April 16, 2011

बीहड़ वन में पूरी नदी का गहरी खाई में गिरना






हाल की भारी वर्षा से उफनाई बैरन नदी भयानक शोर के साथ सैकड़ों फुट गहरी खाई में गिर रही है और वाष्प-कणों से भरा घना सफेद कोहरा खाई से ऊपर उठकर हरे-भरे जंगल में छा रहा है। पूरी की पूरी नदी को एक गहरी खाई में गिरते देखना रोमांचक दृश्य है।

हम कैर्न्स (आस्ट्रेलिया) के विश्व-सम्पदा घोषित ट्रॉपिकल रेन फॉरेस्ट अर्थात उष्ण कटिबंधीय वर्षा-वन के ऊपर से गुजरती ‘स्काई रेल’ के बैरन-फाल्स स्टेशन पर उतरे हैं। ‘स्काई रेल’ क्यों, रोप-वे यानी रज्जु मार्ग कहना चाहिए। 7.5 किमी लम्बी इस स्काई रेल में एक सौ से ज्यादा ‘गोण्डोला’ (केबिन) सुबह से शाम तक निरन्तर दौड़ते रहते हैं। बीच-बीच में स्टेशन बने हैँ जहाँ आप ‘गोण्डोला’ से उतर कर जंगल में इधर-उधर घूम सकते हैं और फिर किसी गोण्डोला में बैठकर आगे की यात्रा जारी रख सकते हैं।

यह स्काई रेल अत्यन्त समृद्ध वर्षा-वन के ऊपर से गुजरती है और आप गोण्डोला की शीशे की खिड़कियों से दूर-दूर तक फैली हरियाली, सुदूर कोरल-समृद्ध सागर और यहाँ-वहाँ बसी बस्तियाँ देख सकते हैं। यदि आपको हर चीज की अपने मुल्क से तुलना करने की बीमारी हो तो अफसोस कर सकते हैं कि हमने अपने ऐसे ही समृद्ध वनों को कितनी निमर्मता से नष्ट कर डाला है। बहरहाल, स्काई रेल इस वर्षा-वन के ऊपर आपको कोई डेढ़ घण्टे तक घुमाती और प्रकृति की विविध छवियाँ दिखाती है। वापसी भी स्काई रेल से करनी हो तो ढाई घण्टे लगेंगे, लेकिन हमें वापसी सड़क से करनी थी जो घने जंगल के बीच से गुजरती हुई अलग ही अनुभव से भर देती है।

कुराण्डा में रेन फॉरेस्टेशन नेचर पार्क में हमें रुकना था जहाँ कोआला को गोद में लेकर प्यार करने और आस्ट्रेलियाई आदिवासियों (एब-ओरिजिनल्स) के नृत्य-गीत देखने के बाद ‘आर्मी-डक’ से जंगल के बीहड़ कोनों की रोमांचक यात्रा करनी थी। आस्ट्रेलिया में आज यूरोपीय मूल के लोगों का कब्जा है और सारी समृद्धि व सत्ता उन्हीं के पास है जबकि मूल-आस्ट्रेलियाई वंचित समुदाय हैं। उनके संगठन बने हैं और आन्दोलन होते रहते हैं। आस्ट्रेलिया सरकार ‘एब-ओरिजिनल्स’ को बराबर के अधिकार और सत्ता में भागीदारी देने की बात भी करती है लेकिन उनके साथ भेदभाव साफ दिखाई देता है। बहरहाल, पर्यटकों के वास्ते ये मूल-आस्ट्रेलियाई प्रदर्शन की वस्तु भी हैं। इस नेचर पार्क में उनके नृत्य-गीत, भाले और बूमरैंग के प्रदर्शन पर्यटकों के मनोरंजन के लिए होते हैं।

बहरहाल, वर्षा-वन का असली आनन्द ‘आर्मी-डक’ से जंगल के बीहड़ की यात्रा में आता है। ‘आर्मी-डक’ ऐसा वाहन है जो ऊबड़-खाबड़ रास्ते, दलदल और पानी में भी मजे से चलता-तैरता है और हम देखते हैं ऐसा जंगल जिसमें मनुष्य का कोई दखल नहीं है। कोई फर्न सौ-डेढ़ सौ साल का पेड़ बन चुका है तो बड़े से पेड़ की शाखाओं के बीच से कोई बास्केट फर्न रोशनी और धूप पाने की लड़ाई जीतने की जद्दोजहद में व्यस्त है। हर तरफ वनस्पतियों में होड़ मची है। उनका भी अपना जीवन संग्राम होता है। विशाल भू-भाग और बहुत कम आबादी वाले आस्ट्रेलिया में प्राकृतिक संसाधनों पर कोई दबाव नहीं है। इसलिए ऐसे वन सुरक्षित हैं। हमारे यहाँ तो सुरक्षित वनों में भी माफिया की जबर्दस्त घुसपैठ है। फिर वही तुलना की बीमारी, मगर क्या कीजै!

