Friday, October 12, 2018

‘आईसीयू में पड़ी कांग्रेस’ से भाजपा इतना डरती क्यों है?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का कोई भाषण ऐसा नहीं होता है जिसमें वे कांग्रेस पर हमलावर न हों. बहुत तीखे शब्दों में, कई बार अमर्यादित होने की सीमा तक, वे कांग्रेस की निन्दा-आलोचना करते हैं. उनके खास निशाने पर एक परिवारहोता है. नेहरू-गांधी परिवार को वे पानी पी-पी कर कोसते हैं. इस देश की तमाम समस्याओं के लिए वे कांग्रेस और इस एक परिवारको जिम्मेदार ठहराते हैं. कहते हैं कि इस परिवार ने किसानों, मजदूरों, दलितों, पिछड़ों, आदि का कोई भला नहीं किया, बल्कि पूरे देश को लूटा. उनकी बातों से लगता है कि कांग्रेस देश की सबसे बड़ी समस्या है और सबसे बड़ा चुटकुला भी.

सन 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस को अपनी तीखी आलोचना के केंद्र में रखना और उस पर तरह-तरह के आरोप लगाना भाजपा नेताओं के लिए स्वाभाविक ही था. तब कांग्रेस सत्तारूढ़ गठबंधन यूपीए का नेतृत्त्व कर रही थी, उसका मजबूत अखिल भारतीय आधार था, वह स्वतंत्रता आंदोलन से जन्मी, उसकी मुख्य भागीदार और इसीलिए पूरे देश में जानी-पहचानी पार्टी थी. भाजपा उसे चुनौती दे रही थी. कांग्रेस को हराये बिना भाजपा न केंद्र की सत्ता में आ सकती थी और न उत्तर भारत के बाहर अपना विस्तार कर सकती थी. भाजपा ही क्यों, कोई दूसरी पार्टी भी अगर अखिल भारतीय स्वरूप ग्रहण करना चाहती तो उसे सबसे पहले कांग्रेस को चुनौती देनी होती.

इसलिए 2014 के चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी का मुख्य निशाना स्वाभाविक ही कांग्रेस पर था. उन्हें अपनी कर्मठ छवि बनाने के लिए कांग्रेस को निकम्मा बताना ही था. अपने को बदलाव और विकास लाने वाला साबित करने के लिए कांग्रेस को देश की बरबादी के लिए जिम्मेदार ठहराना ही था. यह काम उन्होंने बखूबी किया. कांग्रेस को उन्होंने बुरी तरह हराया. लोक सभा में वह 44 सीटों पर सिकुड़ गयी. उसे सदन में विरोधी दल का दर्जा हासिल करने लायक सीटें भी न मिलीं. ऐसी पराजय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नाम की ऐतिहासिक पार्टी ने कभी देखी न थी.

भारी बहुमत से सत्ता में आ कर प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमले बंद नहीं किये. बल्कि, वे इस देश से कांग्रेस का नाम मिटा देने की बात करने लगे. उन्होंने अपने भ्रष्टाचार-मुक्त भारतके आह्वान की तर्ज पर कांग्रेस-मुक्त भारतका नारा गढ़ा और हर मंच से उसे दोहराया. सोनिया और राहुल पर उनके आरोप और तंज तीखे होते गये. बल्कि, जवाहरलाल नेहरू भी उनके निशाने पर आ गये. सरदार पटेल को महानायक बताने के साथ ही नेहरू को वे खलनायक की तरह पेश करने लगे. नेहरू को भुलाने की कोशिशें की जाने लगीं. यहां तक कि राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद राम नाथ कोविंद के संसद में दिये गये पहले भाषण में नेहरू का नामोल्लेख तक नहीं था, जबकि उनके पहले मंत्रिमण्डल के अधिकसंख्य सदस्यों का उल्लेख गर्व के साथ किया गया. 

नरेंद्र मोदी सरकार अपने कार्यकाल के अन्तिम वर्ष में है. अगले आम चुनाव नजदीक हैं. इस पूरे दौर में मोदी जी कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार पर हमले करना कभी नहीं भूले. भारतीय जनता पार्टी ने इस दौरान कई राज्यों के चुनाव जीते और कांग्रेस को ज्यादातर राज्यों में सत्ता से अपदस्थ किया. कांग्रेस आज सिर्फ तीन राज्यों में सत्ता में है जबकि भारतीय जनता पार्टी की देश के 22 राज्यों में सत्ता में भागीदारी है. कांग्रेस-मुक्त भारतका अर्थ अगर उसे सत्ता से बेदखल करना था तो वह लगभग हो चुका है. कांग्रेस अपने जीवन के सबसे बड़े अस्तित्व-संकट से जूझ रही है, जबकि भाजपा आज अखिल भारतीय पार्टी बन चुकी है, जैसी कभी कांग्रेस हुआ करती थी.

