Friday, November 06, 2020

साझा विरासत के तार उधेड़ती नई समझ


एक वायरल वीडियो देखा। पटाखों की दुकान में कुछ युवा हंगामा कर रहे हैं। दुकानदार से
, जो कुर्ता-पाजामा-गोल टोपी पहने है, बहस कर रहे हैं कि वह ऐसे पटाखे क्यों बेच रहा है जिनमें लक्ष्मी जी और दूसरे देवी-देवताओं के फोटो चिपके हैं? ‘पटाखे फटने के बाद ये तस्वीरें सड़कों पर पड़ी रहती हैं और पैरों के नीचे आती हैं। लक्ष्मी का अपमान होता है,’ वे तर्क दे रहे हैं। दुकानदार हतप्रभ है और बड़ी मुश्किल से कह पाता है कि यह बात आपको आज पता चली?’ उसकी कोई नहीं सुनता।

यह नए भारत की तस्वीरें हैं और नित नए-नए रूप में सामने आ रही हैं। देखते-देखते दिल-दिमाग सुन्न होने लगा है। पता नहीं कब से पटाखों पर ऐसी तस्वीरें छपती रही हैं। इन पर हंगामा-मारपीट करना चाहिए, यह समझदारी नए भारत में बन रही है। सम्मान-अपमान और राष्ट्रप्रेम की नई परिभाषा गढ़ी जा रही है।

बढ़ते प्रदूषण के कारण पिछले कई वर्षों से पटाखों के विरुद्ध जनमत बनाया जा रहा है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पटाखे बेचने पर रोक लगा दी थी। तब कई हिंदू-संगठनों को यह निर्णय धर्म-विरुद्ध लगा था। उसका उल्लंघन करते हुए पटाखे फोड़े गए थे। उनकी निगाह पटाखों पर छपी तस्वीरों पर नहीं गई होगी या गई भी होगी तो समझदारी इतनी विकसित नहीं हुई होगी। अब अक्ल थोड़ी और आगे बढ़ी है।

कुछ दिन पहले का यह समाचार भी इसी नई समझदारी का हिस्सा है कि एक मंदिर में नमाज़ पढ़ने वाले कुछ युवकों को आपत्ति के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। जवाब में वहीं एक ईदगाह में गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा पढ़ी गई। उस मामले में भी कुछ युवक पकड़े गए। पहले यह सामाजिक सदभाव के रूप में अक्सर होता था। बारिश में या और किसी संकट के समय मंदिर या गुरद्वारा परिसर नमाजियों के लिए और मस्जिदें दूसरे धर्मावलम्बियों के लिए खोली जाती रही हैं। इसे हिंदुस्तान की खूबसूरत साझा पहचान के रूप में पेश किया जाता था।

देश, धर्म और संस्कृतियों की पहचान बदल गई है। धार्मिक सद्भाव और सह-अस्तित्व के ये उदाहरण अब चुनौती और जवाबी चुनौतियां हैं, अखाड़ेबाजी और विवाद का मुद्दा हैं। क्या कभी कोई यह सोच सकता है कि किसी दिन लखनऊ में अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर के शिखर पर लगे चांद-तारे पर बवाल मच जाएगा? यहां तो पड़ाइन की मस्जिदभी है। नई अक्ल वालों को यह कैसे समझ में आए कि किसी पण्डिताइन का मस्जिद से भी एक आत्मीय रिश्ता हुआ करता है और हनुमान जी को अपने मंदिर के चांद-तारे पर अनोखा गर्व होता है।

एक प्राचीन उदार समाज के उदात्त मूल्य चौराहों पर कुचले जा रहे हैं। बहुलतावादी समाज का बहुलमिटाकर एकलबनाया जा रहा है। नाम बदलो, पहचान बदलो, तस्वीरें और मूर्तियां ध्वस्त करो, पुराने पाठ फाड़ो और मनचाहे पाठ लिखो, ज्ञात इतिहास को दफ्न करो और हवाई महानताओं को विज्ञान बनाकर किताबों में दर्ज़ करो। कहां-कहां क्या-क्या मिटाया जाएगा? किसी कम्पनी के विज्ञापन में एक मुस्लिम परिवार की हिंदू बहू को लव-जिहादका नाम देकर हंगामा किया जा सकता है लेकिन साझी विरासत में क्या-क्या बंद कराया जा सकता है? यहां राम की पूजा होती है तो रावण का मंदिर भी बना है। शक्ति की प्रतीक दुर्गा की आराधना के साथ-साथ कहीं महिषासुर की पूजा भी होती है। जो समझ यह स्वीकार नहीं करती वह इस देश को क्या समझे, क्या बनाए!

हजारों साल में बनी इस साझा विरासत के तार उधेड़ते-उधेड़ते महाबलियों का बाहुबल भी चुक ही जाना है लेकिन इसकी जो कीमत चुकाई जानी है, उसका भुगतान आने वाली पीढ़ियां कैसे करेंगी, सोचकर मन कांपता है।

(सिटी तमाशा, 07 नवम्बर, 2020)

          

 

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