प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुस्लिम
महिलाओं को तीन तलाक की धार्मिक एवं पुरुषवादी क्रूर परम्परा से मुक्ति दिलाने का
दावा जोर-शोर से करते हैं, उनके
लिए कानून बनाने की घोषणा करते हैं लेकिन सबरीमाला मंदिर में हिंदू महिलाओं के
प्रवेश पर रोक की कट्टर एवं महिला-विरोधी परम्परा खत्म करने के सख्त खिलाफ हैं.
इसके बावजूद कि पिछले साल देश की सर्वोच्च अदालत ने इस प्राचीन पुरुषवादी प्रथा को
अमानवीय और महिला-विरोधी बताकर अयप्पा मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश
देने का आदेश दिया था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं
कि मेरी सरकार आस्था को संवैधानिक संरक्षण देने का प्रयास करेगी ताकि भगवान अयप्पा
के भक्त अपनी परम्परा को कायम रख सकें.
मुस्लिम एवं हिंदू महिलाओं के बारे
में यह घोर विरोधाभासी भाजपाई सोच क्या बताता है?
नरेंद्र मोदी 12-13
अप्रैल को दक्षिण भारत के चुनावी दौरे पर थे. तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल की चुनाव सभाओं में उन्होंने कहा कि कांग्रेस, कम्युनिस्ट और
मुस्लिम लीग सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की परम्परा के मामले में
बल प्रयोग करके आस्था के मूल पर चोट करके खतरनाक खेल खेल रहे हैं. उन्होंने कहा- ‘इन लोगों के लिए दु:ख की बात यह है कि जब तक भाजपा है, हमारी आस्था और संस्कृति को कोई नष्ट नहीं कर सकता.’
14 अप्रैल को ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ में प्रकाशित खबर के अनुसार यह दूसरी
बार है जब प्रधानमंत्री मोदी ने सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के
प्रवेश पर रोक के पक्ष में बयान दिया. ऐसा करके वे देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश
का भी अपमान ही करते हैं.
दूसरी तरफ,
तमिलनाडु में रामनाथपुरम की सभा में, जहाँ
अच्छी तादाद में मुस्लिम आबादी है, मोदी ने तीन तलाक के
मुद्दे पर कांग्रेस समेत विरोधी दलों की कड़ी निंदा की. उन्होंने कहा कि कांग्रेस,
द्रमुक और इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग तीन तलाक विधेयक का विरोध
करते हैं क्योंकि वे महिलाओं को सम्मान देना नहीं चाहते.
पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट
ने मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक प्रथा पर रोक लगाई,
तबसे मोदी सरकार मुस्लिम महिलाओं के सम्मान और अधिकारों की बड़ी
पैरोकार बनी हुई है. उसी के बाद उसने लोक सभा में तीन तलाक को दण्डनीय अपराध बनाने
वाला विधेयक पेश और पास कराया था. मुस्लिम बहुल इलाकों की चुनाव सभाओं में मोदी और
भाजपा के सभी बड़े नेता यह उल्लेख करना नहीं भूलते कि मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक
की अमानवीय प्रथा से मुक्ति दिलाकर उनका सम्मान और अधिकार बहाल करने के लिए भाजपा
किस कदर प्रयत्नशील है.
वहीं,
हिंदू महिलाओं के बारे में उनका रवैया कितना अमानवीय और महिला-विरोधी है, यह सबरीमाला मामले में उनके रवैए से साफ हो जाता है. आज के इस युग में भी,
जबकि यह वैज्ञानिक रूप से स्थापित है कि रजस्वला होना अपवित्र होने
की बजाय प्रजनन की पवित्र प्रक्रिया का अंग है, मासिक धर्म
वाली महिलाओं को अपवित्र मानना भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की अवैज्ञानिक, दकियानूसी और महिला विरोधी सोच का ही प्रमाण है.
