नवीन जोशी
किलै रे शेरू, आज नि खानै र्वट? खै ले यार, खै ले। कि चितूणौछै बास जसि, यां को ऊनेर भै? उ ले यो रात में? … अरे, बघैन त नि ऊणै? होय यार, चितूण त मी ले रयूं। बाघै हुनेल। आब
त्वे तैं गिदि रौछ। और के छ यां वीक खाणै तें! चुप रौ, त भौं-भौं नि लगा। त्यार भौं-भौंलि
डरौंछ उ? चणी रौ। मी छोड़ुल एक टुक्याव...हो-हो-हो-होssss… आब भाजि जाल।
अब खा। और सुण, तु बचि बेर रये हां! तुकें ले टिपि ली
गयो त? कभतै न्हें जांछै बानरना पिछाड़ि, कभतै सुंगर भजूण... बड़ै ठारि राखंछै
आपूं कें! जब पड़छै बाघा हात। त्यर बाब, तेरि महतारि, त्यार भै-बैणी कां गई, के खबर छ? सब यो बाघा पेट में गईं। टप्प टिपि ल्ही गो, एक-एक कै बेर। पत्त ले चलनेर नी भै। नंतरी
और कां जानेर भै उं?
त्यर बाब, शिबौ हड़्यूड़, भौतै मोहिल छि। सफेद आड्. में काव-काव
बुट, जाणी कैले बराबर छापी हो। कां
बटि ला हुनेल नाकाक मलि में उ पिठ्यां जस लम्ब काव टिक! कस सुंदर फबनेर भै! तुमि
भै-बैणिन कैं मिलै नै उस बुट। सब महतारि परि गया तुमि। मोहिल यदु भै कि सिद्द काखि
में ऐ बैठनेर भै। पैल गास आपण हाथलि खवूण भै। नंतरी खै दिनेर नि भै। रत्तै ब्याण
मी कें बिजूणै तैं आपण टैण थोव म्यार खुटन लगै दिनेर भै, रजै भितेर मुख हालि बेर। नड़क्याइ साल
कें तो रिसै जानेर भै। फिर मनूण भै।
वीक जाइयांक बड़ दुख लागौ, यार। तु नानू-नान छियै। ब्याव कै खुटकूण
में बैठ रौछी। देई मुड़ि बै बैठि रूनेर भै
म्यार र्वाट पकूण बखत। नज़र सिद्द चुलै तरफ। बात करनेर भयूं मी वी थैं- ‘ओ ठप्पू, र्वट खालै, हां!’ ठप्पू धर्यू भै मील वीक नौं। कभतै उ आंखनलि जवाब दिनेर भै, कभतै पुछ्ड़ि हिलै बेर कूं-कूं करि
दिनेर भै।
त, उ ब्याव ले बैठी भै वी खुटकूण में। मी
ताव में र्वट हालणैछ्यु। मेरि नज़र भे चुलै उज्याणि। न वील कूं-कां करि, न नाकैलि सूं-स्वां। मील देई तरफ चायो
त वां नि भै। पटाड्.ण में जै रौ हुनेल कै सोच मील। र्वट पकै बेर हाथ ध्वीणै तैं
भ्यार गयू त वां ले नि भै।
‘ओ, ठप्पू,’ धात लगै मील। धता-धात करि दे। हुनो तब ऊंन। वीक बानौ र्वट धरियै रौ।
रत्तै ले नी देखीण। पुर गौं में चाय मील। चार दिन बाद मलि जंगव में वीक सुकीं खाल
मिली। कावा-काव बुट उसीकै चमकणाय। तब जाणी मील कि उ ब्याव बाघ टिपि ल्ही गो उकें।
तेरि महतारि, सुबदारिणि! होय यार, सुबादारिणि धरीं भै मील वीक नौं। असलि
सुबदारिणि सुणनी तो भौतै मैक्यूनि। मगर गौं में हुनी त सुणनि। जब बटि सुबदारज्यू
राठ गईं यां बटि, उनारै पटाड्.ण में बैठ रूनेर भै। र्वट खाणै तें ऊनेर भै यां, फिर वैं। जाणी बांजि कुड़ीक पहर करण
हुं कै जै रौ हुन्याल सुबदार ज्यू! रात उनारै गोठ में पड़ि रूनेर भे। वी गोठ में जन्मा
तुमि सब। ललाड्. रंग भै। बाकि आड्. में एक छिट ले नै। जस तु छै। आपणी महतारी पर
गया तुमि सब। बाबूकि एक निशाणी नि मिलि तुमनकें।
ठप्पूक जाइयांक द्वी-तीन म्हैण बादै
बात हुनेलि। तुमि भै-बैणी मणी ठुल-ठुल है गोछिया। पांच तुमि भै-बैणी भया, द्वी तुमार मै-बाब। अठूं मी। र्वाट
पाथन-पाथनै हाथ पटै जानेर भाय, यार। हाथलि जातर पिसण हुनो त को करि सकनछी। चार मील तलि सड़कै दुकान
बटि पिस्यूं बोकि लूण तब ले सितुल भै। दिन में हम लगूनेर भयां गौंक एक फ्यर। सबन
है पैली छुरमल ज्यूक थान में। घंटी सुणि बेर तुम सब ऐ जानेर भया। फिर सबना मोव थें
जाण भै हमिल, कभतै तुम म्यार अघिल, कभतै पछिल। और करण ले कि भै हमिल यां!