समृद्ध वर्षा-वन की सुखद यात्रा का सुकून मन में भरे हम होटल लौट आए हैं। हाल के समुद्री चक्रवात की तबाही से उबरता कैर्न्स बहुत शांत है। यहाँ मानसून पूरी तरह आ चुका है। हल्की वर्षा में समुद्र में लंगर डाले क्रूज और जेट बोट का विशाल बेड़ा होटल की खिड़की से दिखाई दे रहा है। इन्ही से पर्यटक विश्वविख्यात ग्रेट बैरियर रीफ की रोमांचक यात्रा पर जाते हैं।

Thursday, April 07, 2011

रत्याली [रतजगा]

हिंदी के अत्यत संवेदनशील कवि हरीश चंद्र पाडे की "उत्तरा" में छपी यह कविता पढ कर हम पति-पत्नी कल से बहुत द्रवित और उद्वेलित हैं और बार बार इसे पढ रहे है. आप भी ज़रूर पढें--



इस घर से वधू को लेने गई है बारात

इस घर में रतजगा है आज



इस समय जब वहां बाराती थिरक-थिरक कर साक्ष्य बन रहे होंगे

जीवन के एक मोड का

यहां औरतें गा कर नाच कर स्वांग रच -रच कर

लंबी रात के अंतराल को पाट रही हैं



वहां जब पढे जा रहे हैं झंझावातों में भी साथ रहने के मंत्र

और सात जन्मों के साथ की आकांक्षा की जा रही है

यहां जीवन भर साथ चलते-चलते थकी औरतें

मर्दों का स्वांग रच रही हैं



इनके पास विषय ही विषय हैं

स्वांग ही स्वांग



प्रताडनाएं, जिन्होंने उनका जीना हराम कर रखा था

अभी प्रहसनों में ढल रही हैं

डंडे कोमल-कोमल प्रतीकों में बदल रहे हैं

वर्जनाएं अधिकारों में ढल रही हैं



ये मर्द बन कर प्रेम कर रही हैं बुरी तरह

अपनी औरत को बुरी तरह फटकार रही हैं

जूतों की नोकों को चमका रही हैं बार-बार

मूछों में ताव दे रही हैं



जो आदमियों द्वारा केवल आदमियों के लिये सुरक्षित है

उस लोक में विचर रही हैं

पिंजरे से निकल कर कितना ऊंचा उडा जा सकता है

परों को फैला कर देख रही हैं



वह टुकडा

जो द्वीप है उनके लिये

उसे महाद्वीप बना रही हैं



अपने वास्तविक संसार में लौटने के पहले

कल सुबह एक और औरत के आने के पहले

Wednesday, April 06, 2011

सिडनी ओपेरा हाउस : हार्बर पर उगा अद्वितीय फूल





आस्ट्रेलिया के चार शहरों की यात्रा में हमारा पहला पड़ाव सिडनी था और वहां पहला ही साक्षात्कार सिडनी ओपेरा हाउस की सम्मोहित कर देने वाली डिजाइन से होता है। क्या ही खूबसूरत इमारत है। जितनी बार जितने कोणों से देखिए इसका नया ही आकर्षक रूप सामने आता है और यह तो हमें दूसरी शाम पता चला कि सिडनी ओपेरा हाउस का असली, भव्य दर्शन तो समुद्र में थोड़ा दूर जाकर होता है। जब हमने क्रूज की ढा़ई घण्टे की यात्रा में समुद्र में दूर से ओपेरा हाउस को देखा तो अहसास हुआ कि ढ़लती शाम की सुनहरी धूप और रात की जगमग रोशनी में ओपेरा हाउस का सौन्दर्य कई गुणा बढ़ गया है। हार्बर पर उगे किसी अद्वितीय फूल की तरह। समुद्र की लहरें निरन्तर जिसके चरण पखारती हों और सुबह से रात तक की विविध रोशनियाँ जिसका पल-पल नया ‍‌श्रंगार करती हों, ऐसे ओपेरा हाउस की छवि बस मन में टंकी रह जाती है।