यही नहीं,
‘लव ज़िहाद’ वाला आरएसएस और भाजपा का विचार भी
हिन्दू महिलाओं के लिए घोर अपमानजनक और महिला-विरोधी है. मुस्लिम युवती हिंदू युवक
से प्रेम करे और उससे विवाह कर ले तो वह उन्हें स्वीकार्य है लेकिन हिंदू लड़की का
मुस्लिम युवक से प्रेम-विवाह करना उन्हें कतई मंजूर नहीं है. उनकी नज़र में यह ‘लव-ज़िहाद’ है जिसके अनुसार मुस्लिम युवक हिंदू
लड़कियों को प्रेम-जाल में फँसा कर मुसलमान बनाने की साजिश रचते हैं. इस तरह वे
हिंदू लड़कियों को अपनी इच्छानुसार धर्म के बाहर, विशेष कर
मुसलमान लड़कों से प्रेम करने की अनुमति और स्वतंत्रता नहीं देते. बल्कि, इन मामलों में वे हिंदू लड़की को ‘इस्लाम के चंगुल से
मुक्त कराने’ और ‘साजिशकर्ता मुसलमान
लड़के को सबक सिखाने’ पर उतारू हो जाते हैं.
यह लिखते हुए ‘अलजज़ीराडॉटकॉम’ में 25 जनवरी 2018 को प्रकाशित एजाज़
अशरफ के एक लेख की याद आती है, जिसका शीर्षक है- ‘नरेंद्र मोदी- महिलाओं अधिकारों का फर्जी लड़ाका.’ इस लेख में उन्होंने तीन तलाक और
लव ज़िहाद जैसे मुद्दों पर भाजपाई सोच का तार्किक ढंग से पर्दाफाश करते हुए कहा है
कि ‘भारत की सत्तारूढ़ पार्टी मुस्लिम महिलाओं को तो धार्मिक
कट्टरता और पुरुषवादी जकड़न से आज़ाद कराने का दावा करती है लेकिन अपनी हिंदू बहनों
को नहीं.’ कई उदाहरणों के साथ इस लेख में साबित किया गया है
कि मुस्लिम महिलाओं के लिए भाजपा का प्रेम सिर्फ ढकोसला है.
महिलाओं के प्रति संघ और भाजपा का
संकुचित दृष्टिकोण छुपा नहीं है. संस्कृति, धर्म
और परम्परा के नाम पर वे महिलाओं की स्वतंत्रता के विरोधी हैं. महिलाओं के लिए
ड्रेस कोड लागू करना और ‘वेलेण्टाइन डे’ पर प्रेमी युगलों की पिटाई करना उनके दकियानूसी सोच का ही प्रदर्शन है.
अप्रैल 2014 में,
जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के भाजपाई उम्मीदवार थे और उनकी
जीत की सम्भावना व्यक्त की जा रही थी, प्रसिद्ध ब्रिटिश
अखबार ‘द गार्जियन’ ने अमृत विल्सन का
एक लेख छापा था जिसमें कहा गया था कि यदि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने
तो उस देश में महिला अधिकारों की लड़ाई और चुनौतीपूर्ण हो जाएगी क्योंकि दक्षिणपंथी
पार्टी भाजपा का मूल सोच फासीवादी और महिला विरोधी रहा है.
इसके बावजूद मोदी सरकार महिला
सशक्तीकरण के लिए बड़े-बड़े काम करने का दावा करती है. 22 दिसम्बर 2018 को भाजपा
महिला मोर्चा के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मोदी ने कहा था- ‘महिलाओं का कल्याण करना पूर्व की कांग्रेस सरकारों की प्राथमिकता नहीं
रही. पिछले चार साल में महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में बहुत अच्छा काम हुआ है.’
4 मई 2018 को मोदी जी ने एक और कार्यक्रम में कहा- ‘अब हम महिला विकास से महिला-नीत विकास की ओर बढ़ रहे हैं.’ अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस, आठ मार्च 2018 को
उन्होंने 400 प्रमुख महिलाओं को व्यक्तिगत पत्र लिख कर अपनी सरकार की
महिला-प्राथमिकताएं गिनाईं और ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान का विशेष उल्लेख किया.
सबरीमाला प्रकरण पर उनका रुख और 'लव-ज़िहाद' इस सारे ढकोसले से पर्दा हटा देता है.
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