एक रत्तै र्वट खाणै तें नी ऐ। मील
धात लगै- ‘ओ सुबदारिणि, र्वट नी खानी आज?’ तब ले नी ऐ। द्यप्तामड़ै घण्टी सुणि बेर तुमि सब ऐ गया, मगर वीक पत्त नी भै। सुबदारज्यूक गोठ
में जै बेर चाय, कें बीमार-हीमार त नि है रै कै। वां ले नी भे। फिर कभै नि देखीणि, यार! बाघ साल् तुमार घातन लागि रूनेर
भै। जब तु यकलै रै गये तब समझ ऐ। तबै त तुकें भीतेर धरि राखूं मी। तुकें अकलै न्हांति। कभतै बानरन हकूंण न्है
जांछै, कभतै सुंगरन। त्यारै चक्कर में गिदि रौ यो बाघ। समझि गोछै?
आ, आब खै ले र्वट। न्है गो बाघ।
।।।।।।
होय, होय, उठणयूं, यार! त टैण थोव हटा म्यार खुटन बटि।
आपण बाबूकि यो आदत खूब मिली तुकें। मालूम छ मी कें उज्याव है गो कै। मगर करण कि है
रौ रत्तै ब्याण उठि बेर। न गोठ में गोर बाछ अलाणईं, न प्वर्स गाड़ण भै, न घा-पात हुं बण जाण भै। बण आब घर तक
ऐ पुजि गो। सो, लकाड़ना इफरात भै। विकास वाल नल ले लगै गई मोव थें। उं त झाड़-पिशाबै
तैं एक कुठ्यर ले बणै जै रईं। शौचालय कूनी बल। रात-अधरात और चौमासै तें भलै भै।
अच्छा-अच्छा, समझि गयूं। तुकै भ्यार जाण हुनेल। हिट, द्वार खोलि द्यूल, मगर दूर झन जाए, हां! ... आहा! कतु भल घाम ऐ रौ पार
हिमाल में। जाणी, सुन ढोली रौ हुनेल। पैलिया जमान हुनो त गौं में हकाहाक पड़ी हुन। कें
सासु-ब्वारी कज्जी लागी हुन, क्वे आपण हली कें धात लगूण हुन कि कां मरि गो छै रे! क्वे आपण मांड्.
