Tuesday, October 31, 2023

पृथ्वी पर 15 वर्ष लम्बी वह ठंडी काली रात!

 

हमारी पृथ्वी से डायनासोर समेत कई जीव एवं वनस्पति प्रजातियों के लुप्त होने का कारण नए शोध और अध्ययन से अब और भी स्पष्ट हुआ है। इसके अनुसार करीब छह करोड़ साठ लाख वर्ष पहले एक विशाल उल्कापिण्ड पृथ्वी से टकराया था। यह टक्कर इतनी भयानक थी कि धूल के घने बादलों ने पृथ्वी को पूरी तरह ढक लिया था। धूल की यह गाढ़ी परत पृथ्वी के ऊपर करीब पंद्रह वर्ष तक बनी रही। इस परत को सूर्य की किरणें नहीं भेद सकीं। धरती पर अंधेरा छा गया और लगातार गिरते तापमान के कारण सुदीर्घ शीतकाल छाया रहा। शुरुआती 620 दिन तो धुप्प अंधेरा और भीषण शीत रहा।धूप न मिलने से पेड़-पौधों के लिए आवश्यक फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया नहीं हो सकी और वे मरते गए। फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया में वनस्पतियां धूप की सहायता से पानी और कार्बन डाइऑक्साइड को तोड़कर अपना भोजन बनाती हैं। यह प्रक्रिया दो वर्ष तक तो पूरी तरह ठप हो गई थी। इस प्रकार एक विनाशलीला शुरू हुई जिसमें पृथ्वी पर उस समय उपलब्ध 75 फीसदी जीव एवं वनस्पति प्रजातियां विलुप्त होने लगीं थीं। इन्हीं में डायनासोर जैसे विशालकाय प्राणी भी थे जो पूरी तरह विलुप्त हो गए। इस विनाशलीला में जहां कई प्रजातियां सदा के लिए विलुप्त हो गईं, वहीं पृथ्वी पर स्तनपायी जीवों का विकास भी प्रारम्भ हुआ था। 

यह नया शोध-अध्ययन बेल्जियम की रॉयल ऑब्जर्वेटरी में किया गया। इसके प्रमुख अध्ययनकर्ता विज्ञानी सेम बर्क सेनेल हैं। ब्रिटेन, अमेरिका और नीदरलैण्ड्स के विज्ञानी भी इस अध्ययन में शामिल थे। उनके अध्ययन के निष्कर्ष बीते सोमवार को प्रतिष्ठित एवं विश्वसनीय विज्ञान पत्रिका 'नेचर जियोसाइंस' में प्रकाशित हुए हैं।

विज्ञानी करीब चालीस साल पहले से इस सम्भावना पर शोध कर रहे थे कि किसी विशाल उल्कापिण्ड के पृथ्वी से टकराव से जो पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हुआ उसी के कारण डायनासोर और अन्य प्रजातियां समाप्त हुई होंगी। अब इसकी पुष्टि हो गई है। यह भी स्पष्ट हुआ है कि पृथ्वी पर आया शीतकाल या हिमयुग कितना लम्बा चला था। 

पहले के अध्ययन यह पता लगा चुके थे कि एक विशाल उल्कापिण्ड पृथ्वी के साथ मैक्सिको के युकेंटन प्रायद्वीप के पास टकराया था। एक विशाल गड्ढा बना जो चिक्सुलुब कहलाता है और वर्तमान में उस प्रायद्वीप के नीचे कहीं दफ्न है। डॉ सेनेल ने बताया कि टक्कर के बाद धूल का जो घना बादल पृथ्वी पर छाया रहा उसमें सिलिका, कार्बन और सल्फर बड़ी मात्रा में थे। ये कण अत्यंत महीन थे, करीब एक माइक्रोमीटर आकार के। इसे ऐसे समझें- मनुष्य के सिर के एक बाल की मोटाई 20 से 200 माइक्रोमीटर तक होती है। इतनी बारीक धूल की घनी पर्त बरसों बरस पृथ्वी पर छाई रही थी। टक्कर के बाद के शुरुआती आठ वर्ष अत्यंत कठिन थे।औसत वैश्विक तापमान में 25 डिग्री सेंटीग्रेड की गिरावट आ गई थी। उस समय धरती पर तापमान शून्य से तीन से सात डिग्री नीचे रहा था। सिलिकेट मिश्रित धूल की घनी पर्त के नीचे फोटोसिंथेसिस बिल्कुल नहीं हो पाती। इस घातक धूल से पूरी तरह उबरने में अनेक वर्ष लगे। टक्कर से पहले का तापमान पाने में तो पृथ्वी को करीब बीस वर्ष लगे। 

(The Telegraph, 01/11/2023 में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित। चित्र नेट से।)


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