केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री के के शैलजा की इन दिनों खूब चर्चा है। पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहते शैलजा ने केरल में कोविड नियंत्रण, जन-जागरूकता और पीड़ितों के इलाज में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। उसी कारण वे इतनी लोकप्रिय हुईं कि हाल में सम्पन्न चुनाव में उन्होंने जीत के अंतर का नया कीर्तिमान बना डाला। शैलजा को नई सरकार में शामिल नहीं किया गया है। इसके लिए मुख्यमंत्री और वाम मोर्चे के नेतृत्व की कड़ी आलोचना हो रही है।
हम यहां शैलजा की चर्चा दूसरे
कारण से करना चाहते हैं। पूरे उत्तर भारत में एक भी मंत्री ऐसा क्यों नहीं है जिसकी
तुलना शैलजा के कोविड-नियंत्रण-योगदान से की जा सके? कोविड की दूसरी लहर से
देश हलकान है। जिस तरह बिना अस्पताल, बिना ऑक्सीजन और बिना जांच के लोग मरे, उसका बार-बार उल्लेख दहलाता है लेकिन यह पूछने का मन होता है कि इस पूरे दौर
में एक भी सांसद, एक भी मंत्री, एक भी विधायक
‘अपनी’ जनता के साथ खड़ा क्यों नहीं हुआ?
उत्तर प्रदेश के एक सांसद, एक कैबिनेट मंत्री और एक-दो
विधायकों ने जांच, इलाज और अस्पतालों की व्यवस्था पर असंतोष व्यक्त
किया। कुछेक ने अपनी तरफ से दवाएं वितरित कराईं लेकिन सबसे बुरी मुसीबत के इस दौर में
एक भी जन-प्रतिनिधि त्राहि-त्राहि करती जनता के साथ नहीं रहा। न ही सत्ता पक्ष से और
न ही विपक्ष से कोई ऐसा उदाहरण सामने आया जिसे जनता कह सके कि हां, हमारे नेता ने हमारे कष्ट कम करने में मदद की।
कुछ ग्राम प्रधानों ने अवश्य अपने क्षेत्र में मरीजों के एकांतवास
और इलाज कराने में बड़ी भूमिका निभाई। जैसे, लखनऊ के समीपवर्ती गांव कबीरपुर की युवा प्रधान
रीता वर्मा ने बीमारों को अलग रखकर और मरीजों की चिकित्सा व्यवस्था करके अपने इलाके
में संक्रमण काफी हद तक रोक दिया। ऐसे और भी कुछ उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन हमारे माननीय
मंत्री, सांसद और विधायक सरकार का गुणगान करने, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की तारीफ में बयान देने के अलावा और क्या कर रहे
थे?
यह सवाल विपक्षी दलों के नेताओं और विधायकों से भी है? जन-प्रतिनिधि
होने के नाते उनकी भूमिका क्या रही? पंचायत चुनाव में वोट मांगने
के लिए तो वे अपने क्षेत्रों में बड़े सक्रिय रहे लेकिन कोविड से त्राहिमाम कर रही जनता
के प्राण बचाने के लिए उन्होंने क्या किया? कितने विधायक हैं
जो अपने क्षेत्र में डटे रहे और व्यवस्था को चुस्त बनाने का दबाव बनाते रहे?
क्या वे क्षेत्र की जनता को भौतिक दूरी बनाए रखने, मास्क पहनने, पीड़ितों को अलग रखने और त्योहारों-समारोहों
में भीड़ न जुटाने के लिए तैयार नहीं कर सकते थे? उलटे,
इन सावधानियों का उल्लंघन स्वयं उन्होंने खूब किया।
देश भर में गुरद्वारों ने हर संकट के समय की तरह इस बार भी खूब
शाबाशी का काम किया और कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवी
संगठनों, संस्कृति कर्मियों, रचनाधर्मियों,
चिकित्सकों, आदि ने ऑक्सीजन दिलाने से लेकर,
दवाएं, खाना, डॉक्टरी सलाह, आदि उपलब्ध कराईं। एक अकेली लड़की लावारिश लाशें श्मशान पहुंचाने में लगी रही।
चिताओं के लिए कम पड़ गई लकड़ियां जुटाने में युवाओं के दल जुटे रहे। क्या मंत्री-सांसद-विधायक
यह सब आसानी से नहीं करा सकते थे? क्या किसी ने सुना कि अमुक
नेता ने कुछ ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, बेड, कुछ
वेंटीलेटर, आदि अपने क्षेत्र में उपलब्ध कराए?
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