Monday, November 04, 2024

काथ/ भिसमांत

 

आज रत्तै ब्याण बुड़ियालि टोकि देयुं कूंछा- त दाड़ि क्या तैं पाइ राखी? काटण क्या नि रया?”

मि बुड़ि कैं चाय्यैं रै गयुं। बरसन है ग्यान, त म्यार मुख उज्याणि चानी न्हांति। दाड़ि काटुं भलै, पाउं भलै, थोव लै झुठ-पाट लागि रौ भलै, मूख उसै रौ भलै, तै हुं क्याप भय। जि कूंण होल, कै देलि। मुखै तरब मांतर चाण नि भय। मि कैं ले कि करण है रौ। नि चानी, झन चाओ। मि ले कां चाणयुं वीक मुख उज्याणि! रूनेर एक्कै दगाड़ भयां, एक्कै कम्र में। एक्कै दिसाण में सितण ले रयां, मांतर मूख देखां-देखी आब हुनेर नि भ्ये। नै-नै, नज़र त जानी हुन्येलि, देखण कूनान जै थैं, उ मांतर हुनेर नि भय। नज़र जाण और देखण में फरक हुनेर भय। समझणौछा म्येरि बात? 

उ दिनानै बात और छि, जब ज्वान छियां। मुखै चै रूनेर भयां एक-दुहरक।

आज त्वील ततणि चकव बिंदी कि लगै?’

आज तुमर मूख सुकि जौ क्या रौ?’

त्यार गलाड़ में क्यालै चटकाछै, ललाङ-ललाङ जै है रौ?’

त दाड़ि क्या नि काटणया, खुम जा बुड़नान!

, कत्थप गाय उं दिन! आब त भली कै बुड़ी गयां। कभै हमि ले ज्वान छियां, यो लै फाम नि रै ग्ये। आब कै कौ मूख उसै रौ भलै, कै का गलाड़ में क्यालै चटका भलै, क्याप्प भय! जब जाणै ओ इजा-ओ बबा’, नौराट-हौराट नै सुणीन, तब जाणे को चां दुहरा उज्याणि! तबै आज रत्तै ब्याण जब बुड़ियालि कौ- त दाड़ि क्या नि काटणया?’ त मि उकैं चाय्यै रै गयुं। सोच पड़ि गाय। बेई रात कैं नीन में म्यार दाड़िक खुम त नि बुड़ि गाय तै कैं! उसी, तस हुणाक क्वे आसर नि भय। रात पीठ करि बेर सितनेर भयां। रत्तै ले पीठै दिखां हुनेर भ्ये।  

खैर, बुड़ि त मुबाइल थामि पर-पर जानी रै। वीक हर्ज हुणौछि। दिन भरि मुबाइल या टी वी, इनरै मुख देखण भय वील! मि कैं मांतर हंसि जै ऐ पड़ी। कभै न कभै, आज बुड़ियालि म्यार मुख उज्याणि चाय हुन्यल! कि फाम ऐ जाणि उ कैं! मील हाथलि आपणि दाड़ि मलाशी। चार-पांच दिन है ग्या हुन्याल ब्लेड नि लगाईं। को लागि रूं रोज-रोज खरोड़ण में! नै दफ्तर जाण, न कैं ब्या-बरात में। फिर ले हफ्त में द्वि फ्यार ब्लेड लगूंनै छ्युं। आज बुड़ियालि कै हालौ त खरोड़णै भय। जाणि वीक मन में कि आछ!

