भारतीय जनता पार्टी के नेता आम
तौर पर यह नहीं कहते कि उनसे या उनकी सरकार से भी कोई चूक हो सकती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह तो कतई नहीं. पिछले दिनों दूसरे कार्यकाल
का पहला वर्ष पूरा होने पर भी पहले की तरह उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियां ही खूब
गिनाईं. एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर उन्होंने स्वाभाविक ही उसे पहले कार्यकाल के
पांच वर्षों से जोड़ा और कहा कि उपल्बधियां तो पूरे छह साल की देखिए. अमित शाह ने
अपने एक लेख में यह भी दावा किया था कि भाजपा सरकार ने छह साल साल में (कांग्रेस
की) साठ साल की गड़बड़ियों को दुरस्त कर डाला है. शुरू से ही यह मोदी और शाह की
आक्रामक राजनीति का हिस्सा रहा है.
बीते सोमवार को अमित शाह ने
पहली बार कोरोना महामारी से निपटने के संदर्भ में यह कहकर कि “हमसे गलती हुई होगी, हम कहीं कम पड़ गए होंगे, कुछ नहीं कर पाए
होंगे...” अपनी आक्रामक राजनीति को
नया आयाम दे दिया. यह वास्तव में अपनी सरकार की कमियां मानने से अधिक विपक्ष पर और
हमलावर होना है क्योंकि इसके आगे उन्होंने विपक्ष के सामने चुनौती फेंकी- “मगर
आपने क्या किया? कोई स्वीडन में बात करता है, अंग्रेजी में, देश की कोरोना की लड़ाई लड़ने के लिए, कोई अमेरिका में
बात करता है.. आपने क्या किया, यह हिसाब तो जनता को दो
जरा...”
स्पष्टत: अमित शाह का हमला कांग्रेस और मुख्य रूप से राहुल गांधी
पर है, जिन्होंने इस बीच कुछ विशेषज्ञों से ऑनलाइन बात की और उसे प्रचारित किया.
विशेषज्ञों से राहुल की इन वार्ताओं में मोदी सरकार के कतिपय कदमों की, विशेष रूप से आर्थिक पैकेज में नकद राशि की बजाय ऋण देने का ऐलान करने और
कामगारों की घर वापसी के कुप्रबन्धन की आलोचना हुई थी. शाह का इशारा उसी तरफ था.
विपक्ष की तरफ यह सवाल उछाल कर कि ‘आपने क्या किया?’ शाह ने पूरे विपक्ष को खूब घेरा है.
भारतीय राजनैतिक मंच पर पिछले कुछ वर्षों से केंद्र और कई
राज्यों में सत्तारूढ भाजपा के सामने मुख्य विरोधी दल कांग्रेस समेत भारतीय
सम्पूर्ण विपक्ष की जो स्थिति है उसमें आशा कम ही है कि इस सवाल का कोई सटीक जवाब
आएगा. वैसे तो कोरोना महामारी का संकट काल हो या सामान्य स्थितियां, कुछ
करने का मूल दायित्व सरकार का ही होता है. सवाल भी उसी से किया जाना चाहिए लेकिन
विपक्ष अपने उत्तरदायित्व से कैसे बच सकता है?
कोरोना के कारण लम्बी बंदी से लाचार कामगार जिन हालात में
वापस लौटने को मजबूर हुए, उस पर बहुत सारे सवाल उठने स्वाभाविक हैं.
सरकार अगर इस स्थिति के आकलन और फिर उसे सम्भालने में चूक कर गई तो क्या विपक्ष ने
बंदी घोषित होते ही सरकार को आगाह किया था कि कैसी विषम स्थिति आ सकती है? अगर सरकार यह भांप नहीं सकी थी तो क्या विपक्ष को पता था कि देश में कितनी
बड़ी संख्या में कामगार दूसरे-दूसरे राज्यों में मजदूरी करने जाते हैं और कामबंदी
में बिना दिहाड़ी के उनके सामने कैसी विकट स्थिति आ सकती है? सच
यह है कि कामगारों का यह विशाल भारत पूरी भारतीय राजनीति के लिए अदृश्य था. यह
वर्तमान राजनीति पर एक तीखी टिप्पणी है जो बताती है कि आज के राजनैतिक दल और नेता
आम जन और उनके हालात से कितना कट गए हैं.
