Sunday, June 19, 2022

अपने समाज, इतिहास और राजनीति के बारे में जो पढ़ना मना है-2

Indian Express की खोजी रिपोर्ट के अनुसार NCERT ने कक्षा छह से बारह तक की इतिहास, समाजशास्त्र और राजनीति शास्त्र की पाठ्यपुस्तकों से भारतीय समाज में दलितों से होने वाले भेदभाव, अल्पसंख्यकों पर दबाव और मध्ययुगीन इतिहास के कई महत्त्वपूर्ण प्रसंग हटा दिए हैं। ऐसा पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने और बच्चों पर पढ़ाई का दबाव कम करने के नाम पर किया जा रहा है।

समाज की वर्णाश्रम व्यवस्था में 'अस्पर्श्य' वर्णों के साथ भेदभाव के प्रसंग कई जगह पाठों से हटा दिए गए हैं। वर्ण के अनुसार सर्वोच्चता और वर्णाश्रम व्यवस्था का नकार भी अब छात्रों को पढ़ने को नहीं मिलेगा। छात्र यह भी नहीं पढ़ेंगे कि इस हिंदू वर्ण व्यवस्था में शूद्रों और महिलाओं को वेद पढ़ने से वंचित रखा जाता था। कक्षा छह की राजनीतिशास्त्र की पुस्तक के अध्याय 'विविधता और भेदभाव' को काफी काट दिया गया है। निकाला गया एक हिस्सा बताता था कि "जातियों के नियम ऐसे बनाए गए थे कि 'अस्पर्श्य' माने जाने वाले लोग अपने लिए नियत काम के अलावा दूसरा काम नहीं कर सकते थे। जैसे कि कुछ जातियों को कचरा उठाने, मरे जानवरों को ढोने जैसे काम करने होते थे। उन्हें उच्च जातियों के घरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी और वे गांव के कुएं से पानी भी नहीं ले सकते थे, न ही मंदिरों में प्रवेश पा सकते थे। उनके बच्चे स्कूल में दूसरी जातियों के बच्चों के साथ नहीं बैठ सकते थे।" इस पाठ से यह अंश भी निकाल दिया गया है कि "जाति आधारित भेदभाव दलितों को कई काम करने से ही नहीं रोकता था बल्कि उन्हें सामान्य सम्मान और गरिमा से भी वंचित करता था, जो कि दूसरी जातियों के लोगों को सहज ही प्राप्त थे।"

मानव मल बटोरने और उठाने जैसे घृणित काम के लिए विवश दलितों के बारे में हर्ष मंदर का लेख, जो पाठ्यक्रम का हिस्सा था, हटा दिया गया है। दलित महिलाओं की और भी दुर्दशा होती रही है,  यह कटु सत्य छात्रों को बताने वाला सतीश देशपाण्डे का लेख पाठ्यक्रम का हिस्सा अब नहीं होगा। 

इसी तरह अल्पसंख्यकों से होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न की जानकारी देने वाले पाठों में भी बहुत कतरब्योंत की गई है। हिंदू साम्प्रदायिक ताकतों की नव-सृजित शक्ति और उसके कारण अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के सरकारी कदमों का पूरा प्रभाव न होने के प्रसंग भी अब पाठ्यक्रम में नहीं होंगे। बहुसंख्यक आबादी का राजनीतिक शक्ति पाने और उसके प्रभाव में अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक एवं धार्मिक संस्थानों पर दबाव पड़ने की बात भी निकाल दी गई है। 

मध्यकालीन इतिहास: वर्तमान सत्तारूढ़ दल की यह बहु-प्रचारित धारणा कि 'वामपंथी' झुकाव के कारण  हमलावरों और मुगल शासकों की तारीफें करके इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया है, जबकि देसी हिंदू राजाओं के योगदान की अनदेखी की गई है, अब स्कूली पाठ्यक्रम में अपनी रंगत दिखा रही है। मुस्लिम शासकों से सम्बंधित पाठों में बहुत काट-छांट और बदलाव किए जा रहे हैं। दिल्ली सल्तनत यानी मामलुक, तुगलक, खलजी और लोदी वंश के शासन काल के इतिहास में सबसे अधिक बदलाव किए जा रहे हैं। अभी हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा भी था कि देश का गलत इतिहास लिखा गया है और पांंड्य, चोल, मौर्य, गुप्त और अहोम शासकों की उपेक्षा करके मुगलों को महत्व दिया गया है। अब हमें इसे नए सिरे से लिखने से कोई नहीं रोक सकता। पाठ्यपुस्तकों में हो रहे बदलाव में यही किया जा रहा है। अब अकबर के बारे में छात्र यह नहीं पढ़ सकेंगे कि वह किस तरह सभी धर्मों काआदर करता था और उसने कई संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराया था। 