बाथरूम में जै बेर आरसी सामणि ठाड़ भयुं कूंछा। आरसी भितेर क्वे औरै भैठ्युं भय। आज जाणे यै में आपणै मूख देखींछि पैं, आज क्वे दुहरै मैंस चायु भय मि कैं। यसि अणहोति! धाक्क है ग्ये कूंछा। नि होली पैं? मील आरसी लै हाथ लगा। टैण-टैण, चिफव-चिफव आरसी जसै चितै। हुणैकी आरसी भ्ये उ। कब्बै बटी वैं दिवार में द्वि कीलनलि जेड़ीण भ्ये। कां जांछि यथ-उथ, कसिक जांछि! पै, हला आज यो आरसी कैं भ्यो कि! स्कूली दिनन में मुणी साइंस ले पढ़ियै भय, विज्ञान कूंछी जैछैं। मिररमें वी देखीनेर भय जो वीक सामणि होल। पक्क सिद्दांत भय यो। क्वे नई खोज त है नि रै। पैं, म्येरि आरसी कैं कि भ्यो हुन्यल? आज बुड़िया कंय्यैलि यो आरसी ले गजबजी ग्ये भले! नन्तर विज्ञानक सिद्दांत उलटणौक क्वे सवालै नि भय। या, म्यार आंखन में के दोख है ग्यो भलै।

मील दुबर्यां चा आरसी उज्याणि। द्वि-तीन बखत आंख मिचान। बुड़्यांकाव आंखन में जाव ले लागि जानेरै भय। मोती बिंद कूनान जै थैं। उसी त, पांचेक बरस पैली आपरेशन ले करै हाछी। द्विय्यै आंखन में सुकिल जाव पड़ि ग्योछी। फिर साफ देखीण भै गय। आज जाणे क्वे दिक्कत-परीशानी नि भ्ये। कैं फिर पड़ि ग्योछै जाव? आंख पोछान। एक चाव ल्ही बेर आरसी कैं ले पोछौ। फिर ले आरसी भितेर क्वे दुहरै मैंस देखीण लाग। मि आंखन ताणि बेर चाण बैठ्युं, को हुन्यल त? जो ले छन, बुड़ै मैंस छन। मि है ले बांकि बुड़ देखीणान। ख्वारा बाव सगी रान। जुङ पट्ट सुकिल छन। गलाड़ पिचकी बेर मुख भितेर जा पैठ रान। दंतपाटि मांतर पुरि देखीणै। म्यर ले एक दांत नि टुटि रय आजि।

“को छा ला तुमि बुड़ मैंस? म्येरि आरसी भितेर कां बै आछा? कसिक आछा? म्येरि चार ख्वर ले हलकूणौछा, आंख ले मिचणौछा, कानि ले फरकूणौछा। नानतिनानक खेल है रानै? यां म्येरि गाव-गाव ऐ रै!”

चै रयुं कूंछा। धैं के बुलानानै! उं त के नि बुलाय, म्यार मन में मांतर सुगबुग जै हुणि लागि। क्याप अन्वार जै पछ्याणी मील। को हुन्यल? को हुन्यल? जो ले छन, पछ्याणैका छन। नानतिननकि जै अन्वार उणै...। उ बखतै, डिमाग में चाल जै चमकी कूंछा। मि अचकची गयुं।

ओ इजा, यो त बौज्यू छन! होय-होय, बौज्यू! बाबूकूनेर भयुं मि!

“बाबू, आज यतु बरसन बाद कि देखां भौछा? उ ले आरसी भितेर बै? कधली स्वीण्यां त उनै छिया, आज यां… ?”

