Friday, September 11, 2020

लापरवाहियों से विस्फोटक रूप ले रहा संक्रमण


कोरोना संक्रमण से शीघ्र मुक्ति जीवन पहले जैसा हो जाएगा
,   जो लोग इस आतुर प्रतीक्षा में हैं, उन्हें पांच महीने बाद तो मान ही लेना चाहिए कि इस महामारी से बचने का एकमात्र रास्ता फिलहाल बचाव के आवश्यक उपायों का पालन करना ही है। जिन टीकों (वैक्सीन) का परीक्षण चल रहा है, वे सफल भी हुए तो तय नहीं कि कितनी लम्बी प्रतिरोधक क्षमता दे पाएंगे। महामारी से बचकर आए मनुष्यों में एण्टी-बॉडी कुछ महीने से अधिक नहीं टिक रही।

दिल्ली के एक चिकित्सक मित्र ने बताया कि उनके सामने कुछ मामले दोबारा संक्रमण होने के आ चुके हैं। चीन समेत दूसरे देशों में भी ऐसा देखा गया रहा है। हमने अभी हमले के पहले चरण का शिखर भी नहीं देखा। दूसरे चरण के संक्रमण की आशंका सामने दिख रही है। बहरहाल, वायरस की प्रकृति का मुद्दा विज्ञानियों पर छोड़कर हमें उस पर ध्यान देना चाहिए जो पिछले कुछ महीनों में देश-दुनिया के हालात ने सिखाया है।

उत्तर प्रदेश में, विशेष रूप से लखनऊ-कानपुर जैसे महानगरों में महामारी विस्फोटक रूप में है। संक्रमण कैसे फैलता है और उससे कैसे बचा जा सकता है, यह अच्छी तरह पता चल चुका है। उसके बावजूद इन महानगरों में बड़ी आबादी भौतिक दूरी और मास्क लगाने की सतर्कता का पालन नहीं कर रही। रोजी-रोटी की जद्दोजहद में दिन भर खटने को विवश जनता को छोड़ दें, पढ़ा-लिखा, वाट्स-ऐप-विद्वान मध्य वर्ग सबसे अधिक लापरवाह है। बाजार में, सड़कों-कार्यालयों और अब सैरगाहों में भी इस वर्ग को लापरवाही से आते-जाते देखा जा सकता है। जो मास्क लगा भी रहे हैं, वे या तो उसके लगाने की विधि से परिचित नहीं हैं या सिर्फ इसलिए लगा ले रहे हैं कि पुलिस जुर्माना न ठोक न दे। वे अपने को बचा पा रहे हैं न दूसरे को।

रोज कमाने-खाने वाला कामगार वर्ग कोई सावधानी नहीं बरत रहा। उसने महामारी को पैसे और कोठियों वालों का रोग बताना शुरू कर दिया है। उनकी सशक्त रोग-प्रतिरोध क्षमता उन्हें भले बचा ले रही हो लेकिन वे दूसरों को रोगी बनाने का माध्यम बन रहे हैं। कई पुलिस वाले स्वयं ही लापरवाह दिखाई देते हैं। उन्हें देखकर दूसरे भी लापरवाही बरतने को प्रवृत्त होते हैं। संक्रमण के विस्फोटक होने के ये बड़े कारण हैं।

यह शुरुआती धारणा ध्वस्त हो चुकी है कि युवा वर्ग को महामारी अधिक हानि नहीं पहुंचाएगी। हाल के दिनों में कई युवाओं की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु संक्रमण से हुई है। दूसरी तरफ, रोगग्रस्त वृद्ध भी कोरोना को मात दे रहे हैं। यानी किसी को भी यह नहीं मानना है कि वह सुरक्षित है। डरना नहीं है लेकिन लापरवाह भी नहीं रहना है।

एक विशेषज्ञ ने सटीक सलाह दी थी। बाहर निकलने वाला हर व्यक्ति यह मानकर चले कि जो भी उसके सामने पड़ रहा है, वह संक्रमित है। उससे दूरी रखिए, कायदे से मास्क पहनिए और हाथ साफ करते रहिए। यही एक उपाय है स्वयं बचे रहने और दूसरे को बचाए रखने का। दूसरे को बचाना ही संक्रमण को रोकना और अपने को बचाए रखना है। जिन समाजों ने यह सतर्कता बरती वे शीघ्र खतरे से बाहर आ गए।

प्रत्येक लापरवाह व्यक्ति कम से कम बीस व्यक्तियों को रोगी बनाता है। इनमें से प्रत्येक इस सिलसिले को इसी दर से आगे बढ़ाता चलता है। बहुत बड़ी आबादी और अत्यधिक गरीबी के कारण अपने देश में इस सिलसिले को तोड़ना बहुत कठिन है। इसीलिए लम्बे लॉकडाउन के बाद भी संक्रमण अनियंत्रित हो गया। यह दौर काफी लम्बा चलना है। सख्ती से सावधानियों का पालन करना ही एकमात्र रास्ता है। 

(सिटी तमाशा, नभाटा, 05 सितम्बर 2020)

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