स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि नरेन्द्र मोदी आज भी कांग्रेस ही के पीछे क्यों पड़े हैं? क्यों वे अब भी कांग्रेस को अपने मुख्य निशाने पर रखे हैं? क्यों सोनिया, खासकर राहुल उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाते? कई क्षेत्रीय दल हैं जो अपने-अपने राज्यों में बहुत मजबूत हैं और भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं. इसके बावजूद मोदी जी को कांग्रेस ही अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी क्यों लगती है, जबकि आज वह अत्यंत दयनीय स्थिति में है?

मोदी, शाह और भाजपा-संघ के बड़े नेता ही नहीं, दोनों संगठनों का पूरा प्रचारतंत्र और सोशल मीडिया टीम कांग्रेस तथा नेहरू-गांधी परिवार की सच्ची-झूठी आलोचना करने में रात-दिन लगे रहते हैं. सोशल मीडिया पर तो अनेक मनगढ़न्त किस्सों, फोटोशॉप से बनायी गयी तस्वीरों और चुटकुलों से इस एक परिवार की छवि खराब करने का अभियान हमेशा चलता रहता है.

तो, क्या भाजपा कांग्रेस से आज भी डर रही है? क्यों?  मोदी जी  के इस कांग्रेस-भयका कारण आखिर क्या है?

कांग्रेस की विचारधारा, उसके इतिहास, उसकी अखिल भारतीय व्यापकता एवं स्वीकार्यता तथा नेहरू के भारत-दर्शनऔर उनके विजनमें भाजपा के इस भयके कारण खोजे जा सकते हैं.

स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख पार्टी के रूप में और बाद में महात्मा गांधी की विरासत वाली कांग्रेस आजादी के बाद देश की एकमात्र ऐसी शासक पार्टी बनी जिसकी व्याप्ति प्रारम्भ से ही अखिल भारतीय थी. देश के हर कोने में वह सुपरिचित नाम थी. उसके पास बड़े-बड़े नेताओं की कतार थी और नेतृत्त्व उस नेहरू के हाथ में था जिसे गांधी जी ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था. नेहरू के पास इस विरासत के अलावा एक व्यापक विश्व-दृष्टि थी. इस दृष्टि से उन्होंने  ऐसा विजनविकसित किया जिसने विविध और भिन्न धर्मों-समाजों-संस्कृतियों-पहचानों वाले भारत को एक मजबूत रिश्ते में बांध दिया. भारत के अनेक हिस्से दूसरे अनेक हिस्सों के सही नाम तक उच्चारित नहीं कर सकते थे लेकिन देश का संविधान और कांग्रेस की विचारधारा उन्हें आपस में जोड़े रखती थी. इसीलिए कई मतभेदों के बावजूद राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल जैसे नेहरू के कद के नेता उन्हें अपना नेतास्वीकार करते थे.

कई विचलनों और मूल्यहीनताओं के बावजूद कांग्रेस का यह स्वरूप कायम रहा. उसे समय-समय पर क्षेत्रीय दलों से चुनौतियां और पराजय भी मिलीं लेकिन अखिल भारतीय पार्टी सिर्फ वही बनी रही.

1980 में भारतीय जनसंघ ने भारतीय जनता पार्टी का अवतार तो ले लिया लेकिन अपनी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा से वह अलग कैसे हो सकती थी? इसलिए सबका साथ, सबका विकासनारे के बावजूद उसकी विचारधारा एक-पक्षीय है. आज भी भाजपा का जो अखिल भारतीय रूप नजर आता है, वह भीतर से काफी उथला है. कांग्रेस की अखिल भारतीयता के मुकाबले वह काफी कमजोर है. देश में भाजपा-विरोधी विचार की बहुत बड़ी जगह कायम है.

चूंकि कांग्रेस की जड़ें बहुत गहरी और बहुलतावादी है, इसलिए अनुकूल हवा-पानी मिलते ही वे तेजी से उगेंगी. उसके पनपते ही भाजपा सिमटने लगेगी. कांग्रेस आज जितनी भी गयी-बीती लगती हो, भाजपा के लिएअसली खतरा वही है, कोई क्षेत्रीय दल नहीं. यह बात मोदी और उनकी टीम अच्छी तरह जानती है. इसलिए कांग्रेस को जनता की नजरों में लगातार गिराये रखना उनकी रणनीति है.