बौज्यून मरीं तीस बरस है बांकि है ग्यान। ज्वानी भरि यां लखनौ में नौकरी करी। इजालि घर पौर्या। बाबू हर म्हैण मनिआडर करनेर भाय। इजालि पहाड़ में खेति-पाति कमै। गोर-बाछ, नानतिन सैंत। च्येलिन कैं आपणै जस सीप सिखाइ। च्यालन कैं परदेस भ्यज। हमि द्वि भै बाबू दगाड़ लखनौ रयां। स्कूल-कालेज पढ़ौ। यैं नौकरी लागी। बाबू रिटायर है बेर घरै ग्यान। हमि द्वि भै परदेस में, बुड़ इज-बौज्यू पहाड़ में। हमार दगाड़ नि राय। वैं मरुंल, आपण देइ में कूनेर भाय। उस्सै भ्यो ले। द्विय्यै वैं मरान। बाबू पैली ग्यान। इज चारेक बरस पछा। अस्पताल-हस्पतालक झंझट नि भय। हमन तार मिलौ, तब गयां। गति-किरिया करि आयां। हमिल नौकरी करि, यैं लखनौ में कुड़ बणै ल्हे। यैं नानतिन पाव, पढ़ाइ। रूंन-रूंनै यैं रै गयां। वां पहाड़ में कुड़ खन्यार हुनै ग्यो। पैली साल-द्वि साल में पुज-पाठै तैं जानै छियां। आब यैं पाड़ि ल्हिनुं द्याप्तनौ नौं। वां ढुङ-पाथर ले नि रै ग्या हुन्याल। हमि सबै पहाड़िनकि योई काथ भ्ये। पहाड़ै फाम ऊनी छ। किलै नि आलि! खन्यार हईं आपड़ि कुड़ स्वीण्यां देखीं कभतै। कल्ज में औरि जै है जांछि। पैं कि करछा। जमानै यस ऐ ग्यो। ... खैर, पितरनक आशिरवाद छ। नानतिन भलि जाग लागि ग्यान। ब्या-काज ले भलि कै निपटि गाय। पैं, मील आज जाणे नि सुणि कि कैका बौज्यू वीक आरसी भितेर पैठान कै!

“के भूल-चूक है ग्ये बाबू, त माफ करिया। तुमरि संतान भयां। ... शिबौ, ततु कमजोर क्या है ग्योछा? आंख पट्ट छिर जै रान तुमार... गलाड़ पिचकि बेर खाप भितेर न्है ग्यान... आंखना मुणि चिमाड़ पड़ि राननहरा हाड़ देखां है ग्यान...। खाण-पिण भलि कै नि करना कि? के कमी है रै छ? सांचि मानिया बाबू, हमिल के कमी नि करि राखि। तिथिक ले सराद करनै छियां। सरदान में तो हुनेरै भय। द्विय्यै बखत बामण उंनान। भलौ कै बैकर भरि ल्हि जानान। एक थालि भरि बेर बासमती चावौमांसै दाव भलि मानछ्या पिसुं भय, हल्द-खुश्याणि-नूण, सबै चीज-बस्त दिनुं... साग-पात, फल-फराव ले भयै। ... तुमि सांचि नि मानौ बाबू, एक किलो स्यो द्वि सौ रुपैं है कम नि उणै। सराद में भलै-भलै धरण भय। बामण खुश, त पितर खुश। ... क्याव बज्यूण सत्तर रुपैं दर्जन है ग्यान... अनार बिना सराद नै हुन कूनान बामण। उ ले धरणै भय। दूद-दै... आदु किलो खोयाकि मिठै। दुसरि मिठै में जुठ-पाठ है जांछ बल। ... एक गिलास दूद बामण ले पी जानान... चहा नि पीन, छेरु लागि जांछ बल...। के कमी नि करना हमि बाबू। तुमारै परसाद कमै राखौ। तुमि खुशि हई चांछा। पैं तुमि भलि कै नि खाणया भलै? इज पकूनी हुन्येलि। वीक हाथ में औरी स्वाद छ, कूंछिया। आपणि ब्वारी हाथक भल नि लागनेर भय तुमन कैं।

“त फाटीं कुर्त क्या लगै राखौ, बाबू? योई सरादन में एक नईं धोति, एक नई कुर्त दी राखछि...। तिथि सरादन में पैंट-कमीजक कप्ड़ धरछि। नि सिणाय हुन्यल। मैंस देखला कि कौल! त बड़ि खराब सार छ तुमरि। नई-नई लुकुड़ लुकै बेर फाटीं लगूनेर भया। तुमरि ब्वारि कतु संदर कुर्त-पैजाम लूनेर भ्ये तुमनै तैं, कभतै पैंट-कमीज ले लूंछि ... पै तुमि उनन कैं अल्मारि में लुकै बेर पुराण लगै राखनेर भया। कतु वील कय, कतु इज कूनेर भ्ये। एक-द्वि फ्यार मि ले नाराज जस भयुं। पै तुमि पुराणै लगै राखनेर भया ...। घर भितेर कि लगूं नईं लुकुड़?’ यस कै दिनेर भया। ... कै दिनैं तैं धरण भाय उं नई-नई लुकुड़? … लगाई करो।

