बीती तीन अक्टूबर की देर शाम एक
मित्र की मां की तबीयत अचानक बिगड़ी. उन्हें पहले एक स्थानीय डॉक्टर के पास
ले गये, फिर उनकी सलाह पर सिविल
अस्पताल, जिसका सरकारी नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल हो
गया है. वहां इमरजेंसी में ईसीजी मशीन नहीं थी. बताया गया कि मंत्री जी के यहां
गयी है. उन मां जी की तबीयत ज्यादा ही गम्भीर थी. उन्हें बचाया नहीं जा सका.
इसी वर्ष मार्च में इलाहाबाद उच्च
न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिये थे कि अस्पतालों में वीआईपी-कल्चर खत्म किया
जाए. न्यायालय ने उस दिन राज्य की चिकित्सा व्यवस्था में बड़े सुधारों के लिए कई निर्देश जारी किये थे. इनमें एक निर्देश यह था कि कोई बड़ा अधिकारी,
मंत्री या दूसरे नेता सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए जाएं तो
ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर उन्हें वैसे ही देखें जैसे वे सामान्य मरीजों को देखते
हैं.
यह महत्त्वपूर्ण निर्देश है. क्या
उसका पालन हो रहा है? हमारा अनुभव कहता है
कि अगर कोई डॉक्टर किसी मंत्री या दूसरे नेता को सामान्य मरीज की तरह देखने की
जुर्रत करेगा तो उसे तत्काल निलम्बन की सजा भुगतनी पड़ेगी. साथ में आयी समर्थकों की
फौज हाथ-पैर तोड़ दे तो कोई आश्चर्य नहीं.
अव्वल तो नेता सरकारी अस्पताल में इलाज
कराने खुद नहीं जाते. वे ही क्यों, उनके
परिवारी जन और करीबी समर्थक भी अस्पताल नहीं जाते. अस्पताल खुद चल कर उनकी सेवा
में उपस्थित होता है. सभी सरकारी अस्पतालों में मंत्रियों और आला अफसरों की मिजाज
पुर्सी के लिए डॉक्टरों की अघोषित ड्यूटी लगती है. अक्सर इमरजेंसी ड्यूटी वाले
डॉक्टरों को यह जिम्मेदारी मिलती है. वे ईसीजी और दूसरी जांच मशीनें लेकर वीआईपी
की सेवा में दौड़ा करते हैं. नेता जी को अस्पताल आने का कष्ट तभी करना पड़ता है जब
एक्स-रे या सीटी स्कैनर जैसी भारी-भरकम मशीनें उनकी सेवा में हाजिर कर पाना मुमकिन
नहीं हो पाता.
लोकतंत्र में जैसी अपेक्षा की जाती
है और जैसा अदालत चाहती है कि कम से कम इलाज के मामले में वीआईपी और आम जनता में
फर्क न किया जाए. ऐसा हो तो क्या कहने. बल्कि नेताओं को कहना चाहिए कि पहले जनता
का ख्याल किया जाए. हमारे लिए तो और भी सुविधाएं हैं. यह सपना देखने जैसा है.
वीआईपी ने अपने लिए अलग से ढेर सारी
सुविधाएं जुटा रखी हैं. फिर भी जनता के लिए उपलब्ध थोड़ी-सी सुविधाओं पर भी उन्होंने
डाका डाल रखा है. गरीब मरीज को अस्पताल में दवा नहीं मिलेगी लेकिन वीआईपी हुजूर के
लिए अस्पताल के कोटे से विटामिन सप्लाई किये जाते हैं. आम मरीज के लिए जरूरत पर
डॉक्टर और जांच सुलभ नहीं.
चिकित्सा व्यवस्था बहुत बुरी हालत
में है, जहां तक गरीब आदमी का
सवाल है. अदालत ने सरकार से छह महीने बाद रिपोर्ट मांगी थी कि निर्देशों के बारे
में क्या कदम उठाये गये. अब जवाब दाखिल करने का समय है. सरकारी तंत्र में बड़े
काबिल लोग बैठे हैं. जवाब बनाने में उन्हें महारत हासिल है. वे कई तरह से साबित कर
सकते हैं कि अस्पतालों में वीआईपी और आम जनता में कोई फर्क नहीं किया जाता.
खस्ताहाल सरकारी स्कूलों की हालत
सुधारने के लिए भी अदालत ने निर्देश दिये थे कि सरकारी खजाने से वेतन-भत्ते लेने
वाले सभी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं. उस निर्देश का जो हश्र हुआ वही
अस्पतालों के बारे में अदालती निर्देश का हाल होगा. वीआईपी जनता की सुविधाएं लूटते
रहेंगे. जनता मामूली इलाज के लिए भी तरसेगी.
सरकार में कोई पार्टी हो,
यह हाल नहीं बदलता.
(city tamasha, NBT, Oct 13, 2018)
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