गाय के गोबर की महिमा हिंदू परम्पराओं में खूब बताई जाती है। इस दौर में तो सरकारें भी उसके महिमा मण्डन और व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा देने में लगी हैं लेकिन गधे की लीद का व्यावसायिक उपयोग नहीं सुनाई देता। दो दिन पहले हाथरस में एक फैक्ट्री पकड़े जाने की खबर आई। छापा डालने वालों का दावा था कि वहां गधे की लीद से मसाले बनते थे। बाद में हाथरस के जिलाधिकारी ने दावा किया कि अभी सिर्फ नमूने लिए गए हैं, किसी जानवर की लीद मिलने की पुष्टि नहीं हुई है। बहरहाल, जांच के बाद ही पता चलेगा कि क्या मिला था। जो भी मिलाया जा रहा होगा, वह पता नहीं कितनी बड़ी मात्रा में बाजार और रसोइयों में खप गया होगा।
बताया जाता है कि यह फैक्ट्री हिंदू वाहिनी के एक नेता की
है। हो सकता है वह गाय के गोबर का उपयोग कर रहा हो। गोमाता के गोबर और गधे की लीद में
स्वर्ग-नर्क का अंतर है। छापा डालने वाले खाद्य निरीक्षक नर्क में भी ठौर नहीं पाएंगे
अगर उन्होंने गाय के गोबर को गधे की लीद बता दिया! खैर, यह
सिर्फ चुटकी लेने के लिए था।
घोर चिंता की बात यह है कि चारों तरफ से खाद्य सामग्री में
खतरनाक मिलावट की सूचनाएं आ रही हैं। गधे की लीद से मसाले बनाने की फैक्ट्री जिस
दिन पकड़ी गई उसी दिन आगरा में भैंस के सींग और जानवरों की चर्बी गलाकर घी बनाने का
धंधा भी पकड़ा गया। घी में जानवरों की चर्बी की मिलावट खूब होती रही है। अक्सर धंधा
पकड़ में आता है लेकिन बंद नहीं होता। दूध में पानी मिलाने के दिन लद गए। अब पूरा
दूध ही रसायनों से बना लिया जाता है।
दिल्ली स्थित सेण्टर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेण्ट (सीएसई) ने
हाल ही में मिलावट का एक खतरनाक जाल खोला। शहद में चीनी की चाशनी मिलाने का बड़ा
गोरख धंधा इस प्रतिष्ठित संस्था के अध्ययन और सर्वेक्षण में सामने आया। चौंकाने
वाली खबर यह है कि बड़ी नामी कम्पनियां भी मिलावट के इस नापाक खेल में शामिल हैं।
जो शहद अनेक बीमारियों से लड़ने और शरीर को प्राकृतिक ऊर्जा देने के लिए जाना जाता
है, उसे बीमार बनाने वाला बना दिया!। सीएसई इससे पहले नामी शीतल पेयों में
कीटनाशक की मौजूदगी की रिपोर्ट जारी कर चुका है। ये कीटनाशक उस पानी में मौजूद
होते हैं जिससे पेय बनाए जाते हैं। अर्थात, हमारे पेयजल में
ही कीटनाशक घुल गए हैं। खेतों में इस कदर रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक छिड़के जाते
हैं।
इस कोरोना काल में जब शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के
लिए खान-पान की शुद्धता पर जोर दिया जा रहा है, ये खबरें और भी डरा रही
हैं। बाजार में खाने की प्रत्येक वस्तु का प्रचार ‘इम्युनिटी
बूस्टर’ के रूप में किया जा रहा है। गिलोय, आंवला, तुलसी, मुलेठी, आदि-आदि के दर्जनों पेय बाजार में आ गए हैं लेकिन उनकी शुद्धता की कोई
गारण्टी नहीं है। लोग खूब खरीद रहे हैं। उन्हें पता नहीं है कि उसमें क्या मिला
है।
जीवन आधुनिक हो गया है। बाजार हावी है। शहरी मकान डिब्बे हो
गए। सगवाड़े गायब हुए और चंद गमले सिर्फ सजावटी रह गए। सिल पर मसाले अब कौन पीसता
होगा? गेहूं धो-सुखाकर चक्की में पिसवाना आफत लगने लगा। फुर्सत रह गई न रुचि। हल्दी,
धनिया, जैसे आम मसाले चूर्ण रूप में बहुतेरी
नामी कम्पनियां बेच रही हैं। उन्हीं के बीच गधे की लीद वाले मसाले भी हैं। हम
अभिशप्त हैं कि उन्हीं का इस्तेमाल करें।
क्या कभी इस जीवन को प्रकृति की ओर लौटा ले जाने की
प्रक्रिया शुरू होगी?
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