वयोवृद्ध कलाकार, प्राच्य व लोक कला अध्येता एवं कला संग्राहक यशोधर मठपाल जी बिल्कुल अचानक सामने आ गए। भीमताल के गीताधाम में स्थापित लोक संस्कृति संग्रहालय में प्रवेश करते ही उनसे मिलने की इच्छा जताई थी तो बताया गया कि बीमार हैं, मिलना न हो पाएगा। तब हम उनके जीवन भर की तपस्या, उनके भगीरथ प्रयास से फलीभूत इस अनोखे संग्रहालय को देखने में लग गए। 1983 में उनके नितांत व्यक्तिगत प्रयास से स्थापित यह संग्रहालय कुमाऊँ/ हिमालय के लोक जीवन और संस्कृति के ऐतिहासिक पड़ावों की झलक पेश करता है। मुनस्यारी में एस एस पांगती जी ने भी भोटिया व रं समाज और लोक संस्कृति का ऐसा ही मूल्यवान संग्रहालय अपने व्यक्तिगत प्रयास से बनाया है।
मठपाल जी का मूल काम भीम बेटका व लखु उड्यार के गुफा चित्रों पर है, जिसकी अनेक प्रतिकृतियाँ यहाँ मठपाल जी के हाथों बनाई हुई प्रदर्शित हैं। वे स्वयं प्रसिद्ध चित्रकार (लखनऊ कला महाविद्यालय से शिक्षित) हैं, इसलिए लोक जीवन व लोकाचार से जुड़े उनके बनाए हुए सैकड़ों चित्र, मुख्यतः जलरंगों में, यहाँ देखे जा सकते हैं।
हम इसी सब को देखने में खोए हुए थे कि अचानक मठपाल जी सामने आ पड़े। उन्हें वर्षों बाद देखा। कमजोर हो गए हैं, अस्वस्थ रहते हैं लेकिन सक्रिय हैं। बताने लगे कि मन नहीं लगता तो अपने कमरे से संग्रहालय में चला आता हूँ। कभी ब्रश पकड़कर बैठ जाता हूँ।
बहुत बातें हैं उनके पास करने को। सबसे बड़ा दर्द यह है कि पूरा जीवन लगाकर स्थापित यह संग्रहालय सरकार व समाज से उपेक्षित है। पर्यटकों को शायद ही इसके बारे में कुछ पता हो। पता भी हो तो जैसे पर्यटक आ रहे हैं उनकी कोई रुचि लोक जीवन व संस्कृति में होगी ही नहीं। स्थानीय समाज की गति भी उसी दिशा में है। भविष्य में इसका क्या होगा? बरसात में कहीं-कहीं पानी टपक रहा है। दुर्लभ संग्रह के खराब हो जाने का खतरा है। छत के रखरखाव की तत्काल जरूरत है। आज तक सब कुछ अकेले किया, अब साज-संभाल बहुत कठिन हो गई है। मुख्यमंत्री धामी को मंदिरों-बाबाओं की शरण में जाने से फुर्सत नहीं है। उनके पूर्ववर्ती भी ऐसे ही थे। कभी यहां आकर देखते कि यह कितने महत्व का काम है। इसे सरकारी संरक्षण में लेते, रख-रखाव कराते या अनुदान देते। फिर कहने लगे कि उत्तराखण्ड न बनता तो अच्छा था। उत्तराखण्ड राज्य के जो हालात बना दिए गए हैं, उसमें यह नेताओं-दलालों-ठेकेदारों के अलावा सबको पिड़ा रहा है।मठपाल जी की व्यथा हमारे सभी जन रचनाधर्मियों की पीड़ा है। उन्होंने अकेले ही इतना बड़ा, महत्वपूर्ण, दस्तावेजी,और अनोखा संग्रहालय बना डाला। संग्रहालय के परिपत्र की इस पंक्ति को ध्यान से पढ़िए-‘यह संभवत: एकमात्र संग्रहालय है जहाँ इसका संस्थापक ही अब तक अकेले निदेशक, शोधक, प्रदर्शक, आर्थिक संसाधन प्रबंधक, चित्रकार, मूर्तिकार और सफाईकर्मी भी है।’ 86 वर्ष की अवस्था में इतना श्रम संभव नहीं है। इसलिए एक भांजे को देख-रेख के लिए रख लिया है लेकिन दिन भर संग्रहालय की चिंता में चक्कर लगाते रहते हैं।
श्रद्धेय मठपाल जी, हम आपकी चिंता साझा करते हुए आपके समर्पण और संकल्प को सलाम ही कर सकते हैं।
-न जो, 05 जुलाई, 2024
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