“बाबू, त चशम ढिल-ढाल जस देखीणौ तुमर? एक तरब बै तलि कै लटकि रौ। कभतै दुकान में जै बेर सुदारि मांगना। म्यर चशम ले बज्यूण यो तस्सै है रौ। बुं कानै तरब बै तलि कै लटकि रूंछ। कतुकै सिद करो, आजि उस्सै। फरेम खराब है ग्यो क्याप। है ले कि ग्यो पुराण। जै साल नातिल इंटर पास करछि, उ साल बणाछि। आब उ नौकरी में न्है ग्यो भ्यार। परारि साल दिसाण में म्यारै कयां च्यापी ग्योछि। एक कमानि ढिल है ग्ये। ढिल कि है ग्ये, टुटणियै छ। मनै-मन सोचूं, एक नई फरेम लगै ल्ह्युं कै। फिर सोचुं, कि करण है रौ। मीलै जै कि बाचण है रान म्वाट-म्वाट किताब! रत्तै मणी अखबार देखणै तैं चैं। चली रौछ। बुड़ि पैली कड़कड़ाट लगै राखंछि- नई चशम बणाओ, आंखनै जांच कराओ, भल-भल फरेम लगाओ। आब उ ले कटकी रूंछि। आपण चशम वीक ठीक हईं चैं। मणी ले ढिल-ढाल भयो त ब्वारी दगाड़ बजार न्है जांछि। ठीक करै लूंछि। म्यर चशम बिगड़ी बटी वीक द्वि नई फरेम ऐ ग्यान। म्यर आजि ड्वर बादि बेर चली रौछ। तुमिल ले त ड्वरै बादि राखौ क्याप। भल नि देखी रय बाबू। कभतै सुदारि लाया। भ्यार जाण पट्ट छाड़ि है शैत तुमुल ले! म्यर मन ले बिल्कुल नि हुन भ्यार जाणौक। औरी कलाट-भौड़ाट है रूंछ भ्यार पन। गाड़िनै औरी पूं-पूं-टीं-टीं, कान कली जानान। कां बै ऐ ग्यान यतु मैंस, बबा हो! सड़क पन खुट धरणै जाग नि भ्ये। हिटण में क्वे यै तरब बै धांक मारौं, क्वे वि तरब बै ढ्यस लगूंछ। छि, आग लागौ यो शहरना ख्वार!

“मि बुड़ि कूनेर भयुं, पैं ब्वारि तुमरि आजि टणिटणि छ। सिद कै हिटैं। रत्तै ब्याण नै-ध्वै, ख्वर कटोरि, लटि बणै, धोति लगै, फिट-फाटि है जांछि। रात सितणै तैं मांतर मैक्सी चैं। ब्वारिल सिखै राखौ यो चलन। अम्मा जी, सलवार-कुर्ता भी पहना करो, आराम रहेगा’, उ त यस ले कूंछि। पैं बुड़ियालि त फैशन नि सिख राख आजि। भोलकि को जाणौ? कधली छुट्टी दिन ब्वारि दगै सनीमा ले देखि ऊंछि। बिरादरना यां ले जै ऊंनी द्विय्यै। अड़ोस-पड़ोस ऊंण-जाण भयै। बांकि टैम मुबाइल भय या टी वी। मि कैं त टीवी-मुबाइल भल नि लागन, बाबू! जब जाणे तुमर रेड्डु छि, वी सुणनेर भयुं। ब्याव कै पहाड़ि परोगराम ऊंछि। आहा!, कास संदर गीत सुणीछि! रत्तै-ब्याव समाचार सुणनेर भयुं। जि बिगड़ हुन्यल रांडौ, पट्ट बुजी ग्यो। च्याल थैं कौछी- यार, सुदारि लै दिनै धैं। उ हंसण लागौ। म्येरि बातन सुणि सब्बै हंसनान। आब रेड्डुवक जमान न्हांति बल। मुबाइल में सब तिरब छन कूनान- रेड्डु, टीवी, फोन, क्याप-क्याप। तुमरि ब्वारि सब चीजै सीप सिखि ल्हिंछि। पैं म्यार कयां नि हुन। कभतै नाति-नातिणि फोन करनान त द्वि आंखर बात जरूर करि ल्हिनेर भयुं। मुबाइल में उनर मूख देखी गयो, निशाश फिटी जां मणी।

