Friday, April 03, 2020

इस महामारी में हमारी चुनौतियों की विकरालता


हमने अपने डॉक्टर मित्रों को संदेश भेजा था कि वे इस भयानक विपदा के समय अपने को खतरे में डालकर मरीजों की सेवा कर रहे हैं.  उनकी सेवाओं की देश को बहुत ज़रूरत है. इसलिए वे अपना विशेष रूप से ध्यान रखें. लखनऊ और कानपुर के दो मित्रों ने धन्यवाद के साथ यह भी लिखा कि डॉक्टरों के पास आवश्यक सुरक्षा उपकरण नहीं हैं लेकिन वीआईपी एन-95 मास्क लगाए घूम रहे हैं. कई जगह तो सामान्य मास्क भी नहीं मिल रहे. उसी दौरान राज्य में कई जगह नर्सों और अन्य कर्मचारियों ने सुरक्षा उपकरणों के अभाव में काम नहीं करने की चेतावनी दी थी.

जैसे-जैसे देश में कोविड-19 मरीजों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे हमारी चुनौतियां भी सामने आ रही हैं. उन्नत देश अगर इस महामारी के सामने लाचार नज़र आ रहे हैं तो हमारी चुनौतियां समझी जा सकती हैं. यह हमारा ही देश है जहां जांच के लिए नमूना लेने गए डॉक्टरों पर एक जगह नहीं, कई शहरों में हमले होते हैं. कुछ लोग पाखण्ड में और कुछ फनके लिए जान-बूझकर लॉकडाउन का उल्लंघन करते हैं.  

यहां गरीबी है, अभाव हैं लेकिन जाहिली भी कम नहीं, जिसका शिक्षा और गरीबी से कोई नाता नहीं. पढ़े-लिखे लोग भी पूरी आबादी को खतरे में डालने वाला आचरण कर रहे हैं. धार्मिक आयोजनों के नाम पर लॉकडाउन के दौरान भी जमावड़े हो रहे हैं. कई शहरों से ऐसी चिंताजनक रिपोर्ट आ रही हैं. मास्क, वेण्टीलेटर, डॉक्टर और दवा की कमी से कहीं बड़ी चुनौती धार्मिक कट्टरता से उपजी यह जहालत है जिसमें सभी पंथ शामिल हैं.

अब इसका क्या किया जाए कि कुछ लोग इसी में खुश हैं कि वे पुलिस को गच्चा देकर शहर का एक चक्कर लगा आए. कोई इसका आसान उपाय भी बताता फिर रहा है कि भाई साहब, डॉक्टर का कोई भी पुराना पर्चा लेकर निकल जाइए. पुलिस रोकेगी तो पर्चा दिखा दीजिए कि दवा लेने जा रहे हैं. एक सज्जन दूसरा तरीका निकालकर घूमते देखे गए. उन्होंने अपनी कार पर राहत सामग्री वितरण हेतुकी तख्ती लगा रखी है. युवकों की टोलियां भी सुबह-शाम मुहल्लों में ओने-कोने जमा होकर हो-हल्ला कर रही हैं.

आखिर हम किसे ठग रहे हैं? क्यों नहीं चेत रहे? क्या अपार शक्तिशाली देश अमेरिका का हाल नहीं देख रहे? यूरोप के कुछ देश इसी का खामियाजा भुगत रहे हैं कि वहां प्रशासन ही नहीं, जनता ने और विशेष रूप से युवा वर्ग ने कोविड-19 महामारी को हलके में लिया और चेतावनियों के बावजूद अपने रोजमर्रा फ़नमें मशगूल रहे. क्या वे अपने वैभव के वीभत्स प्रदर्शन की कीमत भी नहीं चुका रहे?

हमारे देश में एक कमरे में दस-दस लोग गुजारा करने वाले हैं तो दस कमरों में एक-एक, दो-दो प्राणी भी. कई तो ऐसे भी हैं जिनके पास छत ही नहीं है. इसलिए कोविड-19 महामारी के सामने इतनी ही विविध और विकराल हमारी चुनौतियां भी हैं. लॉकडाउन की खिल्ली उड़ाने वाले भी हैं और अल्लाह या ईश्वर की शरण को सबसे बड़ी दवा बताने वाले पाखण्डी भी.

वीवीआईपी वर्ग कम बड़ी चुनौती नहीं है जो हर संकट के समय सारी सुविधाएं पहले अपने लिए बटोर लेता है. अच्छे मास्क से लेकर खान-पान की सभी चीजें उन्होंने अपने लिए जुटा रखी हैं, भले ही डॉक्टरों-नर्सों को वह नहीं मिलें. सुना है कुछ लोगों ने अपने लिए वेण्टीलेटर की अग्रिम व्यवस्था भी करवा ली है.

इन्हीं कठिन चुनौतियों के बीच रहना, लड़ना और जीतना है. हार अभावों से नहीं, बुद्धि के दीवालिएपन से होती है.    
     
(सिटी तमाशा, नभाटा, 04 अप्रैल, 2020) 
    

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