Friday, April 10, 2020

महाविपदा में समय का इफरात और उसके उपयोग


समय ही समय है लोगों के पास. घर से निकल नहीं सकते. कोई मिलने आ नहीं सकता. वर्क फ्रॉम होमवाले भी बोर ही हो रहे हैं. सुबह आठ बजे निकल कर जो काम के मारेरात नौ बजे तक मुश्किल से लौट पाते थे, अब घर की दीवारों के भीतर कैद हैं. इतनी फुर्सत पहले कभी नहीं मिली. नफरत फैलाने के धन्धे में लगे लोगों को अवश्य फुर्सत नहीं है. उनका काम बहुत बढ़ गया है.

जिनके पास खाने की चिन्ता नहीं है, उनके लिए और भी कठिन हो रहा है वक्त काटना. वे मोबाइल के स्क्रीन पर आंखें फोड़ रहे हैं, फिल्में देख रहे हैं, घण्टों गप्पें मार रहे हैं. फेसबुक लाइवपर खूब सारा ज्ञान बघारा जा रहा है. इण्टरनेट पर इतना लोड है कि भट्टा बैठा जा रहा है. फिर भी लोग बोर हो रहे हैं. लिखने-पढ़ने के शौकीन शिकवा कर रहे हैं कि कितना पढ़ें! घर में आपसी झगड़े बढ़ रहे हैं. ऐसी एक रिपोर्ट आई है कि घरेलू हिंसा की ऑनलाइन शिकायतें बढ़ गई हैं. झाड़ू-पोछा करने और बर्तन मांजने में शुरू-शुरू का आनंदअब झगड़े का कारण बन रहा है.  

छोटे बच्चों को घर में बहलाए रखना बड़ी समस्या हो गया है. स्कूल बंद हैं. ऑनलाइन क्लास दिन भर के स्कूल का विकल्प हो नहीं सकते. हर तरह के मीडिया पर बच्चों को बहलाने, पढ़ाने –सिखाने के गुर बताए जा रहे हैं. घरेलू काम-काज में हाथ बंटाना भी उन्हें सिखाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि हर स्थिति के मुकाबले के लिए तैयार रहना चाहिए. अब लोगों को यह लगने लगा है कि ऐसा भी समय आ सकता है.

जिनके पास दो जून की रोटी का संकट है, वे सारा समय इसी चिन्ता में हैं. अच्छा है कि बहुत सारे लोग, सरकार और संगठन उनकी मदद कर रहे हैं. राशन या खाना बांट रहे हैं. विपदा के इस दौर में जरूरतमंदों की मदद करने की मनुष्य की प्रवृत्ति भी खूब खिल रही है. बुजुर्ग सबसे ज्यादा परेशान हैं. उन्हें डर सता रहा है कि कोई इमरजेंसी पड़ गई तो इलाज कहां और कैसे मिलेगा. एक बुजुर्ग ने तो अत्यंत दयनी स्वर में फोन करके पूछा कि कुछ हो गया तो इस देह की कूकुर गति तो नहीं हो जाएगी?          

मौत को कोई लॉकडाउन नहीं रोक सकता. एक करीबी रिश्तेदार के निधन की सूचना मिली. अच्छे-भले थे और उम्र ज्यादा नहीं थी. सीने में दर्द हुआ और थोड़ी देर में देह निष्प्राण हो गई. बच्चे बाहर हैं. आ नहीं सकते थे. चार लोग किसी तरह जुटे और विद्युत शवदाह गृह में अंत्येष्टि कर आए. घर में उनकी अकेली पत्नी को सांत्वना देने नहीं जाया जा सका. फोन पर ही रोना-धोना हुआ.

ऐसे त्रासद अवसर पर किसी के अकेलेपन के बारे में सोचिए. आपात समय में कोई नियम-धरम नहीं चलता. बल्कि, नई व्यवस्थाएं चल पड़ती हैं. इसी दौरान वह खबर आई थी कि लॉकडाउन के कारण एक पत्नी को ही पति को मुखाग्नि देनी पड़ी. कौन मुखाग्नि दे, इस सवाल के आज क्या मायने हैं.   
इस महाविपदा काल में जीवन के कैसे-कैसे रंग सामने आ रहे हैं, अजब-गजब भी और त्रासद भी. कैसे-कैसे चुटकुले और व्यंग्य निकल रहे हैं! रामायणऔर महाभारतधारावाहिकों का पुनर्प्रसारण देखते हुए पुरुषों को अपने ऋषि-मुनि अवतार में पहुंच जाने की सम्भावना गुदगुदा रही है. किसी ने लिखा है कि  लॉकडाउन खत्म होने तक हम जामवंत ही न बन जाएं! मानव की विनोदप्रियता भी चरम पर है.            

(सिटी तमाशा, नभाटा, 11 अप्रैल, 2020) 
          

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