एक वजह और है जिसकी तरफ कुछ राजनैतिक विश्लेषक इशारा करते रहे हैं. कांग्रेस आज काफी कमजोर हाल में है. उसके अध्यक्ष राहुल गांधी कम से कम वक्तृता में नरेन्द्र मोदी के सामने नहीं टिकते. नरेंद्र मोदी को यह रणनीतिक लाभ मिल रहा है कि वे जनता को लुभाने, लच्छेदार भाषण देने और अपनी छवि साफ-सुथरी दिखाने में अव्वल हैं. इस आधार पर राहुल कमजोर प्रतिद्वंद्वी ठहरते हैं. कमजोर पहलवान को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी बताना मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करना माना जाता है. मोदी जी कांग्रेस क्या मुकाबला करेगी’, ‘विपक्ष के पास नेता ही नहीं’, ‘कांग्रेस तो आई सी यू में है’, जैसी बातें कहके यही मनोवैज्ञानिक बढ़त लेना चाहते हैं. वे क्षेत्रीय दलों को भी आगाह करते हैं कि कांग्रेस गठबंधन में शामिल दलों का सम्मान नहीं करती, ताकि उनमें कांग्रेस के प्रति अविश्वास बना रहे.

तीसरा कारण यह है कि अजेयमाने जा रहे नरेंद्र मोदी अपने शासन के पांचवें साल में काफी कमजोर जमीन पर खड़े हैं. उनकी सरकार की असफलताओं और विरोधियों की सूची बड़ी है. पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं. पहले से बढ़ी महंगाई में इसने आग लगा दी हैं. दलितों में बहुत आक्रोश है. तमाम घोषणाओं के बावजूद किसान संकट में हैं. नोटबन्दी से बढ़ी बेरोजगारी विकराल रूप धारण कर चुकी है. जीएसटी अच्छा कदम होने के बावजूद हड़बड़ी में लागू किये जाने से व्यापारी परेशान हैं. राफेल सौदा कई सवाल खड़े कर रहा है. बैंकों के डूबे धन का मुद्दा भाजपा के भी खिलाफ जा रहा है. गोरक्षा के नाम पर लिंचिंग’, विरोधी विचार को दबाने और विभिन्न संवैधानिक संस्थानों में सरकारी हस्तक्षेप से काफी नाराजगियां हैं. इसके अलावा मोदी  2014 में किये गये अपने कई बड़े वादे पूरे करने में असफल रहे हैं.

इन सब ज्वलंत मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए भी भाजपा के लिए विपक्ष या कांग्रेस-निंदा जरूरी हो गयी है. हालांकि विपक्ष एकजुट होकर इन समस्याओं को बड़ा मुद्दा बनाने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है लेकिन भाजपा नेतृत्व की रणनीति यह है कि ये मुद्दे जनता में चर्चा का विषय बन ही नहीं पाएं. इसलिए मोदी कांग्रेस के प्रति और भी आक्रामक हो गये हैं. कभी वे कांग्रेस के नामदारसे पूछते हैं कि कांग्रेस केवल मुसलमानों की पार्टी है क्या? और क्या वह मुस्लिम महिलाओं की भी पार्टी है?’ कभी वे कांग्रेस को बेलगाड़ीबताते हैं इसलिए कि उसके सभी बड़े नेता बेल पर हैं.फिर कहते हैं कि कांग्रेस तो आईसीयू में पड़ी है और बचने के लिए दूसरी पार्टियों का सहारा लेना चाहती है.

देश के राजनैतिक पटल पर फिलहाल मोदी छाये हुए हैं. उनकी वाक्‍-पटुता और नाटकीयता उनकी असफलताओं को ढके हुए है. प्रकट रूप में उनकी जोड़ का कोई विपक्षी नेता दिखाई नहीं देता. भाजपा यह धारणा बनाये रखना चाहती है कि मोदी का कोई विकल्प नहीं. लेकिन इस सच्चाई को भी वह जानते हैं कि भाजपा 2019 में हारे या पचास साल बाद’, हारेगी वह कांग्रेस से ही. इसलिए कांग्रेस को लगातार निशाने पर रखना है.

एक बात पर शायद उनका ध्यान नहीं है. कांग्रेस पर दिन-रात हमला करके, उसके नेताओं की खिल्ली उड़ा कर, उसे इतिहास से मिटा देने की बात करके असल में वे कांग्रेस को लगातार चर्चा में बनाये हुए हैं. कांग्रेसियों से कहीं ज्यादा कांग्रेस को मोदी और उनकी टीम जिलाए हुए हैं. 
(Super Idea, October, 2018)

    

1 comment:

दीपा said...

Wonderful sir