कोरोना काल में स्कूल बंद हैं। मार्च मध्य से बच्चे घर बैठे हैं। जब यह निश्चित हो गया कि कोरोना से शीघ्र छुटकारा नहीं मिलने वाला है तो ‘ऑनलाइन पढ़ाई’ पर जोर दिया गया। शहरों-कस्बों के निजी और बड़े स्कूलों के लिए तो शायद बहुत मुश्किल नहीं हुई। बच्चे ऑनलाइन पढ़ने लगे। फिर शिकायतें आने लगीं कि हजारों परिवार ऐसे हैं जिनके पास स्मार्ट फोन हैं ही नहीं। वे ऑनलाइन कैसे पढ़ें। कुछ परिवारों के पास एक स्मार्ट फोन था तो वह बच्चों के लिए घर में छोड़ा जाने लगा।
पिछले हफ्ते एक ऐसी खबर आई जिसने ऑनलाइन पढ़ाई के इस
शोर-शराबे की ही नहीं, सरकारी कार्य शैली की असलियत खोल दी। बहुत
समय नहीं हुआ जब हमारे प्रदेश में सरकारी स्कूलों की ऑनलाइन निगरानी के लिए ‘प्रेरणा ऐप’ जारी किया गया था। शुरू में इस ऐप का कई
कारणों से विरोध हुआ, जिनमें एक कारण पारदर्शिता होना भी था।
प्रेरणा ऐप में मास्टरों की हाजिरी से लेकर स्कूलों के सारे विवरण दर्ज होने थे।
इसी विवरण की समीक्षा के दौरान हाल ही में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि
उत्तर प्रदेश के 28,230 सरकारी स्कूलों में बिजली का कनेक्शन
ही नहीं है।
यह स्वयं स्कूली शिक्षा के महानिदेशक विजय किरण आनंद ने बताया
है। चूंकि इतने सारे स्कूलों में बिजली ही नहीं है तो ऑनलाइन पढ़ाई कैसे हो? अध्यापक
अपने घर से पढ़ा रहे हों तो बात अलग है। खैर, बात ऑनलाइन पढ़ाई
से आगे जाती है। सन 2020 में जबकि राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकारें सभी गांवों
तक बिजली पहुंचा देने का दावा कर चुकी हों तो ऐसा कैसे हुआ कि अट्ठाईस हजार से
अधिक स्कूल बिना बिजली के रह गए?
आधिकारिक जानकारी में इसका कारण भी बताया गया है। ये स्कूल
बिजली की लाइन से चालीस मीटर या उससे भी दूर हैं, इसलिए वे बिजली विभाग ने उन्हें
कनेक्शन नहीं दिया। चालीस मीटर दूर स्कूल भवन तक बिजली पहुंचाने के लिए कितने
खम्भे लगते होंगे? दो या अधिकतम तीन। बेचारे स्कूलों को
दो-तीन बिजली के खम्भे भी क्यों नहीं दिए जा सके, यह स्पष्ट
नहीं किया गया है। ‘विद्युतीकरण’ की
सरकारी परिभाषा और उसके बजट की तकनीकी दिक्कतें रही होंगी शायद। सरकारी विभाग ऐसे
ही काम करते हैं।
बिजली-वंचित इन स्कूलों तक दो-तीन खम्भे कैसे पहुंचाए जाएं, इसका
रास्ता स्वयं महानिदेशक विजय करण ने बताया है। सन 2019 के लोक सभा चुनाव में
निर्वाचन आयोग ने ऐसे स्कूलों के लिए सरकार को कुछ धन आवंटित किया था ताकि उससे स्कूलों
को बिजली कनेक्शन दिया जा सके। निर्वाचन आयोग को स्कूलों में मतदान केंद्र बनाने थे
और ईवीएम लगाने के लिए बिजली चाहिए थी, इसलिए। अब स्कूलों से
कहा गया है कि अगर निर्वाचन आयोग का दिया धन पूरा खर्च न हुआ होगा तो उससे खम्भे
लगावाए जा सकते हैं। यह सवाल नहीं पूछा जा रहा कि जब आयोग ने धन दे दिया था तो स्कूलों
तक खम्भे क्यों नहीं लगाए गए?
अब ऐसी खबरें चौंकाती नहीं हैं। यह हमारे सरकारी तंत्र के
काम करने का आम तरीका है। यह आधिकारिक मानदण्ड है कि यदि किसी गांव के ऊपर से
बिजली की लाइन जा रही है तो वह गांव ‘विद्युतीकृत’ मान लिया
जाता है, एक भी घर में कनेक्शन हो या नहीं। इसलिए इस पर
आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि बड़ी संख्या में स्कूल बिजली के बिना क्यों हैं। वैसे ही
जैसे सुबह-सुबह लोटा या बोतल लेकर दिशा मैदान को जाते लोगों को देखकर ‘खुले में शौच से मुक्त भारत’ के दावे पर शंका नहीं
की जा सकती।
(सिटी तमाशा, 26 सितम्बर, 2020)