Thursday, December 17, 2015

सिटी तमाशा / सॉरी, समय बहुत कम है, कृपया संक्षेप में कहें!


मुख्य अतिथि, अति विशिष्ट अतिथि, दो-एक विशिष्ट अतिथि भी. अध्यक्ष महोदय तो हैं ही. फूलों से सजा मंच और बढ़िया कुर्सियां. मंच के पीछे सुंदर छपाई में संस्था व अतिथियों के नाम के साथ चर्चा का विषय. कार्यक्रम समय से शुरू होगा इसकी किसी को उम्मीद नहीं रहती. अतिथि यह निश्चित जानकर देर से आते हैं. जो दुर्घटनावश समय पर आ गए वे आयोजक को चकित करते हैं, कभी खुद को, कभी मंजर को हेरते हैं.

संचालक चंद शेर और मुक्तक दोहराने में लगे हैं, जो अतिथियों की नज़र करने हैं. माइक टेस्ट हो रहा है. आधा-पौन घंटा भी कोई देर है! संचालक ने उदार कंठ से विशेषणों की बौछार करके कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा कर दी है. संस्था के अध्यक्ष को आमंत्रित किया गया है कि वे आज के आयोजन पर प्रकाश डालें. प्रकाश यह है कि आप जैसे अतिथियों के पधारने से संस्था कितनी धन्य हुई. परम व्यस्ततता के बावजूद समय निकाल कर यहां आए, इसका किन शब्दों में आभार व्यक्त किया जाए. हमारे शब्द सीमित हैं और वाणी मूक हुई जा रही है.

प्रार्थना है कि दीप प्रज्जवलन करके कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ करें. तेल भीगी बाती लौ पकड़ने में देर लगा रही है. अनुभवी मुख्य अतिथि आयोजक के कानों में फुसफुसा रहे हैं कि बत्ती के सिरे पर थोड़ा सा कपूर रख देने से बड़ी सुविधा हो जाती है. आयोजक दोहरे होकर भविष्य में ध्यान रखने का वादा करते हैं. अतिथियों का बारी-बारी से प्रशस्ति वाचन शुरू हो चुका है. आप कितने महान, विद्वान और विनम्र हैं. शब्द पिघले जा रहे हैं. आपके जन्म लेने से किस सन में यह धरा धन्य हुई और कितने सम्मानों-पुरस्कारों को आपने गौरवान्वित किया हैं. आपके पिताश्री का स्मरण भी उचित ही होगा कि उन्होंने आप जैसी हस्ती को इस संसार में लाने का महान कार्य किया. सजी-धजी सुंदरियां थाल में खूबसूरत पुष्पगुच्छ या बड़ी सी माला लेकर मुस्करा रही हैं और उसे अतिथियों को अर्पण करते, शॉल ओढ़ाते हुए आयोजक गदगद हैं. एक-एक कर अतिथि आशीर्वाद के दो शब्द कहने के लिए आमंत्रित किए जा रहे हैं. अतिथि आशीर्वाद देने में कभी संकोच नहीं करते. मुक्त कंठ से स्नेह बरस रहा है और श्रोता सुन रहे हैं प्रेरक आत्मकथा.

कितना समय निकल गया? कोई बात नहीं. आज का विषय आपको मालूम ही है. विषय प्रवर्तन के लिए आए वक्ता के साथ ही पहले वाले संचालक विदा लेते हैं. संचालन का जिम्मा अब अपेक्षाकृत गम्भीर जी ने ले लिया है. विषय पर बात शुरू होती है. मुख्य अतिथि ने घड़ी देखनी शुरू कर दी है. आयोजक उनकी व्यग्रता समझ रहे हैं. विषय प्रवर्तन पूरा होते ही संचालक अत्यंत विनम्रता से घोषणा करते हैं कि मुख्य अतिथि को एक अन्य कार्यक्रम में पहुंचना है. वे समय निकाल कर हमारे बीच आए, इसके लिए हम उनके अत्यंत आभारी हैं. एक स्मृति चिह्न तो उन्हें लेना ही होगा. आयोजक मण्डली मुख्य अतिथि को विदा करने गई. विशिष्ट अतिथि को भी अचानक कोई व्यस्तता याद आ गई है. पहले से तैयार प्रेस-नोट लेकर रिपोर्टर जा चुके हैं. फोटो ई-मेल किया जा रहा है.

वक्ता अपनी बात कहने आते हैं तो संचालक को समय की याद हो आई है. बार-बार पर्ची भेज रहे हैं कि कृपया अत्यंत संक्षेप में अपनी बात कहें. अगले वक्ता को पहले ही ताकीद कर दी जाती है कि सिर्फ पांच मिनट में अपनी बात कह दें. क्षमा करेंगे, समय की सीमा है. गोष्ठी में अचानक समय कीमती हो गया है.

सचमुच, समय का महत्व समझना और सम्मान करना कोई हमसे सीखे.

 (नभाटा, लखनऊ, 18 दिसम्बर, 2015)

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