में पैठी पाल गौंक घस्यारिन भजूण दौड़ लगून और छुरमल ज्यूक मंदिर में घंटी बाजन टन्-टन-टन्
...।
अरे, भलि फाम ऐ, यार! आज छुरमल ज्यूक थान लिपण छ। कतु
दिन है गईं। एकादशि-पुन्यूं त आब याद नि रूनि। जै दिन करि सक। देवताक थान भै।
लिपाई-घसाई करि दी, द्यू जगै दी। ऐपण-सैपण म्यार कयां कि हुनी। कि राय छ तेरि? हिट, यो भुंकर और चंवर देखि बेरै तु समझि
गो हुनेलै। तबै लागि रौछै अघिल-अघिल। छुरमल ज्यू भै हमार गौंक द्याप्त। उनरि
सेवा-टहल करण चैं। जतु ले है सकि।
जय हो, छुरमल ज्यू! तुमरि जय हो! दैण है रया।
भूल-चूक माफ करिया। देस-परदेस में जो-जां ले छन, रक्षा करिया। यो तुमर नाम’क द्यू जगै हैछ। सब गौं वालनै तरफ बटी।
यो भुंकर बजै द्यूल- टु- ढ्वां-टू-टू-टू...। यो चंवर, यो शंख-घण्ट… एक फौजी छनै छ आजि तुमरि सेवा लिजी।
तुमी भया पालनहार।
देखणाछा छुरमल ज्यू, यो घण्टिन कें? कतु घण्टी छन! टन्-टनन-टनन् ...यो
वालि ठुलि घण्टी अमेरिका वालनलि चढ़ै राखी...टन्न-टन्न-टन्न... यो दिल्ली वाल लाईं...
टन-टन-टन..यो लखनऊ वाल चढ़ै गईं... यो मुरादाबाद वाल लाईं... वां बणनेर भै पितला
घण्टी... और, पार उ जो मलि-मलि बादि राखी, वीकें बम्बई वाल दी गईं। आब त मुम्बई कूनी क्याप। वी तरफ वालि आगरा
वालनैकि छ...। कतु जागनाक नौं पाड़ूं!
चार-पांच या आठ-दस हुना तो बतै ले दिन्यूं... टन-टन-टन-टन.... चारों तरफ
घण्टी-घण्टी छन, नई-पुराणि। कां-कां नि पुज हमार गौं वाव। जतु ठुलि घंटी, उतु ठुल मैंस। घण्टी बतूनेर भै उनरि
बरकत। परदेसै जै बेर हुनेर भै पहाड़िनै बरकरत। पै, तुमन कें भुलि जै कि गईं। आपण द्याप्त
कें को भुलि सकौं! आब कभतै भूल-चूक है गई त हारी-बीमारी में फाम आई जानेर भै तुमरि।
तब तुमर नामक उचैण धरनेरै भै। मौक मिलण पर पुज-पाठ करि घण्टी चढ़ै जानेर भै।
शेरुआ रे, सुणणौछै तु ले? छुरमल ज्यू थै आशीष मांगण भै कि
ईश्वरौ भगवान, देस-परदेस में सबनकि कुशल करिया, भल करिया। द्वी-चार साल में मौक मिलण
पर एक बार ऊंनै छन बिचार। और, जो लाचारी में नि ऐ सकन तुमार थान जाणै, मोटर सड़क बटी चार मीलौ उकाव सितुल जै
कि भै, उं ले कैका हाथ भेजि दिनी तुमरि भेट-दक्षिण। सड़क जाणै मोटर-कार ऐ
जानेर भै। वैं बटी जोणि जानी हाथ कि प्रभू भूल-चूकै माफी दिया, तुमार थाण जाणे नि ऐ सकना, शरीरै लाचारी छ। यो भेट, यो पोखव स्वीकार करिया। परदेस में हमर
जतन करिया।
होय रे, शेरू, द्याप्त यां बैठीं-बैठीं सबनकि सुणनेर
भै। उ जै कि जानेर भै कें। यें थापीं भै उनन कें हमार पुरुखनलि। यें भै उनर वास।
मैसनै चारि द्याप्त जै कि जानेर भै परदेस!
हाय, किलै भुकणौछै मलि कै चै बेर? क्वे नि ऊंन यां। अच्छा-अच्छा, उ धुंड्.-माट देखणौछै? सड़क बणनै, यार! बतै तो हाछी तुकें। पहाड-काटणई मजूर।
डायनामाइट लगै बेर फोणनई पहाड़। सरकार बणूनै त सड़क। त्यार भौं-भौं करियलि बंद नि हो
यो काम। चणी रौ। ठीकै भै, सड़क बणि जाली त हमार गौं ऊंण जरा आसान है जाल। यो सड़कनलि मैसन कें
भ्यार ल्हिजाणक काम खूब करौ। कि पत्त आब यो सड़कलि क्वे वापस फरकंछ। एक ले बंद
कुड़िक द्वार खुलि सका त एक गास त्यर ले बढ़ि जाल। कस भै? छुरमल ज्यू हो, म्यार शेररुवाक एक गास बढ़ै दिया, हां!
