Saturday, December 05, 2020

लव ज़िहाद के दौर में राष्ट्रीय एकीकरण

राजधानी लखनऊ की पारा कॉलोनी में पुलिस ने एक हिंदू युवती का मुस्लिम युवक से हो रहा विवाह रुकवा दिया। शादी दोनों परिवारों और समुदायों की परस्पर सहमति से हो रही थी। एक हिंदू संगठन की शिकायत पर पुलिस ने यह कदम उठाया। दोनों परिवारों से कहा गया है कि वे विवाह से पहले जिलाधिकारी की अनुमति लेकर आएं।

लव ज़िहादके विरुद्ध अध्यादेश के माध्यम से कानून बनाने (अध्यादेश में लव ज़िहादका नहीं, धर्म परिवर्तन कराने के उद्देश्य से की गई शादी का उल्लेख है लेकिन मंतव्य छुपा नहीं है) के बाद की यह नई स्थिति है। अलग-अलग धर्मों के दो वयस्क युवा अपनी सहमति से ब्याह नहीं कर सकते। उन्हें प्रशासन की अनुमति लेनी होगी और अनुमति कैसे मिलेगी, मिलेगी या नहीं यह साफ नहीं है।

ऐसे दौर में किसी को शायद यह ध्यान भी न होगा कि प्रदेश में अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह करके राष्ट्रीय एकीककरण को मजबूत करने वाले नव-दम्पतियों को पुरस्कृत करने की व्यवस्था चली आई है। 1976 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने माना था कि दूसरी जाति और दूसरे धर्म में ब्याह करने वाले युगल वास्तव में देश की एकता और जातीय-धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देते हैं। इसके लिए उन्हें प्रोत्साहन के रूप में  10 हजार रु का पुरस्कार देने का फैसला किया गया था। सन 2013 में यह राशि बढ़ाकर पचास हजार रु कर दी गई थी। पिछले ही वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार ने बजट में इस मद के लिए दस लाख रु आवंटित किए थे और राष्ट्रीय एकीकरण विभाग ने अठारह ऐसे नव-दम्पतियों को प्रोत्साहन राशि देने के लिए चुना था।

अब राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने वाले नव-दम्पति प्रोत्साहन राशि के नहीं, नए कानून के प्रावधानों के अन्तर्गत दण्ड और प्रताड़ना के पात्र होंगे। जिन्हें पिछले वर्षों में यह प्रोत्साहन राशि मिली होगी, वे भी कानून के दायरे में आ सकते हैं। अध्यादेश पारित होने के बाद से अंतरधार्मिक विवाह कर चुके कम से कम तीन दम्पतियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हो चुकी है।

समय बदल गया है। सत्ता की राजनीति पूरी तरह पलट चुकी है। जो कभी राष्ट्रीय एकीकरण कहलाता था, अब धर्म के विरुद्ध साजिश है, लव-ज़िहाद है, गैर-कानूनी है। कानून बाद में अपना काम करेगा,  धर्म रक्षक पहले से मोर्चा सम्भाले हुए हैं।

पिछले दिनों एक कम्पनी के विज्ञापन में राष्ट्रीय एकीकरण हो रहा था। एक हिंदू कन्या का मुस्लिम परिवार में बहू के रूप में आत्मीय स्वागत हो रहा था। नए जमाने में वह लव-ज़िहादनिकला। कम्पनी को न केवल विज्ञापन वापस लेना पड़ा बल्कि इस अपराध के लिए क्षमा भी मांगनी पड़ी। यह नए वक्त और नई राजनीति का संदेश है।

सैकड़ों साल के इतिहास में धर्मों के बीच की कट्टर दीवारें ढहीं, विभिन्न धर्मों ने परस्पर मिल-जुलकर  साझा समाज और संस्कृति बनाई, जीवन की जो डगर सहज-स्वाभाविक बनती चली गई, वह सब साजिशें थीं। उसका महिमामण्डन एकांगी था। उसे निरस्त करके नया इतिहास, नया विज्ञान, नए कानून लिखे जा रहे हैं।

कॉलेज के दिनों से प्यार करने वाले एक युगल ने विवाह करने का फैसला किया था। शुरुआती आपत्तियों के बाद दोनों परिवार राजी हो गए थे लेकिन नया दौर सिर पर आफत बनकर खड़ा हो गया। दोनों परिवारों ने मिलकर लड़के-लड़की को खूब समझाया। बताया कि तुम मुसलमान और वह हिंदू है। लव-ज़िहादके नाम पर हो रहे बवाल और हिंसा के उदाहरण और खतरे गिनाए। दोनों खूब रोए-धोए और अलग हो गए। यह मेरे मुहल्ले का किस्सा है और मैं जानता हूं कि अकेला नहीं होगा।

मैं यह भी जानता हूं कि कैसा भी कानून क्यों न बने, कई मुहब्बतें ज़ुदा होने से इनकार कर देंगी।

(सिटी तमाशा, नभाटा, 05 दिसम्बर, 2020)             

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