Friday, July 05, 2019

पानी के आपातकाल का दौर सामने है



सोशल साइटों पर इन दिनों वाइरल एक वीडियो दिखाता है कि नदियों की प्रतीक एक महिला बगल में घड़ा दबाए घूम रही है. वह आम जनता से लेकर दफ्तरों में बैठे अफसरों पर गंदला, कीचड़युक्त पानी उड़ेल रही है. यह नदियों के उस आक्रोश की अभिव्यक्ति है जो हमारे उनके साथ किए व्यवहार से उपजा है.

नदियों, झीलों, तालाबों और भू-जल समेत सभी प्राकृतिक जल-स्रोतों का हमने जो हाल विकास के नाम पर करना जारी रखा है, उसी का नतीज़ा है कि हम जल-संकट के सबसे भीषण दौर से गुज़र रहे हैं. कुछ शहरों का यह हाल हो गया है कि कई बड़ी कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने को कह दिया है क्योंकि वे दफ्तरों में पानी उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं.

कोई राज्य, कोई शहर-कस्बा ऐसा नहीं है जहाँ पानी का भारी संकट न हो. भू-जल का इतना अधिक दोहन कर लिया गया है कि उसका स्तर खतरनाक सीमा तक नीचे चला गया है. इसके बावज़ूद घर-घर सबमर्सिबल पम्प लगाना जारी है. जल संकट के प्रति न जनता जागरूक है न सरकारें. वर्षा-जल संचयन और भू-जल रिचार्जिंग के सरकारी शोर के बावज़ूद धरती की कोख सूखती जा रही है.

नीति आयोग ने पिछले वर्ष चेतावनी दी थी कि देश भीषण जल-संकट के मुहाने पर खड़ा है. सन 2030 तक करीब 40 फीसदी आबादी पीने के पानी से वंचित हो जाएगी. एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस साल में करीब 30 प्रतिशत नदियाँ सूख गई हैं. अकेले उत्तर प्रदेश में सरकारी आंकड़े ही कहते हैं कि पिछले पाँच साल में 77 हज़ार कुंए और 1045 तालाब कम हो गये हैं. कम हुए माने पाट दिए गए.

आंकड़े और हालात की भयावहता सबको पता है, ज़िम्मेदार लोगों को अवश्य ही लेकिन जो किया जा रहा है वह कागज़ों पर. कई वर्ष से रेनवाटर हार्वेस्टिंगहो रही है लेकिन नीति आयोग ही का मानना है कि इसके वास्तविक परिणाम निराशाजनक हैं. पानी ज़मीन के नीचे जा नहीं रहा, बजट अवश्य कहीं भर रहा है.

मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी शुरू होते ही एक नया जल शक्ति मंत्रालय बनाया है और घर-घर नल से जल कार्यक्रम घोषित किया है. पहल सामयिक है लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि नल से सभी घरों तक जल तब पहुँचेगा जब धरती में पानी बचेगा. पहले पानी बचाने के लिए आपातकालीन उपाय होने चाहिए. उसके लिए क्या किया जा रहा है?

यही देख लीजिए कि धरती से पानी के दोहन पर कोई रोक-टोक नहीं है. जिसके पास थोड़ा भी पैसा है वह बोरिंग करवा ले रहा है. घर-घर सब-मर्सिबल पम्प हैं. सभी धरती के भीतर से मुफ्त पानी खींच रहे हैं. बिजली का स्विच दबाया और खूब पानी बहाया. शहरों में बोरिंग करवा कर पानी बेचने का बड़ा धन्धा फल-फूल रहा है. गरीबों की ही मरन है. वे जहाँ-तहाँ से गंदा पानी बटोर कर काम चला रहे हैं. गंदे पानी से होने वाली बीमारियों की लम्बी शृंखला है.

निजी बोरिंग पर तत्काल प्रभाव से रोक लग जानी चाहिए. घर-घर लगे सब-मर्सिबल बंद कराइए या उन पर भारी जल-दोहन कर लगाया जाना चाहिए. साथ ही उनके लिए वाटर-रिचार्जिंग संयंत्र लगाना अनिवार्य हो. जहाँ जल-संस्थानों के पानी की आपूर्ति नहीं हैवहीं सरकारी देख-रेख में पम्प लगाए जा सकते हैं. जल-संस्थान आज तक पानी के मीटर ही नहीं लगा सका. पानी सबसे महंगी वस्तु बने क्योंकि अब वह दुर्लभ है. उसका मुफ्तिया इस्तेमाल आपराधिक और दण्डनीय बनाना होगा.


अगर ऐसे कदम नहीं उठाए जाते तो सिर्फ नया मंत्रालय बनाने और नारों से काम नहीं चलने वाला.    
     

(सिटी तमाशा, नभाटा, 06 जुलाई, 2019)
    


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