Saturday, May 02, 2020

प्राथमिकताएं बदलने का अवसर दे रहीं चुनौतियां


कोरोना महामारी ने अत्यंत विकराल संकट खड़ा किया है तो अवसर भी उपलब्ध कराए हैं. हर संकट भविष्य के लिए सुरक्षा और उसकी तैयारियों की राह भी दिखाता है. खतरों को अवसरों में बदलना ही मनुष्य की विशेषता है. इस खतरे ने हमारी आंखें उन अंधेरे या अल्प-प्रकाशित कोनों की ओर मोड़ी हैं जो प्राथमिकता में बहुत पीछे चली गई हैं. कुछ सच्चाइयां भी हमें दिखने लगीं हैं, जिन पर पर्दा पड़ा हुआ था.   

पता था कि आबादी की तुलना में हमारी चिकित्सा सुविधाएं बहुत सीमित हैं. बेहतर सुविधाएं पैसे वालों को निजी अस्पतालों में सुलभ हो जाती हैं. सरकारी अस्पतालों को आम तौर पर अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता रहा. इस धारणा के कारण ही निजी अस्पतालों की बन आई थी. आज सत्य सबके सामने आया है कि सरकारी अस्पतालों और डॉक्टरों की छवि चाहे जितनी खराब बताई जाती हो, कोरोना से लगभग पूरी लड़ाई वही लड़ रहे हैं. सीमित सुविधाओं के बावजूद वे पूरे समर्पण से जुटे हैं. अपने को खतरे में डालकर भी मरीजों की सेवा में लगे हैं. यह चर्चा हम पिछले सप्ताह कर चुके हैं कि सरकारी डॉक्टर, नर्स और अन्य स्टाफ किस तरह हफ्तों घर नहीं जा पा रहे. सफाई कर्मी, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाए रखने वाले और पुलिस वाले युद्ध जैसे मोर्चे पर डटे हुए हैं.

वहीं, जिन निजी अस्पतालों की पंच-तारा सुविधाओं का गुणग़ान होता रहा है, वे संसाधन होने के बावजूद कोरोना से लड़ाई में दुबक गए हैं. सम्भवत: यह जानबूझ कर या किसी बंदिश की आड़ में हो रहा है. आंकड़ों देखिए. देश में उपलब्ध दो-तिहाई बेड, अस्सी फीसदी वेण्टीलेटर, और प्रत्येक पांच में से चार डॉक्टर निजी अस्पतालों के पास हैं लेकिन वे सिर्फ दस प्रतिशत कोरोना-मरीजों का इलाज कर रहे हैं. सरकारी तंत्र स्वीकार कर रहा है कि निजी अस्पतालों ने इस युद्ध में अपने हाथ पीछे खींच रखे हैं. यही नहीं, इन दिनों वे दूसरे मरीजों का इलाज करने में भी हीलाहवाली कर रहे हैं.

कोरोना महामारी ने सरकार के सामने चुनौती के साथ यह महत्त्वपूर्ण अवसर भी रखा है कि अब वे चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाने और आम जन तक पहुंचाने पर खूब ध्यान दें. सरकार ने ही माना है कि देश के 147 जिलों में एक भी आईसीयू बेड नहीं है और इनमें 34 जिले हमारे उत्तर प्रदेश के हैं. हमारे 80 मैं से 53 जिले ऐसे हैं जहां 100 से कम आसोलेशन बेड हैं, जिनकी इस समय सबसे अधिक आवश्यकता है.  यह कमियों को गिनाने का अवसर उतना नहीं है, जितना कि उन्हें दूर करने के लिए कमर कसने का. इस महामारी से भी हम जीत जाएंगे लेकिन भविष्य के लिए प्राथमिकताएं तय अभी हो जानी चाहिए.

बहुत सारे लोग रोज कुआं खोदकर पानी पीते हैं, इसे सामान्य ज्ञान की तरह बहुत कहा-सुना जाता था, लेकिन यह आबादी कितनी विशाल है और अपने घर से दूर कहां-कहां किस हाल में खट रही है, यह लॉकडाउन ने हम सबके सामने खोलकर रख दिया है. क्या यह बड़ा अवसर नहीं है कि इस आबादी का जीवन स्तर बेहतर करने को सरकारें अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाएं? उत्तर प्रदेश के लिए स्वाभाविक ही यह संख्या बहुत बड़ी है. इसलिए चुनौती और अवसर भी बड़े हैं. 

जिन्हें नगर निगम अतिक्रमणकारीकहकर जब-तब उजाड़ दिया करते हैं, वे ठेले-खोंचे-रेहड़ी-पंक्चर-फुटपाथ, आदि-आदि वाले किस तरह पेट पाल रहे हैं, कोरोना ने हमें इस पर गम्भीरता से सोचने का अवसर दिया है. यह भी कि इन अतिक्रमणकारियोंके बिना मध्य और उच्च मध्य वर्ग का जीवन नहीं चलता.

कोरोना के बाद दुनिया बदलनी चाहिए और सरकारों की प्राथमिकताएं भी.

(सिटी तमाशा, नभाटा, 03 मई, 2020)         

2 comments:

Unknown said...

Simply put serious facts of our times. Only if the government and the society picks up a learning or two, only if we come out better prepared for an unseen tomorrow.

सुधीर चन्द्र जोशी 'पथिक' said...

बिल्कुल सही कहा। अब देश की समस्या और आम आदमी की समस्या का ब्लू प्रिंट सा हमारे सामने है। सरकार अपनी कमियों या देश की वास्तविक आवश्यकताओं को स्पष्ट देख सकती है। अतः अपने कार्यक्रम और योजनाएँ निर्धारित करने के लिये सर्वोत्तम समय है। प्राथमिकताएँ तो बदलनी ही चाहिए। चाहे चिकित्सा क्षेत्र हो या आर्थिक क्षेत्र, योजनाएँ आम आदमी की कठिनाई की दृष्टि से बदलनी होंगी। और हाँ, जैसा आपके अन्य लेख में था, निजि अस्पतालों व क्षेत्र पर भी ऐसे अंकुश लगाने होंगे कि वे आम आदमी के लिये भी काम करें और केवल लाभार्जन तक ही सीमित न रहें।