Saturday, November 14, 2020

हवा-पानी की चिंता, पटाखे, व्यवसाई और सरकार


नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने उन बारह जिलों में पटाखे बनाने
, बेचने और चलाने पर रोक लगा दी है, जहां वायु प्रदूषण खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है। यह प्रतिबंध ऐन दीवाली के पहले लगा है। पटाखे ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं, यह स्थापित सत्य है। हर साल दीवाली के बाद हवा इतनी खराब हो जाती है कि सांस लेना मुश्किल हो जाता है। सांस सम्बंधी रोग वालों के लिए भारी समस्या खड़ी हो जाती है।

पहले से ही आर्थिक बदहाली से त्रस्त छोटे-मंझोले व्यापारियों के लिए यह प्रतिबंध जले में नमक की तरह है। अकेले लखनऊ में 20 करोड़ रु का नुकसान होने की बात कही जा रही है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने पटाखे फोड़े जाते हैं और कितना बड़ा उसका धंधा है। साल-दर-साल यह धंधा बढ़ता गया है। वर्षों हो गए पटाखों के खिलाफ जनमत बनाने के अभियानों को लेकिन कमाऊ-खाऊ-उड़ाऊ मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा है जो प्रदूषण के खतरे की अनदेखी करते हुए मौज-मस्ती में मगन रहता है। उसी के दम पर पटाखों का धंधा फलता-फूलता आया है।

जिन व्यापारियों और छोटे-दुकानदारों ने पटाखों में अपनी रकम फंसा रखी है और अब बड़े नुकसान से हताश हैं, उनका तर्क उचित ही है कि प्रतिबंध लगाना ही था तो पहले क्यों नहीं लगाया गया? कम से कम वे अपनी पूंजी इसमें नहीं फंसाते। उस रकम से दूसरा कोई व्यवसाय बढ़ाते। छोटे-छोटे दुकानदार भी पटाखे बेचकर कमाई किया करते हैं। इन सबकी चिंता करना सरकार का ही काम है।

अधिकारी कह रहे हैं कि उन्होंने तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सिफारिश मानी है। बड़ा भोला तर्क है। सरकार और प्रशासन दूरदर्शी होते, जैसा कि उन्हें होना ही चाहिए, तो उन्हें बताने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए थी कि कई साल से इस मौसम में प्रमुख शहरों में हवा की गुणवत्ता बहुत खराब हो जाती है और पटाखे कम से कम जलाने की अपील करनी पड़ाती है। ग्रीन ट्रिब्युनल और सुप्रीम कोर्ट बराबर निर्देश जारी करते रहते हैं। दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ साल से पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना पड़ रहा है। यह सब देखते हुए उन्हें पहले ही सलाह या निर्देश जारी कर देने चाहिए थे। एयर क्वालिटी इण्डेक्सके अति-हानिकारक होने का इंतजार क्यों करना था?

अब वह समय आ गया है कि हवा-पानी या इस धरती के लिए नुकसानदायक व्यवसायों को क्रमश: बंद करते हुए छोटे व्यापारियों-दुकानदारों के लिए वैकल्पिक व्यवसाय खोजे-बताए जाने चाहिए। पटाखे ही क्यों, पॉलिथीन पर प्रतिबंध भी इसीलिए नहीं कारगर हो पाता कि उससे कई परिवारों का पेट जुड़ा है। और भी व्यवसाय हैं, जिन्हें अब इस धरती के हालात देखते हुए, बदल दिया जाना चाहिए। दूरदर्शी सरकार और प्रशासन का दायित्व है कि वह ग्रीन ट्रिब्युनल का मुंह देखे बिना, वैकल्पिक और पर्यावरण के लिए हितकर या न्यूनतम हानिकारक व्यवसाय विकसित करे और समय रहते व्यापारियों को सचेत करे। समस्या यह है कि सरकारों में ऐसी चिंता सिरे से नदारद है।

जिन लोगों ने पटाखों में रकम फंसा रखी है वे उसे निकालने के जतन करेंगे। चोरी-छुपे बेचेंगे या उन जिलों का रुख करेंगे जहां प्रतिबंध नहीं लगा है। लखनऊ में पटाखे नहीं दगेंगे लेकिन सीतापुर में बेहिसाब बजेंगे तो प्रतिबंध का लाभ क्या है? ग्रीन ट्रिब्युनल के निर्देश मानने की औपचारिकता निभानी है या हवा-पानी की सेहत की वास्तव में चिंता करनी है? यह चिंता भी छोटे-मंझोले व्यवसाइयों का हित देखे बिना नहीं की जानी चाहिए।

दीपावली की शुभकामनाओं के साथ क्या उम्मीद करें कि सरकार इस दिशा में सचेत और सक्रिय होगी?

(सिटी तमाशा, नभाटा, 14 नवम्बर, 2020)

      

 

 

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