Friday, April 17, 2020

बंदी में खुली चोर व्यवस्थाएं और भूखे पेट


कोरोना-काल में लगभग सारा आवश्यक सामान पॉलीथीन के थैलों में मिलता देख याद आया कि इस पर तो प्रदेश में सख्त रोक लगी हुई है. छापे पड़ रहे थे. बड़ी दुकानों से लेकर  खोंचों और फुटपाथी सब्जी वालों तक से जुर्माना वसूला जा रहा था. लॉकडाउन में फिर पॉलीथीन निकल आई है. धड़ल्ले से चल रही है. स्वाभाविक ही, किसी को इस तरफ ध्यान देने की फुर्सत नहीं है. कोरोना से निपटें या पॉलीथीन पकड़ें?  

कोरोना-बंदी की सख्ती में पहले की बंदियां अपने आप खुल गई हैं. पॉलीथीन खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है तो सिगरेट-तम्बाकू चोरी-छुपे दो गुणा दामों पर बिक रहे हैं. कोरोना-बंदी में गुटका-सिगरेट विक्री पर भी प्रतिबंध लागू है लेकिन जिन्हें उसकी लत है, उन्हें तो चाहिए ही. बेचने वालों को घर चलाना है. इसलिए, दोनों का बंदोबस्त हो जा रहा है. खतरा उठाने के दाम अलग से चुकाने पड़ रहे हैं. वैसे भी, पान-बीड़ी की गुमटियों पर आत्मीय रिश्ते पनपते रहे हैं. खास लोगों के घर तक सप्लाई हो जा रही है. कोई आश्चर्य नहीं कि मास्क के पीछे मुंह भीतर मसाला चुभलाया जा रहा हो. पुलिस वाले क्या कम खाते-पीते है! सो, इस गोपनीय खुलेको संरक्षण भी प्राप्त हो जाता है.

विदेशी मदिरा के शौकीनों के लिए भी रास्ते खुल जाते हैं, हालांकि दिक्कतें बहुत बताई जाती हैं. कुछ लोगों के पूर्व सैन्य कर्मियों से सम्पर्क काम आ रहे हैं. वैसे भी ये जाबांज अवकाश ग्रहण करने के बाद समाज के एक वर्ग की तृषा शांत करने में बड़ा योगदान देते रहे हैं. तस्करों के दिमाग का भी जवाब नहीं. दिल्ली का ताज़ा उदाहरण देख लीजिए. शव-वाहन में ताबूत के भीतर छुपाकर विदेशी मदिरा लाई जा रही थी. दूध के केन में घर तक सप्लाई का चलन पुराना है, लेकिन काम आ ही रहा है. देसी वालों के लिए ग्रामीण इलाकों में खेतों-झाड़ियों के बीच अस्थाई आसवनियों में खूब छानी जा रही है. धंधा चोखा चल रहा है. कोरोना संदिग्ध और पीड़ित आफत मचाए हुए हैं. ऐसे में पीने-पिलाने वालों पर कौन पहरा बैठाए!

चोर-बाजार, ब्लैक मार्केट कहते हैं जिसे, की समानांतर व्यवस्था न हो तो अर्थव्यवस्था के डूबने का खतरा रहता है. जीडीपी वाली प्रगति से ज़्यादा विकास दर ब्लैक मार्केट इकॉनॉमी की रहती है. प्रतिबंध या बंदी में यह चोर बाजारी अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन करती है. कानून-व्यवस्था बनाए रखने में भी इसका बड़ा योगदान है. चोर-बाजारी न हो तो अशांति फैल जाए. डॉक्टर चेतावनी देते रहें कि सिगरेट-बीड़ी, तम्बाकू, शराब, वगैरह नशे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर करते हैं जिससे कोरोना का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन जिनका तन-मन चैतन्य चूर्णों और पेयों के बिना जाग्रत न होता हो, वे क्या करें?

पास में धन है तो सारी व्यवस्थाएं हो जाती हैं. सारी समस्याएं उनके लिए हैं जिनके पास दमड़ी नहीं है. एक दिन की बंदी में भी जो शाम की रोटी के लिए दिहाड़ी नहीं कमा पाते उनके लिए कोई चोर-बाजार क्यों चले? चोर बाजारी होती ही इसलिए है कि कुछ लोगों के पास अपार धन है. जिनके पीएस धन ही नहीं वे खुले बाजार में भी आकाश हेरते रहते हैं. यह कोरोना-बंदी ऐसे ही करोड़ों लोगों के लिए आफत बनी हुई है. सरकारें कोशिश कर रही हैं, निजी तौर पर भी बहुत सारे प्रयास हो रहे हैं लेकिन बहुत बड़ी आबादी तक राहत पहुंच नहीं पा रही.

कोरोना से बड़ा खतरा भूख हो गई है. कोरोना के बाद यह और विकराल होने वाली है.


(सिटी तमाशा, नभाटा, 18 प्रैल, 2020)

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