Saturday, July 06, 2019

ज़ायरा और नुसरत यानी चुनौती और उम्मीद



ज़ायरा वसीम और नुसरत ज़हाँ, ये दो नाम पिछले कुछ दिन से हर तरह के मीडिया में छाए हुए हैं. टीवी और सोशल मीडिया में सबसे ज़्यादा. इन्हें खूब ट्रोल किया जा रहा है. गालियाँ पड़ रही हैं तो समर्थन करने वाले भी हैं. नुसरत ज़हाँ के खिलाफ दार-उल-उलूम, देवबन्द से फतवा भी ज़ारी हुआ है कि उसने बहुत इस्लाम विरोधी काम किया है.

ज़ायरा वसीम को आमिर खान की मशहूर फिल्म दंगलसे ख्याति मिली थी. अपने शानदार अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. एक और फिल्मक्रिकेट सुपरस्टारमें उन्होंने बुर्का पहनकर गाना गाने वाली लड़की की भूमिका निभाई. शीघ्र ही उनकी एक और फिल्म स्काई इज पिंकआने वाली है.
नुसरत जहाँ बंगाली फिल्मों का पहले से सुपरिचित नाम है. राष्ट्रीय स्तर पर वे हाल ही में बंगाल से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर लोक सभा चुनाव जीतने के बाद चर्चा में आई. कुछ वर्ष पहले एक आपराधिक वारदात के सिलसिले में भी उनका नाम आया था, हालांकि ज़ल्दी ही उससे मुक्त हो गई थीं.

