Friday, December 11, 2020

फोर लेन हाई वे के चुंगी नाका और फास्टैग


सामान्य पतली सड़क थी तो लखनऊ से सीतापुर पहुंचने में औसत दो घण्टे लग जाते थे। फिर फोर-लेन हाई-वे बन गया। आना-जाना आसान
, सुविधाजनक और कम समय में होने लगा। आराम से गाड़ी चलाने पर भी सीतापुर डेढ़ घण्टे में पहुंचा जा सकता था। उसके बाद बीच सड़क दो जगह चुंगी-नाका बन गए। इन नाकों पर जाम लगने लगा। फोर-लेन हाई-वे के बावजूद दो घण्टे से कम समय में सीतापुर पहुंचना मुश्किल हो गया।

इधर कुछ समय से फास्टैगव्यवस्था शुरू हुई। चुंगी का यह डिजिटल लेन-देन जहां पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, वहां नकद लेन-देन में लगने वाले समय की भी बचत होती है। चुंगी के हिसाब में बेईमानी की सम्भावना भी कम हो जाती है। लेकिन यह सब कहने की बातें हैं। फास्टैग व्यवस्था नकद लेन-देन से अधिक समय लेने लगी है।

किसी भी दिन, किसी भी समय सीतापुर की तरफ निकल जाइए, दोनों टोल प्लाज़ा पर एक-एक, दो-दो किमी तक लम्बा जाम मिलेगा। एक लाइन नकद लेन-देन के लिए रखी गई है बाकी तीन-चार लाइनें फास्टैग वाली हैं। आम तौर पर यही देखा गया है कि नकद चुंगी भुगतान वाली लाइन ज़ल्दी सरकती है, फास्टैग वाली बहुत धीरे-धीरे। नतीजा लम्बी-लम्बी लाइनें और जाम।

फास्टैग चुंगी भुगतान की डिजिटल व्यवस्था है। आप ऑनलाइन फास्टैग लेते हैं, उसे रीचार्ज करते हैं और जब भी किसी टोल-प्लाज़ा से गुजरना होता है, वहां लगे कैमरे आपकी कार के शीशे परे लगे टैग को पढ़कर टोल टैक्स काट लेते हैं। फास्टैग होने का घोषित उद्देश्य यह है कि आपको टोल प्लाज़ा पर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। कैमरा पल-झपक्ते टैग से टैक्स काट लेगा।

व्यवहार में हो यह रहा है कि फास्टैग वाली गाड़ियों को टोल प्लाज़ा पर देर तक रुकना पड़ रहा है। कभी-कभी तो वहां तैनात कर्मचारी आपकी गाड़ी को कुछ आगे-पीछे करने को कहता है ताकि कैमरा फास्टैग को पढ़ सके। उसके बाद भीतर बैठा कर्मचारी अपने कम्प्यूटर पर देखता है कि आपका टैक्स ठीक से कट गया है या नहीं। उसके बाद ही आपको आगे जाने की अनुमति मिलती है। यह व्यवस्था नकद लेन-देन से अधिक समय ले रही है। 

बहुत सारे देशों में फास्टैग व्यवस्था लागू हुए अरसा हो गया। वहां सड़कों के बीच में अब टोल-प्लाज़ा हैं ही नहीं। उनकी जगह सिर्फ कैमरे लगे हैं जो फर्राटा भरती गाड़ियों से टैक्स काट लेते हैं। गाड़ी रोकना तो दूर, चालक को पता भी नहीं चलता कि वह टोल-नाका से गुजरा है। हमने नई टेक्नॉलॉजी अपनाई लेकिन उसके अनुरूप न मानसिकता बना सके, न कार्य-संस्कृति और न ही तंत्र। फास्टैग व्यवस्था हाई-वे यातायात के लिए बड़ा सिर दर्द बन गई है। जनवरी 2021 से नकद टोल की व्यवस्था समाप्त की जाने वाली है। उसके बाद यह सिर दर्द और बढ़ जाने वाला है।

सीतापुर से आगे शाहजहांपुर होकर बरेली जाना और भी कष्टकारी है। इस सड़क को फोर लेन बनाने का काम एक दशक से अधिक समय से चल रहा है। कुछ हिस्सा बन भी चुका है लेकिन दो रेलवे क्रॉसिंग, और कुछ पुलियों पर ओवरब्रिज बनाने का काम इतनी मंथर गति से चल रहा है कि लखनऊ-बरेली पांच घण्टे का रास्ता आठ घण्टे भी ले लेता है। कटरा क्रॉसिंग पर गाड़ियों का जाम कई-कई किमी लम्बा लगता है। डाइवर्जनइतने संकरे और खतरनाक बने हैं कि कोई भी गाड़ी किसी भी समय गड्ढों में फंस सकती है।

फास्टैग और सड़क का चौड़ीकरण हमारे प्रदेश के विकास-ढांचे की कहानी बयां करते हैं।      

(सिटी तमाशा, नभाटा, 12 दिसम्बर, 2020)

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