Friday, July 10, 2020

कारागार अधिनियम, जेल और सजा



उत्तर प्रदेश सरकार ने जेल में प्रतिबंधित वस्तुओं के उपयोग पर निर्धारित सजा बढ़ा दी है. उदाहरण के लिए, मोबाइल फोन जेल में प्रतिबंधित है. पहले उसके उपयोग पर छह महीने की सजा और दो सौ रुपए दण्ड का प्रावधान था. अब इसे बढ़ाकर तीन साल की सजा और 25 हजार रु दण्ड कर दिया गया है. अच्छी बात है. जेल में प्रतिबंधित चीजों का इस्तेमाल क्यों हो? प्रतिबंध इसलिए थोड़ी लगाया गया है कि उनका खुलेआम उपयोग हो!

वैसे, यह सूचना फिलहाल उपलब्ध नहीं है कि पिछले साल या पहले के सालों में जेल में मोबाइल का उपयोग करने के कितने मामले पकड़े गए और कितना जुर्माना वसूला गया. इसके लिए सूचना के अधिकार के अंतर्गत आवेदन करना पड़ेगा. यदि सूचना गोपनीयता कानून के तहत नहीं आई तो महीने-छह महीने में जानकारी मिल जानी चाहिए. तब तक हम इसके दूसरे पहलू पर चर्चा करते हैं.

यह तो सभी जानते हैं कि जेल में मोबाइल क्या, प्रत्येक प्रतिबंधित वस्तु का खूब इस्तेमाल होता है. चलाने वाले जेल से गिरोह चलाते हैं, धमकी देकर रंगदारी वसूलते हैं, चोरी-डकैती और हत्या की सुपारी तक लेते-देते हैं. आए दिन अपराध की खबरों में हम पढ़ते हैं कि फलाने अपराधी ने जेल से अपने दुश्मन पर हमला करवाया. फलाने ने ठेके के लिए इंजिनियर को धमकाया, आदि-आदि. हम समझते हैं कि यह सब मोबाइल के इस्तेमाल से ही होता होगा. अक्सर जेल में छापे पड़ते हैं और दर्जनों मोबाइल फोन पकड़े जाते हैं. वे फिर पैदा हो जाते हैं.

जेल में शराब, चरस से लेकर हर नशीली वस्तु पहुंच जाती है. पहुंचने को कट्टा और चाकू भी जाते हैं क्योंकि जेल की तंग कोठरियों के भीतर भी दादागीरी चलती है. एक से अधिक दादा हो गए तो तय करना पड़ता है कि दादा कौन रहेगा. नवागंतुक को भी अपना शागिर्द बनाना होता है. जेल की दुनिया में वह सब खुल्लमखुल्ला चलता है जो बाहर की दुनिया में चोरी-छुपे होता है.

अपराध की दुनिया का सिद्ध मंत्र है कि कुछ बड़ा करना है तो पहले खुद अंदर हो जाओ. अंदर से काम बखूबी अंजाम दिया जा सकता है और बेदाग भी रहा जाता है. पहले हम अंदरको जेल ही समझते थे. बाद में समझ आई कि अंदरवास्तव में जेल होने के बावजूद जेल नहीं होता. इसमें अपराधी स्वयं अंदरजाना तय करता है. जब चीजें खुद तय की जाती हैं तो अर्थ बदल जाते हैं. खैर, अंदर इसलिए जाते हैं कि वहां सारे प्रबंध अंदर हो जाते हैं.

नई व्यवस्था में यह भी है कि यदि जेल से मोबाइल का इस्तेमाल करके अपराध किया गया तो तीन साल की सजा और पचास हजार रु का जुर्माना अलग से लगेगा. पता नहीं पुलिस अधिनियम में अपराधियों से मिली भगत और मुखबिरी की सजा निर्धारित है या नहीं, लेकिन कारागार अधिनियम में यह पुख्ता व्यवस्था है कि यदि कोई जेलकर्मी कैदियों को प्रतिबंधित चीजें उपलब्ध कराता पकड़ा गया तो सजा मिलेगी और बराबर मिलेगी. बस, वह पकड़ में आना चाहिए.
कानून की लाज इसी में होती है कि यदा-कदा लोग पकड़े भी जाएं. जैसे, कभी-कभार भ्रष्टाचारी पकड़ लिए जाते हैं, वैसे ही जेल कर्मचारी भी पकड़े जाते हैं. 

नब्बे के दशक में हमारे एक पत्रकार मित्र ने लखनऊ आदर्श जेल में जाकर एक शातिर अपराधी से पिस्तौल खरीदने का स्टिंगकिया था. बाद में एक जेल अधिकारी ने हंसते हुए कहा था कि इसमें स्टिंग करने जैसी क्या बात थी!

(सिटी तमाशा, नभाटा, 11 जुलाई, 2020)
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