अन्य बदलाव: लोकतंत्र और भारतीय लोकतंत्र के निर्माण के बारे में चार अध्याय इस तर्क के आधार पर हटा दिए गए हैं कि 'ऐसे विषय अन्य दर्ज़ों में पढ़ाए जा चुके हैं। उदाहरण के लिए, कक्षा छह की राजनीति शास्त्र की किताब से 'लोकतांत्रिक सरकार के मुख्य अवयव' नामक पाठ निकाल दिया गया है। मिडिल स्तर की पढ़ाई में यह पहला विस्तृत अध्याय था जिसमें बच्चों को लोकतांत्रिक सरकार की कार्यप्रणाली को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण तत्व,  जैसे जन-भागीदारी, विवाद समाधान, समानता और न्याय, पढ़ाए जाते थे।  इसी तर्क के आधार पर कक्षा आठ की इतिहास पुस्तक 'हमारा इतिहास-3' से  'स्वतंत्रता के पश्चात भारत' अध्याय निकाल दिया गया है जिसमें बताया गया था कि कैसे हमारा संविधान बनाया गया और भाषा के आधार पर राज्यों का गठन कैसे हुआ, आदि।

कक्षा दस की राजनीति शास्त्र की पाठ्य पुस्तक से 'लोकतंत्र और विविधता' एवं 'लोकतंत्र की चुनौतियां' शीर्षक अध्याय निकाल दिए गए हैं। 'लोकतंत्र और विविधता' पाठ में छात्रों को दुनिया भर में जाति, धर्म, नस्ल के आधार पर सामाजिक विभाजन और असमानता के बारे में बताया जाता था वहीं दूसरे पाठ में लोकतांत्रिक राजनीति में सुधार की आवश्यकताओं पर चर्चा थी। पहले इन्हें CBSE के पाठ्यक्रम से हटाया गया था, अब NCERT की पुस्तकों से ही निकाल दिया गया है।

जवाहरलाल नेहरू : भाखड़ा और नांंगल बांध के बारे में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के विचार  कक्षा बारह के पाठ 'भारत मेंं सामाजिक बदलाव और विकास' से निकाल दिए गए हैं। नेहरू ने कहा था- "हमारे इंजीनियर बताते हैं कि सम्भवत: दुनिया मेंं इस बांध के बराबर ऊंचा कोई बांध नहीं है। यह काम बहुत कठिनाइयों और चुनौतियां वाला है। जब मैं बांध के आस-पास चक्कर लगा रहा था तो सोच रहा था कि आजकल सबसे बड़े मंदिर, मस्जिद और गुरद्वारा वे हैं जहां लोग मानव जाति की भलाई के लिए काम करते हैं। इस भाखड़ा-नांंगल बांध से बड़ी जगह और कौन होगी जहां हजारों-लाखों लोगों ने काम किया, अपना खून-पसीना बहाया और जान तक दी।" सम्राट अशोक के बारे में नेहरू का यह उद्धरण भी कक्षा छह के अशोक-सबंधी पाठ से निकाल दिया गया है -"अशोक के उपदेश आज भी उस भाषा में बोलते हैं जिसे हम समझ सकते हैं और अब भी उनसे सीख सकते हैं।"   

कक्षा छह से बारह तक के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में हो रहे या हो चुके बदलाओं की जो जानकारी अखबार में  विस्तार से प्रकाशित की जा रही है, उसका यहां संक्षिप्त ब्योरा दिया गया है। विस्तृत जानकारी के लिए Indian Express के 18 जून से 21 जून तक के अंक देखें। 

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