Thursday, February 29, 2024

बच्चों और किशोरों में मोटापा महामारी बन गया है

 

भारत के बच्चे और युवा 'मोटापे की महामारी' की चपेट में आ गए हैं। विज्ञान और स्वास्थ केंद्रित प्रसिद्ध शोध पत्रिका 'द लांसेट' के ताज़ा वैश्विक अध्यय्न में यह चिंताजनक तथ्य सामने आया है। इस रिपोर्ट  के अनुसार भारत के पांच वर्ष से 19 वर्ष तक के एक करोड़ पच्चीस लाख बच्चे, जिनमें 73 लाख लड़के और 52 लाख लड़कियां हैं,अत्यधिक मोटापे के शिकार हैं। उनका वजन बहुत अधिक पाया गया है। सन 1990 के अध्ययन की तुलना में ये आंकड़े बहुत अधिक हैं।

मोटापा बच्चों ही नहीं , बड़ों के लिए भी चिंता का कारण बन गया है। महिलाओं में मोटापा होने की दर 9.8 प्रतिशत पाई गई है, जबकि 1990 में यह 8.6 प्रतिशत थी। पुरुषों में यही दर 5.4 प्रतिशत है जो कि 1990 में 4.9 प्रतिशत थी। 

मोटापे की बीमारी जो 1990 तक वयस्कों में पाई जाती थी, अब स्कूली बच्चों में तेजी से फैल गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मोटापा शरीर में अत्यधिक या असामान्य वसा का जमा हो जाना है। यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। 25 से अधिक 'बॉडी मास इंडेक्स' (बीएमआई) को सामान्य से अधिक वजन माना जाता है और यही 30 से अधिक होने पर मोटापा कहलाने लगता है। 20 से कम है तो उसे कुपोषित माना जाएगा।

बीएमआई महत्वपूर्ण सूचक है। इसे नापने का तरीका आसान है। अपने वजन (किलोग्राम में) को अपनी ऊंचाई (मीटर में) के वर्ग से भाग दें। जैसे- अगर किसी का वजन 90 किलोग्राम है और ऊंचाई पांच फुट आठ इंच है, तो बीएमआई नापने के लिए ऊंचाई को मीटर में बदल दें। इस व्यक्ति की ऊंचाई होगी 1.73 मीटर। अब 90 को 1.73 के वर्ग (यानी 1.73x1.73) से भाग दे दें। उसका बीएमआई 3.1 आया । यह व्यक्ति ज़्यादा वजन की सीमा पार कर मोटापे की बीमारी की ओर बढ़ गया है। 

'द लांसेट' के अध्ययन में पाया गया है कि भारत की 20 वर्ष से ऊपर की चार करोड़ 40 लाख महिलाओं का वजन ज़्यादा है। पुरुषों में यह आंकड़ा दो करोड़ 60 लाख है। 1990 में 24 लाख महिलाएं और 11 लाख पुरुषों का वजन ज़्यादा था। यानी समस्या बढ़ती जा रही है।

ये आंकड़े इसलिए भी अधिक चिंताजनक हैं क्योंकि भारत में हृदय रोग, दिल व मस्तिष्क के दौरे, और मधुमेह जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। मोटापा इन सब बीमारियों का बड़ा कारण है। किशोरों में भी मधुमेह पाए जाने के मामले बढ़े हैं। 

इस अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में मोटापे की महामारी फैलने का मुख्य कारण यह है कि जनता के खान-पान की आदतें बदल गई हैं और शारीरिक श्रम करना कम हो गया है। हमारा परम्परागत भोजन दालें, मोटे अनाज, फल और सब्जियां, आदि रहे हैं। हम लोग पशु उत्पाद, नमक, रिफाइण्ड तेल, चीनी और मैदा वगैरह कम खाते थे। लेकिन अब जनता अधिक कैलोरी वाला और कम पौष्टिक भोजन पसंद करने लगी है। रिफाइण्ड तेल, अधिक वसा वाला भोजन, मांसाहार और डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ अधिक प्रयुक्त होने लगे हैं। हमारा सामाजिक व्यवहार, रहन-सहन और आदतें भी बहुत बदल गए हैं। बच्चों में तो कुछ अधिक ही। इसीलिए बच्चों-किशोरों में मोटापा बढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। 

देश में मोटापे का महामारी का रूप लेना ही नहीं, उपयुक्त पोषण न मिलना यानी कुपोषण भी एक बड़ी समस्या के रूप में इस अध्ययन से सामने आया है। कुपोषण जनता के सभी आयु वर्गों में पाया गया है। कम वजन वाली (कुपोषित) लड़कियों के मामले में हमारा देश दुनिया में शीर्ष पर है। कुपोषित लड़कों की संख्या के हिसाब से दुनिया में हमारा नम्बर दूसरा है। 

मोटापा और कम वजन  दोनों ही कुपोषण के रूप हैं। इस हिसाब से हमारा देश कुपोषण की दोहरी मार झेल रहा है । यहां जरूरत से ज़्यादा खाने और पेट भर न खा पाने वाले लोग बहुत हैं। यह स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती है।

देश में पांच से 19 साल के बीच की तीन करोड़ 50 लाख लड़कियां और चार करोड़ बीस लाख लड़के कुपोषण के शिकार हैं। 1990 में यह आंकड़ा क्रमश: तीन करोड़ 90 लाख और सात करोड़ था। यानी कुछ सुधार हुआ है। 2022 में कम वजन वाली यानी कुपोषित महिलाओं व पुरुषों की संख्या क्रमश: छह करोड़ 10 लाख और पांच करोड़ 80 लाख पाई गई है। ये आंकड़े 1990 में क्रमश: 13.7 प्रतिशत और 12.5 प्रतिशत सुधार पाया गया है। 

भारत में लगातार छिट-पुट कुछ न कुछ खाते रहने, डायटिंग करने, होटलों-ढाबों में खाने और पार्टियां करने का चलन बहुत बढ़ गया है। मीठा खाना मोटापा बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इसी के साथ सोडा, मीठी कॉफी, कोला पेय, जूस, चाय का भी योगदान है। 

विशेषज्ञ बताते हैं कि स्वस्थ और चुस्त रहने के लिए दिन भर में कम से कम 60 मिनट की शारीरिक मेहनत अवश्य चाहिए। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों के विज्ञापनों पर लगाम लगनी चाहिए। ये विज्ञापन विशेष रूप से बच्चों को ललचाने के लिए बनाए जाते हैं। स्कूल-कॉलेज की कैंटीन में खाने-पीने की पौष्टिक चीजें मिलनी चाहिए।

लेकिन क्या जिम्मेदार लोग सुन रहे हैं? क्या इस समस्या पर किसी सरकार का ध्यान है? बाजार तो हमें वह सब खाने के लिए ललचा रहा है जो नुकसानदेह है और हमारे बच्चे और युवा उसी की गिरफ्त में हैं।

-न जो, 01 मार्च 2024

( Indian Express, March 01, 2024 में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित, चित्र इंटरनेट से)



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