मीडिया में दोनों के सुर्खियाँ बनने के कारण लेकिन दूसरे ही हैं. ज़ायरा वसीम इसलिए कि पिछले दिनों बिल्कुल अचानक ही उन्होंने फिल्मों में अब काम नहीं करने की घोषणा कर दी, क्योंकि “इसने मुझे अज्ञानता के रास्ते पर धकेल दिया. मैं ईमान के रास्ते से भटक गई थी. चूँकि मैं अपने ईमान के खिलाफ़ काम कर रही थी इसलिए अपने धर्म के साथ मेरा रिश्ता ख़तरे में पड़ गया था. मैं ऐसा नहीं करना चाहती थी.’’ हालांकि इस पोस्ट में वे यह भी स्वीकार करती हैं कि फिल्मों ने मुझे लोकप्रियता दी, सम्मान व प्यार दिया. नई लड़कियों के लिए मैं सफलता का रोल मॉडल बन गई.
उधर, नुसरत जहाँ को लेकर विवाद कारण यह है कि उन्होंने एक गैर-मुसलमान, जैन व्यवसायी से शादी की है और 25 जून को लोक सभा की सदस्यता की शपथ ग्रहण करने गले में मंगलसूत्र पहने और बिंदी व सिंदूर लगाए पहुँच गईं. कट्टरपंथियों ने इसे इस्लाम-विरुद्ध ठहरा दिया. इस्लाम का एक बड़ा और महत्त्वपूर्ण स्कूल माने जाने वाले दार-उल-उलूम के एक मौलाना ने फतवा दे दिया कि इस्लाम के मुताबिक मुसलमान सिर्फ मुसलमान से शादी कर सकता है. नुसरत ने धर्म-विरुद्ध काम किया है.हिंदू महिला की तरह उनके शृंगार करने को घोर गैर-इस्लामी ठहराया जा रहा है. सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ खूब ज़हर उगला जा रहा है.
ज़ायरा की फेसबुक पोस्ट ने सोशल मीडिया और टीवी के पर्दे पर भूचाल-सा ला दिया. तीन तरह की प्रतिक्रियाएँ हुईं. मुस्लिम मौलानाओं और कट्टरपंथियों ने उनके फिल्में छोड़ने का स्वागत किया, वहीं स्वतंत्रचेता समाज ने उनके इस बयान की निंदा की या मखौल उड़ाया. कुछ राजनेताओं समेत कई लोगों की राय यह भी है कि यह उनका निजी फैसला  है जिस पर टीका-टिप्पणी करना गलत होगा.
सबसे ज़्यादा बवाल ज़ायरा की इस टिप्पणी पर मचा हुआ है कि वे फिल्मों में काम करने को अब अचानक इस्लाम विरोधी बता रही हैं जबकि मुस्लिम समुदाय के बहुत सारे लोगों ने फिल्मी दुनिया में काम किया और खूब नाम कमाया. आज भी मुस्लिम समुदाय के लोकप्रिय अभिनेता-अभिनेत्रियों, गायकों, नर्तक-नर्तकियों, निर्माता-निर्देशकों, आदि की लम्बी सूची है जो भारतीय फिल्मों को हर तरह से समृद्ध कर रहे हैं. पूछ जा रहा है कि क्या ज़ायरा के मुताबिक उन सबने इस्लाम-विरोधी काम किया?
आशंका यह भी व्यक्त की जा रही है कि कहीं ज़ायरा ने कट्टरपंथियों के भय से तो यह कदम नहीं उठाया. दंगलफिल्म में बाल कटवाने, छोटे कपड़े पहनने और लड़कों से कुश्ती लड़ने के लिए उन्हें धमकी भी मिली थी. कुछ समय पहले जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मिलने पर भी उन्हें कट्टरपंथियों ने धमाकया था. तब उन्होंने माफी माँग ली थी. क्या यही सब उनके फैसले का कारण है? कुछ कोनों से यह सुर भी सुना गया है कि ज़ायरा का निर्णय अपनी आने आली फिल्म स्काई इज पिंकके लिए एक पब्लिसिटी स्टंट है.
सच क्या है, पता नहीं. ज़ायरा अपना फैसला सुनाने के बाद मौन हैं लेकिन नुसरत ज़हाँ अपने खिलाफ फतवे और सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग से कतई परेशान नहीं हैं. बल्कि, वे बड़े साहस से अपने फैसले को सही ठहराते हुए कुछ तार्किक बातें कह रही हैं.
नुसरत का यह कहना महत्त्वपूर्ण है कि मैं समावेशी भारत की प्रतिनिधि हूं, ऐसे भारत की जो जाति-धर्म-नस्ल की बेड़ियों से परे है. मैं सभी धर्मों की इज़्ज़त करती हूँ और अब भी मुसलमान हूँ. किसी को भी इस पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए कि मैं क्या पहनती हूँ. आस्था, पहनावे से परे है. एक ट्वीट में नुसरत ने यह भी लिखा कि मैं कट्टरपंथियों की टिप्पणियों या फतवे पर कतई ध्यान नहीं दूँगी क्योंकि उससे सिर्फ नफरत और हिंसा ही फैलती है.
ज़ायरा वसीम और नुसरत जहाँ के प्रकरण बताते हैं कि भारत जैसा बहु-धार्मिक, बहु-सांस्कृतिक समाज आज बढ़ती धार्मिक कट्टरता के कारण कहाँ पहुँच गया है. हमारी साझी विरासत को किस तरह चुनौती मिल रही है. बीते हजारों वर्षों में हमारे देश में कई धार्मिकताओं और संस्कृतियों ने परस्पर घुल-मिलकर जो  मिश्रित संस्कृति रची वह इंद्रधनुषी रंगत वाली है. आज के हमारे रीति-रिवाजों, पहनावों, खान-पान और गीत-संगीत-कला में यह तलाशना मुश्किल काम है कि किस समाज ने क्या-कैसे प्रभाव दूसरों से ग्रहण किए और अपने बना लिए.
मंगलसूत्र-बिंदी-सिंदूर तो बहुत सामान्य बात है, कई मुस्लिम परिवारों में नए शिशु के आगमन की प्रतीक्षा में गाए जाने वाले इस सोहर को क्या कहेंगे- अल्लाह मियाँ, हमरे भैया को दीयो नंदलाल’? और, राम- कृष्ण, आदि अवतारों की शान में मुस्लिम शायरों ने जो अद्वितीय रचनाएँ कीं, सिंदूर लगाने भर से भड़क जाने वाले कट्टरपंथी उनको क्या कहेंगे?
ज़ायरा वसीम जैसी प्रतिभाशाली अदाकारा का धर्म और ईमान की रक्षा के नाम पर फिल्मों को अलविदा कहना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है, भले ही यह निजी फैसला लेने के लिए वे स्वतंत्र हैं. कट्ट्रपंथियों के दवाब में यह फैसला लिया गया है तो घोर चिंताजनक है.
ज़ायरा का फैसला मुस्लिम समाज की उन तमाम प्रतिभाशाली लड़कियों की निराशा का कारण भी बनेगा जो धर्म के नाम पर कट्टरपंथ की जकड़न से मुक्त होकर विभिन्न कला-क्षेत्रों में कदम रखने की कोशिश कर रही हैं. इसीलिए प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट किया कि 'बॉलीवुड की प्रतिभाशाली अभिनेत्री ज़ायरा वसीम अब एक्टिंग करियर छोड़ना चाहती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके करियर ने अल्लाह में उनके विश्वास को ख़त्म कर दिया है. क्या अजीब फ़ैसला है. मुस्लिम समुदाय की कई प्रतिभाएँ इसी तरह बुर्के के अंधेरे में जीने को मजबूर हैं.' हालांकि तस्लीमा के विपरीत प्रगतिशील कहलाने वाले कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों, अदाकारों ने इस पर आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साधे रखी है.
फिल्मों में काम करना बंद करने के ज़ायरा के ऐलान की हताशा के विपरीत नुसरत का कट्टरपंथियों को दो-टूक ज़वाब देना यह आश्वस्ति देता है कि हम अँधेरे की ओर लौटने से इनकार करते हैं. 
(नभाटा, मुम्बई, 07 जुलाई, 2019)


  


  

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