Friday, May 07, 2021

हां, फिर भी आकाश बादलों से बड़ा है!


इन दिनों मन बहुत बुझा-बुझा और भारी रहता है। कोई बड़ा-सा बोझ बैठा हो जैसे। उदासी
, एकाकीपन, डर, अजीबोगरीब ख्याल, किया-न किया, जिया-क्या जिया, जैसे विचार उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। बीमारी के अलावा दवाओं ने भी तन-मन को चौतरफा घायल किया है। डॉक्टर कहते हैं कि आठ घण्टे की नींद लीजिए। यहां लगभग पूरी रात आंखों में कट जाती है।

प्रतिदिन मिलने वाली बुरी खबरें दिल-दिमाग को और भारी बना रही हैं। दुनिया में दुख पहले कम न था। दहला देने वाली खबरें भी आती ही थीं। व्यवस्था-जनित लापरवाहियां, उपेक्षा, निष्क्रियता, चालाकियां और झूठ इस कष्ट को कई गुणा बढ़ा रहे हैं। वे साथी भी भीतर से हिले हुए दिखते हैं जिनके होने और जीने से ताकत मिलती थी। कोई लिख रहा है कि क्या संसार में अब दुख ही बचा है? कोई निश्चित मत बना बैठा है कि जीवन में अच्छा कुछ बचा ही नहीं।

दार्शंनिकों, रचनाकारों, संतों, आदि ने जीवन में दुख और संसार की निस्सारता पर खूब विचार किया है। दुख ही जीवन की कथा रही,’ जैसे वाक्य लेखन और प्रवचन में छाए रहे हैं। बुद्ध ने शोक-विह्वल एक मां को कितनी आसानी से समझा दिया था कि यह संसार दुखों से भरा है। जे कृष्णमूर्ति मृत्यु पर इतनी शांति, गहराई और व्यापकता के साथ विचार करते हैं कि उसे जीवन का ही हिस्सा बना देते हैं, दुख का विषय नहीं।

किशोरावस्था से निकलते ही अपने से काफी बड़ी एक लड़की के आकर्षण में पड़कर उसकी दी हुई जो किताब पढ़ी थी, वह मेरे लिए पहले अंग्रेजी उपन्यास का पढ़ना भी हुआ। टॉमस हार्डी के उपन्यास मेयर ऑफ कास्टरब्रिजकी अंतिम लाइनें आज भी दिमाग में शब्दश: दर्ज हैं- हैप्पीनेस इज बट एन ऑकेजनल एपीसोड इन द जनरल ड्रामा ऑफ पेन।दुख भरे जीवन-नाटक में खुशी बस अचानक आ पड़ने वाला कोई प्रसंग है। मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा दोस्ती का वह गाना याद करिए- सुख तो एक छांव ढलती, आती है-जाती है। दुख तो अपना साथी है,’ गुनगुनाते हुए हम उस टीस को क्यों भुलाना नहीं चाहते? दुखांत क्या स्थाई भाव है?

नहीं। अमेरिकी लेखक-पत्रकार मिच अल्बॉम की अद्भुत किताब ट्यूजडेज विद मोरीअसाध्य रोग से क्रमश: मर रहे अपने पुराने अध्यापक मोरी श्वार्ज से मुलाकातों की संस्मरणात्मक कथा है। मोरी आती हुई मौत की तैयारी करते हैं और जीवन में जो कुछ अमूल्य रहा, उसका उत्सव मनाते हैं। अल्बॉम हर मंगलवार को मोरी से मिलने जाता है और उदास होने की बजाय जीवनी-शक्ति से भर कर लौटता है। मोरी मुस्कराते हुए कहते हैं- मेरे चारों तरफ ऐसे लोग हैं जिन्हें लगता है कि वे सदा जीवित रहेंगे और बीमार भी न पड़ेंगे!निकोलाई ऑस्त्रोवस्की का आत्मकथात्मक उपन्यास हाउ द स्टील वाज टेम्पर्ड’ (हिंदी में अग्नि दीक्षा) सारे जीवन के दुखों, संघर्षों और नाउम्मीदी के बाद अंतत: अंधेरा छंटने और जीवन के सम्पूर्ण सार्थक हो जाने की विश्व प्रसिद्द्ध कहानी है।

फिर ऐसे कई प्रसंग याद आने लगते हैं। 1978 के जाड़ों की भोपाल की एक शाम, जब नाट्य-प्रदर्शन के बाद अनौपचारिक कवि-गोष्ठी हुई थी। उन कवि का नाम आज तैतालीस वर्ष बाद याद नहीं आ रहा, जिन्होंने उस शाम एक-एक, दो-दो पंक्तियों की कुछ कविताएं सुनाई थीं। उनकी दो कविताएं हर कठिन मौके पर स्मरण हो आती हैं। एक है- मेरी सुंदर-सी डायरी में तीन सौ पैंसठ पृष्ठ दुख!क्या बात है! सारे के सारे पृष्ठ दुख से भरे हैं लेकिन डायरी सुंदर-सीहै! दूसरी कविता कहती है –आकाश बादलों से घिरा है। फिर भी आकाश बादलों से बड़ा है!

कोई शक? फिर दिल-दिमाग पर छाए भारीपन को लेकर इतना क्यों हाय-तौबा की जाए! तो, थोड़ा नींद आए। एक सांस सुकून की लेकर हालात से लड़ने को अपने को तैयार किया जाए क्योंकि उसके बिना तो मानव-जीवन ही नहीं। 

(सिटी तमाशा, नभाटा, 8 मई, 2021)   

        

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