हिट, आब गौंक फ्यर लगूनूं। आज कै तरफ जाण छ? बेली त मायाराम ज्यूक यां गयां। उनर
पटाड्.ण साफ करौ। कस बांज पड़ि रौछी। मायाराम ज्यू कें साफ-सफै भौत पसन्द भै।
पाथरन कें ले चमकै राखंछी। आब म्यार कया उस कां है सकौं...। कां लागि रौछै वी तरफ? अच्छा, नारायण कका यां जानू कुणौछै? हिट पै, हिट। आज नारायण कका’क पाख देखि ऊंनू। पाथर रड़ि गो हुन्याल।
पोरी बेर चौमास में पाख च्वीणौछी। मकान कें देखभाल चैंछ। पाख च्वीण बैठो त पाणि
दार पैठ जांछ। पाणि भै दार’क दुश्मण। हिट, आज उनार पाथर पजोरि दिनूं। ठीक फाम करी त्वील, शेरुआ! पाख ठीक रौलो त दार बचि रौल, कुड़ि बचि रौलि। कुड़ि बचि रौली त
मैंसकि फरकणैकि आस् बचि रौलि।
ओहो, शेरुआ, यां तो कतुकै पाथर गजबजी रईं, रे! रड़ि रईं अपणि ठौर बटी। टुटि ले
रईं क्वे-क्वे। तबै पाख च्वीण रौ। टुटी पाथर बदलि द्यूं। धुरि में तबै धरि राखनी
थ्वाड़ पाथर। आब यो कसिक पत्त लागल कि पाणि कां बटि पैठणौ भितेर? शेरूआ, तु यतु कामक ले नी भये कि भितेर बटी
एक जांठलि ठक-ठक करि दिनै जां पाणि च्वीणाक दाग पड़ी हुन्याल। मी मलि बटि समझि
जान्यूं कि वां पाथर रड़ि रईं कै। आब यसीकै देखण पड़ल। यो पाख बचूंण होल शेरुआ। आपण
गौंकि, आपण बिरादरकि कुड़ि भे।
नारायण’का ले जोरदार मैंस छी, यार। तु कि जाणनेर भये। भौत पुराणि, म्यार नानछनाकि बात भे। यो कुड़ी दारा
तें उनूलि बिशन सिंह’क टुणी बोट काटि दे। औरी झगड़ मचि गे। तमाश है गे। फिर पंचैत बैठी।
पंचना कौण पर नारायण’कालि बोटाक डबल और जुर्मान भरि दे। बाद में पत्त चलौ कि नारायण’का कें टुणी कै दार चैंछी। बिशन सिंह
आपण बोट दिणै तें राजी नी छी। तब नारायण’कालि एक दिन, जब बिशन सिंह कें जै रौछी, वीक टुणी बोट गिनै दे। टुणी दारा लिजि यस प्रपंच रच नारायण’कालि। टुणी लाकड़ हुनेर भै भौते मजबूत।
सौ-सौ साल के हुनेर नी भै येकें। देख ले, आज जाणै उस्सै छ यो दार। एक्कै पाणी नि पैठण चैन। तबै बीच-बीच में
पाथर पजोरन जरूरी भै। जरूरी त शेरू, धुंड्. ले भै। रतै-ब्याव चुल जगाय, धुंड्. लाग, तब मकान सांस ल्हिनेर भै। आब यां को जगाओ
चुल! हफ्त-दस दिन में एक बार सगड़ में आग जलै बेर हमि कि करि सकनूं?
अच्छा, त्यार तास मौज है रईं रे शेरू! मेहला
सेव बैठ रौछै ठाठलि। मी यां पाख में घाम में भुटी गयूं। बैठ रौ, बैठ रौ, शेरू। मी ले ऐ गयूं तैं। त्यार दगाड़
सेव बैठ बेर एक बीड़ि खै ल्हिनूं। कस होल? बीड़ि ले सगीण रै क्याप! भोल जूंल बजार। राशनै दुकान में ग्यूं-चावो ले
ऐ गो हुन्याल। गुड़-तेल ले लूणै भै...। तसी के चाणौछै मीकें? बजारै कौ त र्वाट–भात खाण रौछै तु।
यो बांज गाड़न में के होल कै है रौछै!
