Monday, May 17, 2021

महामारी के सबक और सीखने वाले समाज

 

सीखने वाले देशों और सरकारों के लिए कोविड महामारी बड़े सबक भी दे जा रही है। हमारे देश के लिए जहां स्वास्थ्य सुविधाएं अत्यंत उपेक्षित हैं  और जहां इसीलिए महामारी का प्रकोप बहुत भयानक रूप ले चुका है, ये सबक बड़े और महत्त्वपूर्ण हैं। इतनी विकराल महामारी का मुकाबला करने के लिए तो बहुत सारी तैयारियां और संसाधन चाहिए लेकिन यदि ग्रामीण एवं कस्बा स्तर पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का पहले से मौजूद संजाल तनिक भी दुरुस्त होता तो गांव देहातों से आ रही रोंगटे खड़ी करने वाली खबरें काफी कम हो सकती थीं।

स्वास्थ्य सुविधाओं को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाने के लिए इन स्वास्थ्य केंद्रों का संजाल तैयार किया गया। किसी भी जिले के कस्बों-गांवों की तरफ चले जाएं, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के भवन मिल जाएंगे। विकास योजनाओं के नाम पर हमारा तंत्र भवन बनाकर खड़ा कर देने में अत्यंत सक्षम और चुस्त है। इमारतें फौरन खड़ी कर दी जाती है लेकिन जो सुविधाएं इनमें प्राण भ्ररती हैं, वे सर्वथा उपेक्षित रहती हैं। सामान्य दिनों में भी हम पाते हैं कि इन स्वास्थ्य केंद्रों में ताले लटके हैं, डॉक्टर नहीं हैं, स्वास्थ्यकर्मी तैनात हैं लेकिन आते नहीं, दवाओं, आदि का तो पूछना ही क्या।

यदि स्वास्थ्य क्षेत्र इतना उपेक्षित न रखा गया होता और इन स्वास्थ्य केंद्रों को न्यूनतम आवश्यक सुविधाओं से लैस किया गया होता तो नदियों में बहती आती लाशों के वीभत्स दृश्य देखने को क्यों मिलते। महामारी की पहचान कर त्वरित एवं आकस्मिक चिकित्सा तो ये केंद्र शुरू कर ही सकते थे। इतने भर से मरीजों की हालत बिगड़ने से पहले सम्भाली जा सकती थी। क्या आज भी हमारी सरकारें यह तैयारी कर रही हैं कि आने वाली लहर से निपटने के लिए गांवों तक स्वास्थ्य केंद्रों को यथासम्भव सक्रिय किया जाए? वहां चिकित्साकर्मी तैनात हों और दवाएं, ऑक्सीजन सिलेण्डर, आदि भी हर समय उपलब्ध हों? गुरुद्वारे यह काम कर सकते हैं तो सरकार क्यों नहीं कर सकती?

महंगे और बेहतरीन निजी अस्पतालों के लिए हमारा देश चर्चित है। ऐसे-ऐसे अस्पताल हैं जिनकी कल्पना करना भी सामान्य जनता के लिए मुश्किल है। इस देश के चंद प्रतिशत लोग और विदेशी भी इन अस्पतालों पर गर्व करते थे। उन्हें लगता था कि इनके रहते उन पर कोई खतरा नहीं है। कोविड महामारी ने इन विशिष्ट अस्पतालों को भी लाचार बना दिया। वे अमीर जो सरकारी अस्तपालों को घृणा की दृष्टि से देखते थे, वहीं शरण लेने को विवश हुए। एक बार फिर यह साबित हुआ कि इस देश की विशाल आबादी को समय पर आवश्यक इलाज देने में सरकारी चिकित्सा संस्थानों एवं छोटे अस्पतालों की बड़ी भूमिका है। उन्हें व्यस्थित और सुचारू बनाया जा सके तो महामारी का प्रकोप नियंत्रित किया जा सकता है।

महामारी ने हमारे तंत्र की बहुत सारी कमियों पर से पर्दा उठा दिया है। कमियों, लापरवाहियों और उपेक्षाओं का मंजर सामने है। इसे छुपाने–दबाने के प्रयास करने की बजाय उन्हें दूर करने के प्रयास युद्ध स्तर पर किए जाने चाहिए। कमियों को स्वीकार करना उन्हें दूर करने की दिशा में पहला बड़ा कदम है। छुपाने का सीधा अर्थ है कि हम उन कमियों की भरपाई करना नहीं चाहते।

शहरी निकायों और ग्रामीण पंचायतों के व्यापक संजाल को थोड़ी बहुत तैयारी और प्रशिक्षण से इतना सक्षम बनाया जा सकता है कि वे दूरस्थ इलाकों तक महामारी को नियत्रित करने के आवश्यक उपाय कर सकें। इसके लिए संसाधनों से अधिक इच्छा शक्ति चाहिए, पारदर्शिता चाहिए और वह साहस एवं दृष्टि चाहिए जो किसी विजेता फौज के सेनापति में होती है। समस्या है कि ऐसे नाजुक अवसरों पर हमारा राजनैतिक नेतृत्व इस दृष्टि से अत्यंत गरीब साबित होता है। 

(सिटी तमाशा, नभाटा, 17 मई 2021)           

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