तो, सन् 2020 विदा हो रहा है। ‘कोविड-19’ महामारी ने इसे बहुत बुरा वर्ष बना दिया। कोरोना संक्रमण और उससे निपटने में हुई ज़्यादातियों की कड़वी यादों ने सब कुछ पीछे धकेल दिया। बेहिसाब लोग बेरोजगार हुए, कई जानें गईं, युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक जिन्होंने अभी समाज को काफी कुछ देना था। मृत्यु एक दिन आनी होती है और उसका एक बहाना भी होता है लेकिन कोविड-19 से मौतें इसलिए बहुत दर्दनाक हुईं कि अंतिम समय में अपना परिवार और बहुत करीबी भी पास नहीं आ सके। मरीज बिल्कुल अकेला, जिसकी न कराह कोई सुनने वाला, न ढाढ़स बंधाने के लिए कोई सिर पर हाथ रखने वाला। अंतिम दर्शन भी कोई नहीं कर सकता। मृत्यु से कहीं अधिक यह अकेलापन डराने वाला है। क्या 2020 बीतने के साथ यह खौफनाक हालात बीत जाएंगे?
जो स्थितियां हैं और जैसी खबरें आ रही हैं, उससे
ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता। वैसे भी साल-महीने-दिन-घण्टे-मिनट-सेकेण्ड मनुष्य ने
अपनी सुविधा के लिए बना लिए हैं। वक्त का अपना ऐसा बंटवारा नहीं है। वह नहीं
पहचानता साल 2020 या 2021। वह अपनी निश्चित रफतार चलता जाता है। एक साल से दूसरे
साल में अचानक एक छलांग नहीं लगाता कि पिछला कुछ वहीं भूल या छोड़ आए और बिल्कुल
नया-नया हमारे सामने खड़ा हो जाए कि लो जी, मैं एक नए सिरे से
कोरा-कोरा आ गया! इसलिए हम चाहे जितने अच्छे और शुभ नव वर्ष की कामना करें,
2020 साथ-साथ चला आएगा और उसके साथ कोरोना त्रासदी भी। तनिक राहत की
सांस ले सकते हैं कि नए साल में इसका टीका आ जाएगा, हालांकि वह
भी फिलहाल कई अनिश्चितताओं के साथ आ रहा है।
ब्रिटेन से आ रही खबरों ने नई चुनौतियां पेश कर दी हैं। वहां
इसका ऐसा रूप मिला है जो बहुत तेजी से फैल रहा है। दुनिया टीका बन जाने से खुश हो
रही थी लेकिन वायरस ने घोषित कर दिया है कि वह भी अपने बचाव के लिए रूप बदल हा है।
वायरस के नए रूप पर टीके कितने कारगर होंगे, कुछ पता नहीं। कुल मिलाकर यह महामारी और
उसकी त्रासदी 2021 में हमारे साथ रहनी है।
इस दुनिया के नियंताओं ने पूरे साल इस बारे में कितना सोचा
कि कई-कई वायरस मानव के लिए बड़े से बड़ा खतरा क्यों बनते जा रहे हैं? असंख्य
वायरस इस धरती पर हम से भी पहले से हैं। वह मनुष्यों के लिए ही नहीं इस धरती के
तमाम जीव-जंतुओं-वंस्पतियों के लिए भी हैं। मनुष्य ही धीरे-धीरे उनकी चपेट में
क्यों आता चला गया? हमने अपना जीवन ऐसा क्या बना लिया कि हम
सबसे नाजुक बनते आए? ठीक है कि हमने वैज्ञानिक प्रगति से
तमाम जीवाणुओं-वायरसों से बचाव के तरीके खोज लिए लेकिन क्या इसी आधार पर हमें
प्रकृति से दुश्मनी मोल लेते रहना चाहिए?
सन 2020 में वायरस निरोधी टीका खोजने-बनाने में सम्पूर्ण
प्रतिभा झोंक देने के अलावा जीवन शैली और विकास की अवधारणा पर कितना गौर किया गया? क्या
इसमें थोड़ा भी बदलाव करने के बारे में सोचा गया? या पूरी दुनिया
इसी में खुश हो जाने वाली है कि बहुत शीघ्र हमने इसका टीका खोज लिया और वायरस
कितना भी बहुरूपिया बन जाए उस पर हम विजय पा ही लेंगे? सब
कुछ ऐसा ही चलता रहा तो कई और वायरस इससे भी खतरनाक बनकर सामने आ जाएंगे।
यह धरती या सृष्टि सिर्फ मनुष्य के लिए नहीं बनी लेकिन हम इसे अपना गुलाम बनाने में लगे रहे और खुश होते रहे कि यही प्रगति है। अब उसकी कीमत चुका रहे हैं और पलट कर देखने को तैयार नहीं।
(सिटी तमाशा, नभाटा, 27 दिसम्बर, 2020)