Thursday, May 25, 2023

इस जमीं पर बिखरे हुए हमारे सपने

जब बम फट रहे हों अपनी धरती पर, मिसाइलें बरस रही हों, पैराशूटों से उतरे शत्रु सैनिक घरों में घुसकर बच्चोंं को खिड़कियों से बाहर उछाल दे रहे हों और महिलाओं से बलात्कार कर रहे हों, गलियों-सड़कों में लाशें बिछा रहे हों और शानदार इमारतें जमींदोज हुई पड़ी हों, तो उस समय कैसी कविता लिखी जा सकती है? यूक्रेन पर रूसी हमले को एक साल से अधिक हो गया है और युद्ध अभी जारी है। कब तक चलेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। एक बड़ा ताकतवर देश छोटे से देश को युद्ध में झोंके हुए है और यूक्रेन को अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए लड़ना है। ऐसे में यूक्रेन के कवियों की कविता कैसा युद्ध लड़ रही है? वह युद्ध के बीच तो है ही लेकिन युद्ध के बाहर भी है, मनुष्यता का सपना बचाती हुई। 

वरिष्ठ पत्रकार, कवि और लेखक निधीश त्यागी ने रूस के हमले के बाद लिखी गई यूक्रेनी कविताओं के हिंदी अनुवाद का एक संकलन तैयार किया है- 'इस जमीं पर बिखरे हुए हमारे सपने', जिसे 'नवारुण प्रकाशन' के कुछ दिन पहले ही प्रकाशित किया है। इस संग्रह को पढ़ना केवल कविताओं को पढ़ना नहीं है, एक युद्ध के आतंक को, विनाश को- सिर्फ भौतिक ही नहीं, सांस्कृतिक भी, अनुभव करना है। साथ ही जीवन की उगती कोपलों के संकेत को देखना भी है। निधीश जी ने संगह की भूमिका बहुत तकलीफ के साथ लिखी है, जो स्वयं एक मार्मिक टिप्पणी है और दिल में बम के छर्रे की तरह धंस जाती है-

"हम इक्कीसवीं सदी में अपनी ही तरह के आदमजाद लोगों को मरते और मारते देख रहे हैं। कल तक जहां सब ठीक था, वहां एकदम से सब उलट गया है। दफ्तर, स्कूल, अस्पताल, प्रेक्षागृह, बाजार ,रिश्ते,मुहब्बतें, बच्चे। बूढ़ी औरतें। डबल रोटी। घर। मकान। ढूह। कंधे पर टंगी बिल्लियां। मोर्चे पर जाते पिता और देश छोड़कर जाते परिवार। खिड़की के चकनाचूर शीशे । ... तकलीफों के बीच यह भी थोड़ी राहत की बात है कि शोर, ध्वंस, हिंसा, नाउम्मीदी और क्रूरताओं के समय  में भी कुछ दिल हैं जो धड़क रहे हैं, कुछ नज़रें हैं जिनकी नज़रों से विस्मय अभी गया नहीं है, कुछ शब्द हैं जो तहखानों में लगी चिमनियों से निकल कर आ रहे हैं। अपनी गंधों, रसों, हताशा, क्षोभ, गुस्से, असहाय होने के बोध और सवालों के साथ। कभी धुंंएऔर कभी राख के साथ। ये कविताएं बहुत सी निशानियां लिए चलती हैं- पहचान में न आ सकने वाली लाशों से लेकर उन खाली घोंसलों तक जिनसे कबूतर कबके फड़फड़ा कर उड़ चुके हैं। पर वह कविता की निगाह में आ जाता है। वह जो युद्धोन्माद का शिकार भी है और गवाह भी। पर फिर भी हर कविता के केंद्र में युद्ध नहीं है। ज़िंदगी है-- सोती, जागती, चलती-फिरती और युद्ध जैसे कहीं बगल से निकल रहा है। इन कविताओं में वीर रस की अनुपस्थिति शायद इनका और हमारी मनुष्यता का सबसे बड़ा हासिल है।" उनकी यह टिप्पणी हमसे तीखा सवाल भी करती है- "कैसा लगना चाहिए हमें और आपको, जब हमारा मुल्क उस देश से तेल खरीदकर एक युद्धोन्मत्त और आतताई देश की आर्थिक स्थिति मजबूत कर रहा है?"

