Thursday, July 04, 2024

पृथ्वी का संसार- जीवन की सार्थकता और खुशी यहां है!

होटल प्रबंधन की अच्छी मानी जाने वाली नौकरी छोड़कर पृथ्वी 'लक्ष्मी' राज सिंह ने किसान बनना चुना, ऐसा किसान जो मिट्टी, फसलों, वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं से बेतरह प्यार करता और उनके साथ जीता है। रामगढ़ के अपने खेतों-पौधों के बीच एक सामान्य सी कुटिया में वह अकेले रहता है। डेढ़-दो किमी ऊपर उसका अच्छा मकान और घर-परिवार है, जहाँ वह कभी-कभार जाता है। क्यों? 

"इन पौधों को भी लगना चाहिए कि कोई उनकी परवाह करता है, उनके साथ समय बिताता है।" सेब के एक पौधे को सहलाते हुए उसका जवाब आता है। 

पाथर छाई, गोबर-मिट्टी लिपी उसकी कुटिया को देखकर इस जमाने में यह विश्वास करना कठिन होगा कि कोई प्रतिभाशाली युवक ऐसा जीवन अपने लिए स्वेच्छया चुन सकता है। प्रश्न यह है कि आप अपने जीवन का सुख-संतोष किन चीज़ों में तलाश करते हैं। 'रिव टेरा' में, जो पृथ्वी ने इस अड्डे का नाम रखा है, उसकी सुख व संतोष की दुनिया है। 

 

पृथ्वी ने खेती-बागवानी और मछली पालन से अपने लिए  एक अलग और चुनौतीपूर्ण राह बनाई है। अक्टूबर 2021 की अतिवृष्टि और बाढ़ में उसके ट्राउट पालन टैंक और बगीचे बह गए। वे रौखड़ बन गए। रोज की तरह उस रात वह वहाँ अकेला था। गधेरे के पार एक मकान में दो लोग दफ़्न हो गए थे। चारों ओर विनाश लीला थी और अपनी दो गायों के साथ वह उसके बीच घिरा हुआ था, सभी रास्तों से कटा हुआ। 

 

वह कहता है-"नवीन जी, उस मुर्दनी के बीच मेरी गाय ब्या गई। तब मैंने अनुभव किया कि मौत के तांडव के बीच जीवन कैसे स्पंदित होता है। तब मैंने गायों के लिए घास काटी…।"

 

उस दुर्घटना ने जीवन के इस ढंग और किसानी में उसका विश्वास और भी पक्का कर दिया। ट्राउट (मछली) पालन के लिए नए टैंक तैयार किए गए। सेब की विविध उन्नत प्रजातियों की पौध और किवी लगाई गई। पुलम और आड़ू के पेड़ों की अपने ही प्रायोगिक ढंग से प्रूनिंग की (उसके शब्दों में 'बिगाड़ कर सीखा') और ड्रिप सिंचाई विधि अपनाई। 

 

जैसे प्रकृति में होती है अन्तर्निहित जीवनी शक्ति, वैसे ही उसके खेतों-तालाबों में भी नया सृजन हुआ। अखरोट के पेड़ फलों से लदे हुए हैं। आड़ू, पुलम, नाशपाती फले। मां की स्मृति लिए हुए राजमा खिली। आज पृथ्वी के चारों और उसका  श्रम एवं सृजन खिले हुए दिखते हैं। 

 

सड़क से करीब एक किमी नीचे तीखी ढाल पार करके वहाँ जाकर यह सब देखना आह्लादकारी तो था ही, अपने महानगरीय जीवन की व्यर्थता का बोध भी करा गया। वापसी चढ़ाई में धोंकनी बने फेफड़े भी हमें चिढ़ाते रहे!

 

पृथ्वी का काम, प्रकृति और खेती के प्रति दीवानापन अचर्चित नहीं है। कवि प्रवृत्ति वाले पृथ्वी का अपने जानने वालों के बीच सम्मान है। जिला और प्रदेश स्तर के पुरस्कार उसे मिल चुके हैं। आगामी नौ जुलाई को दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद उसे मत्स्य पालन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार देने वाली है। 

 

वैसे, पुरस्कारों-प्रशस्तियों के प्रति उसमें संत भाव रहता है। संयोग से इस पुरस्कार की सूचना उसकी ईमेल पर उसी दिन, उसी समय आई जब हम उसकी कुटिया के बाहर चाय सुड़क रहे थे।

 

स्वाभाविक ही इस अनोखे युवक में पर्यावरण के प्रति असीम प्यार है। इस उपभोक्तावादी समाज की अपने पर्यावरण के प्रति घोर उपेक्षा देखकर वह कहता है- "जल्दी ही इनसान को पता चल जाएगा कि जो साँस उसने अभी ली है, वह आखिरी हवा थी। जो पानी उसने अभी पिया है, वह इस धरती में आखिरी उपलब्ध घूँट था।" 

 

अतिशयोक्ति नहीं करता वह। मिट्टी-गोबर लिपे पाल पर सोना, चूल्हा बार कर खाना पकाना (थोड़ा बिजली का भी उपयोग), किताबें पढ़ना, कविताएं लिखना और सांप को डपट देना कि प्यारे, लंच में चूहा ही खाना है तो तनिक आड़ में चले जाओ, ... यह दिखावा नहीं है। वैसे भी, 'रिव टेरा' में दिखावा देखने कौन जाता है! 

 खुश रहना और अपने मोर्चे पर डटे रहना पृथ्वी प्यारे, हम अपनी बनाई महानगरीय कैद में जाने को विवश हैं। 

 

- न जो, 05 जुलाई, 2024

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