हिट आब, दोफरि है गे। द्वि दिन बै र्वाटै खाण
रयां। आज भात पकूनुं। छां हुनी त झोइ पकाईन। झोइ-भात खाईं ले एक जमान है गो।
झोइ-भात सुणि बेर ततु लम्ब जिबड़ नै गाड़। यो बांज गोठन बै दूद-दै-छां आल कै ठारि
ल्हि रौछै? भट ला रैछ्यु पछिल म्हैण लछम सिंहै दुकान बै, जब पिनशन ल्हिण हुं गेछ्युं। वीक
बणूंनु चुड़काणि। कें गनरैण धरीं हुनेली छौंक लगै द्यूंल्। यस बखत आय रे शेरू, भट-मडु ले मोल ल्ही खाण रयां! के कईं
जां...। बाड़ में उगला पात है राछी, टपकी बड़ै द्यूंल्। ब्वै त पिनालु ले राखछी, बैगण ले राखछी, पै बानर-सुंगरना ख्वार आग लागि रौछ। के
रूणै नि दिन। कां बै आ हुन्याल सुंगर? नानछना हमुलि इनर नामै सुणी नि भै। मैस भाजि गया त सुंगर-बाघ-भालुना
कै राज हुण भै।
[] [] []
ओ हो, शेरू! यो कि भौ रे? कभत ढईणौ यो शोबदा’क कुड़! शिबौ! बेली ब्याव जाणै त ठीकै
देखीणौछी... च्च-च्च-च्च। रात में ढईणौ शैत। त्वील ले के भौ-भां नि करि। नि चिताये? खन्यारि है गे रे, शोबदा तुमरि ले कुड़ि। साल भरि में यो
अठूं खन्यार छ। हिसाब लगै राखौ मील। शेरुवा, आब दुकान नि जईन आज। मन उदासी गो बज्यूण।
इनार गोल्ल ज्यू ले च्यापी गई क्याप! चानू धैं, कि पत्त हाथ ऐ गया जब! जाग-जाग, तु कां जाणौछै वां? यथ कै औ। क्वे ढुंग फरकलो वैं
क्वांक्कि है जालि तेरि। ये बाट औ, यां देखीणौ भितेर जाणौ बाट्। मील पैलिए कै हाछी शोबदा च्यालन थें। वी
साल द्याप्त पुजण ऐ रौछी। ठुलकि घरवाइ बीमार रूंछि। नानैकि चेलिक ब्या नि
ठैरीणौछी। तब आईं पूछ करण हूं। मील तबै कै हाछी कि यारो, तीन भै छौ, छुरमल ज्यूकि कृपालि दिल्ली, आगरा में भल कमूणौछा। कभतै यो कुड़ि
सुदारि जावो। पाथर त मिलनेर नि भै आब, पाख में टीन खिति जाओ। दार ठीकै छा आजि तुमर। टीन पड़ि जालो, कुड़ि बचि रौलि। हां-हां, करते हैं-करते हैं, कै गईं। फिरि पलटि बेर नि चाय। आज
न्हैगे यो कुड़ि। आब कि सुदारछा!
शेरुवा, तु त तब छियै नि जब शोबदा कें जाण पड़ौ
यो गौं छोड़ि बेर। यकलै भै बुड़ और बीमार ले रूंछी। यै मरुंल कूनेर भै मगर ठुल च्यल
उठै ल्हि गो आपण दगाड़ दिल्ली। वैं मरौ। शिबौ, जाण बखत कसि डड़ा-डाड़ करि गो। सौ रुपें
नोट थमै गोछी म्यार हाथ में कि आनंद भुला, रोज ब्याव कै गोल ज्यू थान में एक बात
जगै दिए म्यार नामक। परदेसक रूंण भै, द्याप्तै की आस भे। मील पुर द्वी साल बात जगा रे शेरू, उनर नामक। कब जाणे करछ्युं! यां
सबनाकै द्य्याप्त यकलै रै गईं रे!