आपातकाल दलगत राजनीति के लिए नहीं होता. कोरोना महामारी ऐसा
ही कठिन समय है. ऐसे में आशा की जाती है कि सभी राजनैतिक दल मिलकर एक तय दिशा में
काम करेंगे, जैसा कि युद्ध काल में होता है. मान लिया कि सरकार ने इस आपदा
से निपटने की रणनीति बनाने में विपक्ष को आमंत्रित नहीं किया लेकिन क्या विपक्ष ने
ऐसी पेशकश की? कोई रणनीति सुझाई?
प्रधानमंत्री मोदी ने एक बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया. उसकी
खूबियों या कमियों की बात अलग, लेकिन जिस कांग्रेस पार्टी के पास मनमोहन
सिंह और चिदम्बरम जैसे अर्थशास्त्री-राजनेता हैं, क्या उसने
कोई वैकल्पिक आर्थिक उपाय देश के सामने पेश किए? सरकार उसे
मानती या नहीं मानती लेकिन मुख्य विरोधी दल का कोई दायित्व बनता था? अमित शाह विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करके स्वाभाविक ही
राजनीति कर रहे हैं लेकिन राजनीतिक चाल के रूप में ही सही, कांग्रेस
या बाकी विपक्ष ने क्या किया? विपक्ष किस ठोस आधार पर जनता
के सामने जाएगा?
कोरोना काल ने बहुत असामान्य स्थितियां खड़ी कर दी हैं.
आर्थिक चुनौतियां सबसे बड़ी हैं. देशबंदी बहुत लम्बी नहीं खींची जा सकती थी, इसलिए
आर्थिक गतिविधियों को क्रमश: खोला जा रहा है. इसे कैसे बेहतर और सुरक्षित ढंग से
खोला जाए? खुलते उद्योगों को कामगारों का संकट होने वाला है, उसका क्या उपाय होगा? क्या घर लौटे कामगारों के लिए
वहीं कुछ लघु-उद्योग-धंधे शुरू किए जा सकते हैं जो गांव-कस्बों को धीरे-धीरे
स्वावलम्बी बनाएं? स्कूलों, शिक्षा
संस्थानों की परीक्षाओं का क्या हो कि प्रतियोगी परीक्षाओं में विद्यार्थियों को
राष्ट्रीय स्तर पर एक समान धरातल मिले? ऐसे कई महत्त्वपूर्ण
सवाल उपस्थित हैं. क्या विपक्ष इस बारे में कुछ ठोस सुझाव पेश नहीं कर सकता?
भाजपा ने कोरोना संक्रमण बढ़ने के दौर में भी बिहार, उड़ीसा
और बंगाल के लिए अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है. अमित शाह इन राज्यों की जनता
को ‘वर्चुअल रैली’ से सम्बोधित कर रहे
हैं. विपक्ष से सवाल करते हुए ऊपर उनके जिस भाषण का उल्लेख है, वह दिल्ली से उड़ीसा के लिए वर्चुअल रैली में ही दिया गया. राजनैतिक चालों
की ही बात करें तो भी विपक्ष भाजपा से मुकाबले के लिए क्या तैयारियां कर रहा है?
पिछले कुछ साल से विपक्ष की मुख्य समस्या ही यह है कि वह
भाजपा के पीछे-पीछे चल रहा है, और दूर-दूर. ऐसा एक भी मुद्दा देखने में
नहीं आया जिसमें विपक्ष ने मोदी-शाह की जोड़ी को पीछे छोड़ा हो. सरकार की गलतियों को
भी वे बड़ा मुद्दा नहीं बना पाते. सच तो यह है कि भाजपा की अपार सफलता के पीछे
विपक्ष के बिखराव और उसकी रणनीतिक असफलता का भी बड़ा हाथ है. राष्ट्रीय स्तर पर
कांग्रेस ही है जो उसका मुकाबला कर सकती है लेकिन वह अपना ही घर दुरुस्त नहीं कर
पा रही. राज्य सभा के चुनाव होने वाले हैं और गुजरात में उसके विधायक भाजपा में जा
रहे. मध्य प्रदेश की अपनी सरकार वह बचा नहीं पाई. भगदड़ का यह सिलसिला उससे रुक नहीं
रहा. लम्बे समय से उसके पास पूर्णकालिक अध्यक्ष तक नहीं है.
ऐसे में क्या कांग्रेस अथवा विपक्ष अमित शाह को कोई जवाब दे
पाएगा?
(प्रभात खबर, 10 जून, 2020)