और जब ओपेरा हाउस का वाक्पटु गाइड उसके निर्माण के इतिहास के रोचक और उदास प्रसंगों का बखान करता है तो उस दिव्य छवि में एक कसक भी समा जाती है। विश्वव्यापी डिजायन प्रतियोगिता के बाद चयनित जिस डच आर्कीटेक्ट उटजन ने 1959 में इसे अथक परिश्रम और लगन से बनवाना शुरू किया, वही इसका तैयार भव्य रूप कभी नहीं देख पाया। निर्माण के दौरान इतनी मुश्किलें आईं और अप्रिय विवाद उठे कि उटजन को इसके निर्माण से अलग कर दिया गया। बाद में उटजन सही साबित हुआ और उसी के मूल डिजायन और निर्देशों के तहत ओपेरा हाउस पूरा हुआ मगर 1973 में इसके उद्घाटन के समय उटजन का नाम तक नहीं लिया गया था। हालाँकि बाद में सिडनी ओपेरा हाउस ट्रस्ट ने उटजन को पूरा श्रेय दिया और उसे ससम्मान सिडनी आमंत्रित भी किया लेकिन उटजन अपनी इस अद्वितीय कृति को देखने फिर कभी सिडनी नहीं आया। हाँ, नवंबर 2008 में अपनी मृत्यु से पहले उसने ओपेरा हाउस के रखरखाव और भविष्य के लिए कुछ नई परिकल्पनाएँ जरूर भेजीं। आज सिडनी में उटजन को बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है और उसकी स्मृति में ओपेरा हाउस में बाकयदा ‘उटजन रूम’ भी बनाया गया है। उसे इस डिजायन के लिए आर्कीटेक्चर का सर्वोच्च सम्मान मिला और सिडनी ओपेरा हाउस को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में जगह। इस इमारत में पाँच अलग-अलग आकार-प्रकार के थिएटर हैं जहाँ जाज, बैले, शास्त्रीय संगीत, नाटक, नृत्य सभी तरह के कार्यक्रम निरंतर होते रहते हैं-एक वर्ष में करीब 2500 प्रदर्शन!

सिडनी ओपेरा हाउस से नजर घूमी नहीं कि हमें ऐतिहासिक और आलीशान सिडनी हार्बर ब्रिज के दर्शन होते हैं। छह वर्ष के परिश्रम से बना और मार्च 1932 में पूरा हुआ यह पुल दुनिया का सबसे बड़ा (लम्बा नहीं) इस्पात चाप वाला पुल है। इसमें इतना लोहा लगा है कि उसे रंगने में 60 बड़े खेल मैदानों को रंगने के बराबर पेंट खर्च होता है और बड़े-बड़े जहाज इसके नीचे से आते-जाते हैं। इसके उद्घाटन का एक रोमांचक किस्सा भी है। 19 मार्च 1932 को भव्य समारोह में न्यू साउथ वेल्स के प्रीमियर जैक लांग इसका फीता काटते कि उससे पहले ही फौजी वेश में दौड़ते आए एक घुड़सवार ने अपनी तलवार से वह फीता काटकर जनता की ओर से पुल का उद्घाटन कर दिया था। उसे गिरफ्तार करके और दोबारा रिबन बाँधकर पुल का औपचारिक उद्घाटन किया गया। खैर, ओपेरा हाउस बनने से पहले यह पुल आस्ट्रेलिया, विशेषकर सिडनी का अन्तर्राष्ट्रीय पहचान प्रतीक था। अब ओपेरा हाउस इस पर भारी पड़ रहा है, हालाँकि सिडनी हार्बर ब्रिज आज भी उतना ही दर्शनीय और लोकप्रिय है और साहसी पर्यटक चार सौ सीढ़ियाँ चढ़-उतरकर सिडनी हार्बर ब्रिज के चाप (आर्क) की रोमांचक यात्रा करने से नहीं चूकते ।