ओ हो, बुं तरफ बटी पाख में पाणि पैठौ क्याप्।
तबि सड़ौ दार। वां नि जा कूण रयू, सुणनौछै? हिट भ्यार कै, नि देखीणाय इनार गोलज्यू। माफ करि दिया हो गोलज्यू, यो खन्यार में कां च्यापी रौछा कि
पत्त। जां छौ, वें पड़ि रौवो। द्याप्त भया तुमि, मनखीक मजबूरी जाणनेरै भया। शोबदाक
नांतिनन ले माफ करिया। उनर ले कि दोष। दुन्नीक रीतै यसि चलि गे।
कि कूंछै शेरू, जानूं दुकान तक? घाम लागल, पै माठू-माठ ऐ जूल ब्याव जाणै। यां ले
कि करण है रौ हमुलि। हिट।
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पटै बिसै ल्हिनू यार शेरू, झिट घड़ि। बुड़्याकाव भै आब। धार ले यो
विकट छु। पचीसेक किलो सामव ले भये। तु त सिद्द हिट दिणौछै! तेरि जाग बाकर हुनो त
वीक पुठ में धरि दिन्यू मणी बोज्। अरे नै यार, नै, तु रिसाये झन। खालि खेल कार मील।
बाकरक के भरोस्। बाघ कब्बै टपकै हालन वीकें। म्यारा त्वी येर बखतक दगड़ू, म्यर सुख-दुख सुणि दिणी। आ, पार उ बुड़ बांजा सेव बैठ जानूं। कां
बै आ हुनेल सल्यूणि में इकलकट्ठू बांज! ना, पैली यो बांजाणी छि बल। साला बोटनैलि
खै दे पुरि बांजाणि। एक योई बांजौ रूख बचि रौ। हमरी चारि लड़ल यो ले जब जाणे लड़ि
सकल। ले, यो बिस्कुट खा। भल लागने तुकें, तबै मोल लायूं।
दुकानदार लछम सिंह के कुणौछि, सुणी त्वील? कां बै सुणनेर भये तु! सड़क में पुजते
ही लागि जानेर भए उ कवुलिक पिछाड़ि। उ ले त्यर बाट चै रूंछि। तुकैं देखि बेर कसि
पुछड़ हिलानी ऐ जें! पै कां बै सुणनेर भए तु हमरि बात।
कतु बरस है गईं, हर बखत योई कूनेर भै लछम सिंह कि ‘आनंद गुरू, उजाड़, बांज गौं में किलै पड़ि रौछा? क्वे मुख बलाणी ले नि भै।’ म्यर जवाब तु जाणनेरै भये- ‘छ त यो म्यार दगड़ू, शेरू!’ हंसि दिनेर भै लछम सिंह- ‘तुमर जस मनखी नि देख हो आनंद गुरू! बांज गौंक पहर में बैठ रौछा। जाणी
क्वे लौटणी हो! क्वे नि फरकन आब। यतु साल पल्टण में रौछा। कें तलि शहरन में बणै
ल्हिना मकान्। हल्द्वाणी में लगै ल्हिना द्वी कम्र। सबै फौजी तसै करनी। मैंस गौं
छाड़ि-छाड़ि बेर तली हुं जाणईं और तुमि इकलै बैठ रौछा उ उजाड़ गौं में। ब्या तुमील कर
न्हांति, एक भै छि त उ भौत पैली गुजरि गय। नानतिन वीक लखनौ बसि गाय। जब जाणै
द्वि-चार मौ छि गौं में तब जाणे त ठीक छि। मुख बलाण बाट छि। आब किलै बैठ रौछा वां? पगालना चारि बांज कुड़िन में धुंड्. लगूंछा, कैका पाखा पाथर पंजोरि दिंछा। तसी कै
बचंछौ गौं? क्या, तुमि ले...! यें ऐ जाओ धैं सड़का तिर, मनखीक मूख तो देखला।’
मगर शेरू, आज लछम सिंहलि दुहरी बात कै दे। कूण
बैठो- ‘आनंद गुरू, तुमार गौं बार में एक खबर सुणी। सुणी कि, अखबार में छपि रै छी, त सही हुनेलि। तुमर जो गौं छ
