Saturday, February 27, 2021

मानसिक मंदित बच्चों के स्नेही अभिभावक सुरेश पंत नहीं रहे

 

गुरुवार, 25 फरवरी, 2021 को सुरेश चंद्र पंत के निधन के साथ मानसिक मंदित बच्चों को सम्मानजनक और आत्मनिर्भर जीवन जीने की राह दिखाने वाला एक समर्पित इनसान इस दुनिया से उठ गया। 91 वर्षीय श्री पंत पिछले कुछ समय से अस्वस्थता के कारण मुम्बई में अपने बड़े बेटे के पास रह रहे थे। देह दान के उनके संकल्प के अनुसार उनकी पार्थिव देह मुम्बई के एक अस्पताल को दे दी गई। कुछ वर्ष पहले उनके छोटे बेटे मुकेश का निधन हुआ तो उसकी देह भी लखनऊ मेडिकल कॉलेज को दान दी गई थी।

 मुकेश मानसिक मंदित बालक था। पंत दम्पति उसे बेहतर जीवन जीने लायक और यथासम्भव आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। वे देखते थे कि ऐसे बच्चों के माता-पिता अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं और हताशा में अपने बच्चों को मार-पीट व डांट-डपट से ठीक करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने ऐसे बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए प्रशिक्षण केंद्र या स्कूल खोलने का सपना देखा। कुछ अन्य मानसिक मंदित बच्चों के अभिभावकों के साथ मिलकर एसोसिएशन का गठन किया जिसका नाम है- यू पी पेरेण्ट्स एसोसिएशन फॉर द वेलफेयर ऑफ मेण्टली हैण्डीकैप्ड सिटीजेंस

 1989 में नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक पद से रिटायर होने के बाद सुरेश पंत जी ने अपनी जीवन संगिनी मोहिनी पंत के साथ लगकर 'आशा ज्योति' स्कूल शुरू किया। शुरू में सिर्फ चार बच्चे थे। इस दम्पति की लगन और समर्पण से वह शीघ्र ही मानसिक मंदित बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए एक नई रोशनी बनने लगा।

 आशा ज्योतिमें  न केवल मानसिक मंदित बच्चों को आत्म निर्भर बनाने बेहतर जीवन जीने का प्रशिक्षण दिया जाता है, बल्कि उनके अभिभावकों को प्रशिक्षित करने में और भी अधिक ध्यान दिया गया। मुख्य बात यह है कि अधिकतर अभिभावक समझ ही नहीं पाते कि ऐसे बच्चों से कैसा व्यवहार करें, उन्हें कैसे पालें। हैरान-परेशान और अपनी किस्मत को कोसते अभिभावक ऐसे बच्चों का ही नहीं अपना जीवन भी नारकीय बना लेते हैं। पंत जी ने मानसिक मंदित बच्चों के लालन-पालन शिक्षण के लिए डॉक्टरों, मनोचिकित्सकों और विशेषज्ञों की सलाह से मानवीय और वैज्ञानिक तरीका अपनाया। इस तरह ये अपना काम स्वयं करने लगे, समझदार बने और परिवार में मिल-जुल कर शांति से रहने लगे। इस पहल ने मानसिक मंदित बच्चों और अभिभावकों को नई राह मिली। उनका जीवन सहज होना शुरू हुआ।

 बच्चे बढ़े तो पंत दम्पति ने स्कूल के लिए किराए का एक मकान लिया लेकिन पड़ोसियों ने 'पागलों का स्कूल' खोलने पर आपत्ति करनी शुरू कर दी। दुखी होकर पंत जी ने अलीगंज, लखनऊ का अपना मकान बेच दिया और आवास-विकास परिषद से इंदिरा नगर में एक भूखण्ड खरीद लिया। उसमें कुछ कमरे बनवाए। इस तरह 'आशा ज्योति' इंदिरा नगर, सेक्टर-सी में शुरू हुआ और क्रमश: बढ़ता गया। सन 2006 में दिल के दौरे से मोहिनी पंत का निधन हो गया। अभिभावकों की एसोसिएशन के कुछ संवेदनशील सदस्यों के साथ पंत जी 'आशा ज्योति' को चलाते-बढ़ाते रहे। चंदा और दान के लिए दौड़ते रहे। धीरे-धीरे मानसिक मंदित बच्चों को छोटे-छोटे व्यावसायिक कामों और खेलों का प्रशिक्षण देना भी शुरू किया गया। उम्र से बड़े लेकिन मानसिक रूप से नन्हे बच्चे अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में हिस्स्सा लेने लगे। वहां से पदक जीतकर लाते तो उनकी खुशी देखते बनती। दीपावली और अन्य पर्व-त्योहारों पर उनकी बनाई अनगढ़ मोमबत्तियां, दीये, खिलौने, आदि बिकते तो उनका मेहनताना बच्चों में बांटा जाता। अपनी कमाई के चंद रुपए बंद मुट्टठी में घर ले जाते बच्चों का आत्मविश्वास देखकर जी जुड़ा जाता।

पंत जी में अपार धैर्य था। वे कभी विचलित नहीं हुए। आशा ज्योतिकी राह में आई कई अड़चनों, बच्चों एवं अभिभावकों की विविध परेशानियों और धीरे-धीरे बढ़ गए स्टाफ और प्रशासनिक ज़िम्मेदारियों को वे अत्यंत शांति, समझ और संयम से निपटाते रहे। आशा ज्योतिकी ख्याति और सफलता के पीछे उनका यही समर्पण है। पंत दम्पति आज दुनिया में नहीं हैं लेकिन 'आशा ज्योति' बहुत सारे परिवारों और जीवन की दौड़ में पीछे छूट गए बच्चों के लिए सचमुच आशा का बड़ा केंद्र बना खड़ा है।

 'आशा ज्योति' की ज्योति जलती और राह दिखाती रहे, यह ज़िम्मेदारी अब असोसिएशन की है।

 

1 comment:

richaims17@gmail.com said...

Great work by pantji some dedicated person is required to carry on thiss institutions