सिडनी का तीन-चौथाई आकर्षण हार्बर के इर्द-गिर्द ही फैला है-ओपेरा हाउस और हार्बर ब्रिज के अलावा कोआला और कंगारू के स्नेहिल सानिध्य वाला टरोंगा जू, हजारों समुद्री प्राणियों का रोचक संसार दिखाने वाला सिडनी एक्वेरियम और वाइल्ड लाइफ वर्ल्ड, कैप्टन कुक की आस्ट्रेलिया की खोज और बाद की कई प्राचीन समुद्री यात्राओं का इतिहास संजोए आस्ट्रेलियन नेशनल मेरीटाइम म्यूजियम, नेशनल बाटेनिक गार्डन, आदि आकर्षण हार्बर पर ही हैं। हार्बर किनारे के बेहतरीन रेस्त्रां सुबह से रात तक खान-पान के शौकीनों से गुलजार रहते हैं। ‘एब-ओरिजनल्स’ अर्थात आस्ट्रेलियाई मूल के आदिवासी अपने लोक-करतब दिखाने हार्बर पर ही जुटते हैं तो हिन्दुस्तानी कस्बों की तरह सड़क छाप सर्कस या करतब दिखाकर पैसा मांगने (कमाने) वाले फुटपाथिए-करामाती भी हमें सिडनी हार्बर पर ही मिले। हार्बर पर आप घण्टों बैठे रह सकते हैं, आस्ट्रेलिया की बीयर अथवा वाइन का निर्मल आनन्द ले सकते हैं और मन करे तो स्पीड बोट का रोमांच उठा सकते हैं, जो समुद्र में 80 किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से दौड़ते हुए सहसा पूरा ब्रेक लगाकर आपको लहरों पर चकरघिन्नी खिलाती और दाँएं-बाएं उछालती है। हमारे मुँह से तो चीख ही निकल गई थी और तीखा खारा पानी खुले मुँह में भर गया था। यह दुस्साहिक रोमांच पसंद न हो तो, आलीशान क्रूज भी हार्बर पर ही मौजूद हैं जो ढाई-तीन घण्टे की मादक यात्रा में बेहतरीन खान-पान, डांस और विविध मनोरंजन पेश करते हैं।

एक और रोमांचक आकर्षण सिडनी टावर है जो जमीन से 268 मीटर (879 फुट) ऊपर ले जाकर सिडनी का चौतरफा विहंगम दृश्य दिखाता है। अंतरिक्ष यात्री की सी पोशाक पहनाकर और कमर से बंधी जंजीरों को ‘स्काई वाक’ की रेलिंग से सुरक्षित कर आपको टावर के चारों ओर जैसे आकाश-मार्ग पर ही घुमाया जाता है। पैरों के नीचे शीशे की फर्श होती है जो हवा में खड़े होने की प्रतीति कराती है और ऊँचाई से डरने वालों की सांसें थाम देने को काफी है। हवा के तेज थपेड़ों के बीच टावर के चारों ओर घूमते हुए आप सिडनी के हर कोण से दर्शन करते हैं। प्रशान्त महासागर का नीला विस्तार अनन्त की ओर ले जाता है और हम दार्शनिक होने लगते हैं लेकिन फिर टावर की तेज रफ्तार लिफ्ट हमें 40 सेकेण्ड में 268 मीटर से जमीन पर उतार लाती है।

बोण्डाई से बोंटी बीच की कोई 4 किमी की पैदल यात्रा से हमारे सिडनी दर्शन का समापन होता है। सिडनी शहर से 8 किमी दूर आस्ट्रेलिया के सबसे सुन्दर समुद्र तटों में शुमार बोण्डाई से बोंटी तक का यह छोर सुनहरी रेत पर छोटी-बड़ी लहरों की अठखेलियों से लेकर चट्टानों पर उनके आक्रामक प्रहार तक का विविध नजरा पेश करता है। प्रशान्त महासागर के नीले विस्तार से उठती धवल-उच्छृंखल लहरों में तैरते, भीगते, बैठे-लेटे, नंगे-अधनंगे सैलानियों से पूरा तट भरा पड़ा है। भारी भीड़ के बावजूद समुद्र तट की स्वच्छता ध्यान खींचती है। स्वर्णिम रेत वाले इस बेहद खूबसूरत समुद्र तट पर तरह-तरह से अपनी ही मस्ती में डूबे लोगों को देखकर लगता है संसार में कहीं कोई कष्ट और अभाव नहीं है, आनन्द ही आनन्द है!

यहाँ यह सोचना भी जैसे इस आनन्द लोक में खलल डालना है। एक बड़ी शैतान लहर मुझे पूरा भिगोकर जैसे सचेत कर जाती है।