मल्लासेरा, अब खालि है गय। नै-नै, तुमि भया मगर एक तुमरि कि गणती भे! मल्लासेराकि जमीन सरकार एक कम्पनी
कें दिणै बल। क्वे भ्यारकि पराभेट कम्पनी छ बल, यां इस्कूल खोललि। सुंदर जाग भे
तुमार यां। सामणि हिमालय देखीनेर भै। इस्कूल होल, हॉस्टल होल, स्टेडियम ले होल बल...। देस-बिदेसाक
अमीरना नानतिन पढ़ाल। क्याप-क्याप लेखि राखछी अखबार में। तुमार यां जाणै सड़क ले तबै
बणणै बल।’
के कूंछै शेरू, हमार गौं में इस्कूल बणौल तो भलै भै
क्याप? नानतिन आल, खूब कलाट कराल। गौंकि उदासि मिटि जालि। नि भयो? त ट्यढ़ मूख किलै करणौछै? तुकैं भलि नि लागी यो खबर? आजि खांछै बिस्कुट? खा यार, त्यार लिजि त लायूं। हिट आब, न्है जानू। चहा अमल ले है गो।
[] [] []
कि भौ शेरू, यो अधराति में किलै उठछै? कि भौ?... ओ हो, फिरि बघैन...। यो बाघ त्यार पछिलै पड़ि
गो यार। रोज रात में लगूणौ फ्यार्। पड़ि रौ चुपचाप। द्वार पट्ट बंद छन। पड़ि जा।
मी कें कि सोच पड़ि रईं, बतू तुकें? लछम सिंहै बात रिटि रै मन में। दिन
में त मील त्वीथें कै दे कि गौं में
इस्कूल खोलल त भलि भै कै। फिर ब्याव बटी बड़ि खुद-बुद लागि गे मन में। सरकार हमरि
जमीन पराभेट कम्पनी के दी देली त हमर गौं कां रै जाल? जमीन जै न्है गई त कि बचल? यो गाड़-भिड़-इजर भै तबै हमर गौं ले भै, बांजै सही। नि भयो? पराभेट कम्पनी खै जालि गौं कें। के नि
बचौ। यो सोच पड़ी बै बड़ी फिकर है गे। ये में के भलि बात नि भे यार। आफत भे यो, भारि आफत। तबै नीन भाजि गे।
आज जांलै मी कें यो फिकर है रैछी कि यो
बाघ तुकें खै जालो त कि होल। आब और ले ठुल बाघ ऐ जाल। हम सबन कें, हमर गौं कें खाणी बाघ। किलै दिणै
हुनेलि सरकार यो जमीन पराभेट कम्पनी कें? त कसि सरकार हुनेलि रे शेरू, जो हमनै कें खाण रै? त सराकर ले एक बाघ है गे। पराभेट कम्पनी ले बाघै भे।
बाघै-बाघ है गईं रे शेरू, चारों तरफ़। पैली एक विकासक बाघ आ। उ
शहरन में रूं बल। विकासौ बाघ गौनन खै गो, कुड़िन बांजि करि गो। जस ले छि पै, गौं छि। जमीन बची छि। कभै त क्वे
फरकन। आब दुसार बाघ ऊण रईं। उ हमार गौं कें नेइ जाल। हमरि जड़ै उपाड़ि जाल। यस
अन्यो!
डर लागणै तुकें? नै-नै डर नै यार! के होल डरि बेर?
भोलै जानूं लछम सिंहा यां। उ जो छ नै
तेरि कउलि, सड़क में...। हा-हा, नाम सुणि बेरै त्यार आंखन में कसि चमक ऐ गे! लछम सिंह थें मांगि लूनूं
उ कउलि कें। वी दगड़ि करुंल त्यर ब्या। कस भै? आठ-दस प्वाथ ले पैलि फ्यार में है गया, त गौं में है जालि रौनक। क्वे यां बै
करल कूं-कूं, क्वे वां बै करल भौं-भौं...। हकाहाक है जाल गौं में।
एक टुक्याव तो मारणी भे पै!
...
(पहरू, दिसम्बर, 2020 अंक में प्रकाशित)
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