यूक्रेनी कवि लेसिक पैनासियुक की एक कविता देखिए-

रूसी फौजी शोरबा बना रहे हैं हमारे भण्डार और फ्रिज से सब्जियां छीनकर
और चूल्हे में हमारी किताबें फेंक रहे हैं   
जलाने के लिए

सबसे नौजवान यूक्रेनी कवियों के शानदार संस्करण जल रहे हैं
उनके बाद 2020 के दशक के, फिर 2010 के दशक के, 1990 वाले दशक के
फिर आठवें, छठे, पांचवें दशक के
और फिर इस तरह उक्रेनी साहित्य के आखिर तक तर्जुमे जल रहे हैं
और मूल किताबें भी

आग पर चढ़े हैं वे सारे लेखक
जिन्होंने हम पर अपना असर छोड़ा
आग भभकती है हर उस किताब पर
जो हमने नहीं पढ़ी, या पढ़ी, या पढ़ने का मन बनाया
जल रही हैं सारी कविताएं छपी, अनछपीं, अनलिखीं और दुबारा लिखीं

और इस तरह ये कविता
हमारे चेहरों के बारे में आग के पिछवाड़े की तरफ
उछाल दी गई
ताकि रूसी फौजी आखिरकार
गटक सकें अपना शोरबा 

एक और कविता जो दर्ज़ करना जरूरी समझता हूं वह है मरजाना सावका की 'ईश्वर यहां पड़ा है"-

ईश्वर यहां पड़ा है। कत्ल के बाद ताबूत में।
उसे फिर जी उठना था, पर लगता है, समय पर नहीं होने वाला।
पिछली और सबसे भयानक जंग में वह एक वालंटियर था।
पूरे शहर से बिना हथियार, बहुत शांति से गाड़ी चलाता हुआ
नरक जैसे ट्रैफिक से गुजरता डबलरोटी बांटता हुआ।
अपने आसपास के लोगों से बोलता: गुस्से में मत जियो।
आखिरकार सबसे भयानक गुनहगार के पास भी होता है पश्चाताप का मौका।
पर सूरज शहर पर से डूब रहा था स्याह होती पहाड़ियों के पीछे
और सूखे मस्तूलों की तरह इमारतें जल रही थीं। और ये लड़ाई रौशनी और
अंधेरे के बीच अभी थोड़ी और चलनी थी। एक मिसाइल का टुकड़ा
उसकी छाती से टकराया और उसे मार गिराया। बगल में उसके बारह
और थे, एक बच्चा भी उनके बीच।
करीब पचास लोगों ने उन्हें तेजी से घेरे में लिया।
वे कह रहे थे कि हेरोड्स ने किसी को नहीं छोड़ा, बच्चों को भी नहीं।
पर वे ज़ल्दी चले गए। क्योंकि कर्फ्यू पहले ही शुरू हो चुका था।
ईश्वर यहां पड़ा है। वह दयालु था। उसने डबलरोटी के टुकड़े किए।
वह आया था कहीं से-- इजीयुम से, बुचा से, पोसाना से।
वह पड़ा है ताबूत में। हम राह देख रहे हैं सबसे बड़े चमत्कार की।
उसने हमसे कहा किसी को मारो मत। वह हमारे बीच चलता फिरता रहा।
वह फिर से उठेगा। अपनी सलीब और मुलायमियत को छोड़ते हुए। 
वह फिर से उठेगा और हमारे साथ शामिल होगा।
बेचैन।
बहादुर।
परिचित।
ज़िंदा।

मात्र 76 पृष्ठों के इस संग्रह में दस यूक्रेनी कवियों की युद्ध के बीच लिखी गई कविताएं संकलित हैं। इस संग्रह को पढ़ा जाना चाहिए, इसलिए कि कविता अपने सम्मय से कैसे आंखें चुरा सकती है? अगर उसे प्रेम करना है तो भी कविता युद्ध से कैसे बच सकती है? निधीश त्यागी को इस संग्रह के लिए साधुवाद और नवारुण को भी। यूक्रेनी और रूसी में लिखी गई इन कविताओं के विभिन्न कवियों द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद से निधीश ने इन्हें हिंदी में प्रस्तुत किया है।

'इस जमीं पर बिखरे हुए हमारे चेहरे' संग्रह की कीमत रु 150/- है। इसे 9811577426 या 8057374761 पर सम्पर्क करके मंगवाया जा सकता है।

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