“बाबू, ठाड़-ठाड़ै पटै ग्ये हुन्याला। त आरसी में भैटणै जाग ले कां भ्ये पैं। म्यार खुट ले पटै ग्यान। सकत नि रै ग्ये आब। नै-नै, खाण-पिण भलै छ। क्वे कमी नि भ्ये। पैं, पेटै बजी ग्यो। के नि पचन भलि कै। दूद पियो, दस्त लागि जानान। दै खायो, पेट चुकी जांछ। कधलि झुलसैन है जांछि। खाण-पिण जै नि पचौ, क्यालि ऊंछि सकत? बांकि ठाड़ नि रै सकन्युं। खुट कामण भै जानान। लूणै तैं, च्याल-ब्वारि दवै ले लूनै छन। डाकटर कैं ले देखा एक बखत। वील रंङ-रंङाक गोइ लेखि द्यान। उं ले खायै छन। क्ये फैद जस नि भय। कभतै लागौं, आब दिन पुरी ग्यान कै। को जाणौ! तुमि नि गया ठाड़-ठाड़ै! यो पराणिक कि भरोस, बाबू! ... मि दाड़ि काटुंल कै ऐ छ्युं, आरसी में तुमन दगै भेट जै है पड़ी!

“जागिया हां, द्वार लै यो खट-खट को करणौ? बुड़ियै हुन्येलि...। कि कुणै धैं।”

मील द्वार उघाड़ छिया त बुड़ियै छि ठाड़ि सामणि। कूण बैठी- “कि करणौछा यां? मि सब कम्रन में चै आयुं। बाथरूम में गोठीण भया! आओ भ्यार, फल खाला।”

मील कौ- “अरे सुण त... सुणनी कन... त्वील कौछी दाड़ि काटो कै। मि यां आयु त बौज्यू भेटी गाय आरसी में। देख धैं।”

“कि है ग्यो तुमार डिमाग कैं! कि कुणौछा तस?”

“आरसी में चा धैं। बाबू छन। पैलाग कौ।”

“आब यों भली कै पगली ग्यान रे...।” बुड़ियालि आपण कपाव लै हाथ लगा। फिर ले ऐ बेर आरसी सामणि ठाड़ि है ग्ये- “कां छन बुबोज्यू? कि है ग्यो तुमन कैं?”

मील आरसी में चाय। बुड़ियाक दगाड़ बाबू ठाड़ हई भाय- “त को छ त्यार दगाड़? बाबू न्हांतिनै पैं?”

“हे भगवान! के रथ भयो इनरि बातनौक! ... अरे, तुमि छा यो म्यार दगाड़ ठाड़! उं कां बै आल आरसी में! तुमै देखीण भै ग्योछा आपण बाबू जास! ऐन-मैन बुबोज्यू!” बुड़ी हंसण भै ग्ये। हंसन-हंसनै भ्यार जानी रै।

कि कुणै त? मि पगली रयु या त पगली रै? आरसी में बाबू नै, मि छ्युं कुणै! हद्द है ग्ये! मि ऐन-मैन बाबू जस देखीण भै गयुं बल!

हुड़भ्यासन जस ठाड़ै रै गयुं कूंछा। कम्र में बुड़ि यकलै हंसण लागि रै। हंसन-हंसनै बौई जै रै। च्याल-ब्वारि घर में हुना, उनन कैं बतूनि। सब्बै हंसन। पैं, मि कि करुं, तुमि बताओ धैं? तुमन कैं ले भ्योछै कभतै यस भिसमांत?

....

- नवीन जोशी, फोन- 9793702888 (कुमगढ़', अक्तूबर-नवम्बर, 2024) में प्रकाशित)