Friday, July 17, 2020

नम्बरों की बारिश और हिमांशु की दिग्विजय


बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम आ गए हैं. 90-95 प्रतिशत अंक पाने की चर्चा अब पुरानी हो चुकी. सौ में सौ नम्बर पा रहे हैं बच्चे. लखनऊ की दिव्यांशी जैन ने इण्टर में अपने छहों विषयों में सौ में सौ नम्बर पाए. कुल छह सौ में पूरे छह सौ नम्बर. वाह! कोई भी कहेगा और सुखद आश्चर्य से भर उठेगा. एकाधिक विषयों में सौ में सौ पाने वाले तो बहुत से बच्चे हैं. परीक्षा में अच्छे अंक पाना यदि प्रतिभा सम्पन्न होने की निशानी है तो कहना होगा कि पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों का मस्तिष्क विकसित हो रहा है और उसी अनुपात में उनकी प्रतिभा भी निखर रही है. क्या आने वाले वर्षों में सौ में से सौ से अधिक अंक पाना मुमकिन होगा?

अंकों की इसी बारिश का परिणाम है कि 90-95 प्रतिशत अंक पाने वाले बच्चे उदास हैं. वे अपने परिणाम से संतुष्ट नहीं है. स्वाभाविक है. अगर सौ में सौ मिल रहे हैं तो 99 अंक भी असंतुष्टि का कारण बनेंगे. मेरा एक नम्बर भी कैसे कटा! अब अगर 95 नम्बर पाने वाले उदास बैठे हैं तो क्या गलत!

खैर, यहां हम अंकों की इस अजूबी होड़ पर अधिक चर्चा नहीं करने जा रहे. नम्बरों का कीर्तिमान बनाने वाले बच्चों के बारे में पढ़ते हुए हमारी दृष्टि जिस समाचार पर देर तक टिकी रह गई, यहां उसकी चर्चा करते हुए हमारा हृदय गदगद है. सौ प्रतिशत नम्बर पाने वाली दिव्यांशी को अवश्य सराहिए लेकिन सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा में पास होने वाले हिमांशु गुप्ता नाम के बालक को इस कोरोना काल में भी गले अवश्य लगा लेना चाहिए. यहां नम्बर का नहीं उस साहस का कमाल है जो बिरले ही बच्चों में होता है.

जन्म से ही हिमांशु के कुहनी के नीचे दोनों हाथ नहीं हैं. समाचार बताता है कि लखनऊ के एक ऑटो चालक कमलेश गुप्ता और गृहिणी सोनी गुप्ता के ऐसे बच्चे को किसी स्कूल ने भर्ती ही नहीं किया. जिसके दोनों हाथ ही नहीं वह लिखे कैसे? लेकिन हिमांशु ने पढ़ने-लिखने की अद्भुत संकल्प-शक्ति विकसित की. राजाजीपुरम के सेंट अंजनी पब्लिक स्कूल वालों ने जब देखा कि हिमांशु अपनी कुहनियों से कलम पकड़ कर आराम से लिख लेता है तो उसे उसकी क्षमतानुसार चौथी कक्षा में भर्ती कर लिया. उसके शिक्षक ही नहीं, सहपाठी भी यह देखकर चमत्कृत होते रहे कि कुहनियों से वह इतने सुंदर अक्षर लिखता है जितना पूरे हाथ वाले कोशिश करके भी नहीं लिख सकते.

खैर, गदगद होने वाली बात यह है कि इस वर्ष दसवीं की बोर्ड परीक्षा में उसे नियमानुसार एक लेखकदिया गया. हिमांशु ने विनम्रता से लेखक लेने से मना कर दिया. उसने सीबीएसई की दसवी की पूरी परीक्षा स्वयं लिखी- अपनी कुहनियों से कलम पकड़कर. 52 प्रतिशत अंक पाकर वह पास हो गया है. उसका घर खुशियों के आंसुओं से नहा गया. उसका स्कूल और अध्यापक भी अत्यंत प्रसन्न हैं. यह खबर पढ़कर हम भी हिमांशु पर न्योछावर है. माफ करना दिव्यांशी, मुझे तुम्हारे सौ फीसदी अंकों से कहीं बड़ी उपलब्धि हिमांशु की लगती है. उसके 52 प्रतिशत नम्बर वास्तव में शताधिक हैं. उन अंकों में उसका जीवट है, उसकी अदम्य संकल्प शक्ति है. उसने जग जीता है.

हर साल विभिन्न परीक्षाओं में ऐसे बहुत से बच्चे बैठते हैं जिनके साथ विभिन्न कारणों से प्रकृति या स्वास्थ्य न्याय नहीं कर पाता. कहीं से अधूरे रह गए वे बच्चे अपनी इच्छा शक्ति से इतने पूर्ण बन जाते हैं कि पूर्णता दिव्यांग लगने लगती है. इन बच्चों के नम्बर और तस्वीरें मीडिया में नहीं दिखते या कम दिखते हैं.
आइए, उन सबको सलाम भेजें.
   
(सिटी तमाशा, नभाटा, 18 जुलाई, 2020)

1 comment:

सुधीर चन्द्र जोशी 'पथिक' said...

छह सौ में छह सौ अंक प्राप्त करना निश्चित ही उतना प्रभावित नहीं करता जितना कि इस बच्चे के हाई स्कूल में प्राप्त बावन प्रतिशत अंक। यह अदम्य साहस और अद्भुत आत्मविश्वास की कहानी है। निश्चितरूप से आपकी दृष्टि वहाँ पहुँचती है, जहाँ आम लेखक नहीं देख पाता। इस लेख के लिए साधुवाद और बधाई दोनों !