Friday, March 20, 2020

डरना नहीं, संकट को समझना और सतर्क रहना है


अपनी खाई थाली खुद धोनेअपना कपड़ा स्वयं फींचने और घर की साफ-सफाई अपने आप करने जैसी  आदतें जिनकी वर्षों पहले छूट गई थी या जिहोंने बचपन से ही ऐसे काम कभी किए ही नहीं थे, वे आज कोरोना (कोविड-19) से बचने के लिए यह सब करने को मज़बूर हो रहे हैं. बहुत सारे परिवार कामवालियों की अस्थाई लेकिन सवेतन छुट्टी कर रहे हैं क्योंकि विशेषज्ञों की सलाह है कि कम से कम लोगों से सम्पर्क करें. यथासम्भव एकांतवास इससे बचने का सबसे कारगर तरीका है.
प्रधानमंत्री ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यूकी घोषणा इसीलिए की है. इसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिए. आगे ऐसा कर्फ्यूबढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है. जिन घरों में बुज़ुर्ग और बीमार हैं उनकी सुरक्षा बहुत ज़रूरी है. उन्हें घर के एकान्त में रखने की सलाह दी गई है. दिलों की नहीं, शरीरों की दूरी अवश्य रखी जाए. सघन आबादी वाले अपने देश में यही बड़ी समस्या है और चिंता का कारण भी.     
इस नामुराद वायरस ने दुनिया में हाला-डोला ला दिया है. जिन देशों को हम बहुत विकसित और स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में आदर्श मानते थे, कोरोना  के सामने उनकी लाचारी दिख रही है तो हमारे लिए इसका मुकाबला करना निश्चय ही बड़ी चुनौती है. भय नहीं, जागरूकता और सतर्कता ही एकमात्र उपाय हैं. कोशिश यही हो संक्रमण एक से दूसरे में न फैले. ऐसी किसी भी सम्भावना को दूर रखना होगा. लोग डर रहे हैं या इसकी उपेक्षा कर रहे हैं. दोनों ही खतरनाक हैं.  
हमारे यहां जनता को वास्तविकता समझाना कठिन होता है. इस नासमझीके कारण भी कम नहीं. बहुत बड़ी आबादी है जो रोज कुआं खोदकर पानी पीने को मजबूर है. वह बाहर नहीं निकलेगी तो एक जून की रोटी भी कैसे खाएगी? ऐसे लोग स्वयं खतरे में हैं और खतरा बढ़ाने वाले भी. इसका क्या उपाय हो? मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने दिहाड़ी श्रमिकों के लिए एक निश्चित राशि उनके बैंक खातों में डालने की बात कही है. यह बड़ी सहायता साबित हो सकती है लेकिन इसके कार्यांन्वयन में बहुत-सी व्यावहारिक समस्याएं हैं.
एक तरफ ऐसी जरूरी चिंताएं हैं तो दूसरी तरफ इस महामारी का फायदा उठाने वाले लोलुप लोगों की करतूतें भी सामने आ रही हैं. बिना लाइसेंस तुरत-फुरत सेनेटाइजर बनाकर बेचने वाले पकड़े गए हैं तो दाम से कई गुणा धन लेकर मास्क बेचने के बहुत सारे प्रकरण खुल रहे हैं. इस संकटपूर्ण समय को भुनाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की यह लोलुपता देख-सुनकर हैरत होती है. खुद अपनी जान का भरोसा नहीं लेकिन जनता को लूटने का कोई मौका नहीं छोड़ने वालों को क्या कहा जाए!
यह महामारी अंतत: क्या और कितना नुकसान करेगी, यह तो पता नहीं लेकिन कुछ सीख अभी से दे रही है. अपवादों की बात अलग है लेकिन सरकारी अस्पतालों के उन डॉक्टरों और अन्य स्टाफ की सराहना करना सीखिए जिनको अनेक बार बेवजह गरियाया और पीटा जाता है लेकिन जो इस संकट की घड़ी में जान जोखिम में डालकर जुटे हैं. उन समर्पित सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए भी तालियां बजाइए जो आम जनता को इस वायरस के प्रति सचेत करने के लिए बस्ती-बस्ती घूम रहे हैं, साबुन, सेनेटाइजर और मास्क बांट रहे हैं. यह संकट हमें अपना घरेलू काम स्वयं करने की पुरानी आदत वापस लाना भी सिखा रहा है. मध्य वर्ग की नई पीढ़ी को विशेष रूप से यह अवश्य सीखना चाहिए कि अपने घरेलू काम खुद करने से तौहीन नहीं होती और न यह सिर्फ महिलाओं की ज़िम्मेदारी है.
तो, डरिए नहीं, पूरी सावधानी बरतिए. 

(सिटी तमाशा, नभाटा, 21 मार्च, 2020)  
 




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