Friday, July 31, 2020

बदली हुई दुनिया में धड़कता जीवन

कोरोना बराबर हमारे बीच बराबर बना हुआ है, बल्कि अपना आतंक फैलाता जा रहा है। एक डर सतत बना हुआ है। अब हुआ कि तब हुआ! क्या खाएं-पीएं कि बचे रहें? कब आ रही वैक्सीन? कौन-सा काढ़ा और विटामिन? ये गिलोय और वह होम्योपैथी दवा। मौत कभी भी एक चीते की तरह बिना आहट दबोच सकती है और यहां कोरोना से बचने के हजार जतन!

क्या ही खूब बात है कि जीवन के राग-रंग और संघर्ष हर भय पर विजय पाते आते हैं। पिछले चार महीने से लगभग घर में कैद कोरोना के डर के सामने जीवन का खेला देख रहे हैं। आर्थिक कारोबार तो झटका खाकर जैसे-तैसे चल पड़ा लेकिन जीवन का कारोबार क्या-क्या नए रंग-रूप लेकर चलता रहा। वह बंद नहीं हुआ, यह देखना आह्लादकारी है।


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बड़े ठाट-बाट और शान से हरियाली तीज मनी। किसी हॉल में दो-तीन घण्टे दो-चार कार्यक्रम चलते। यहां अनगिन मंचों पर दिन भर और अगले दिन चौथ को भी तीज मनती रही। कौई मनाही तो है नहीं। जब मन हुआ
, ऑनलाइन निमंत्रण भेजा और उत्सव मना लिया। और देखिए, भारतेंदु नाटक अकादमी ने तीन दिन का डिजिटल नाट्योत्सव कर डाला। छोटे-छोटे तीन नाटक तीन दिन तक अपने सोशल मीडिया मंच पर खेले। संगीत अकादमी ने नौटंकी कलाकारों और विशेषज्ञों के साथ परिचर्चा कर डाली, अपने सोशल पेज पर।

लोग कहानियां सुना रहे हैं, कहानियों का रोचक वाचन कर रहे हैं। कविता तो सोशल मीडिया पर सावन-भादौ की तरह बरस रही है। इतने कविता पाठ, इतने कवियों को, इतनी देर तक कभी नहीं सुना जितना पिछले चार महीने में सुन लिया। और, कोई बंदिश नहीं कि उसी समय सुनें जब वे लाइवहों। बाद में पेज पर जाकर सुन सकते हैं। हां, संवाद करना है तो उसी समय उपस्थित रहना होगा।

प्रेमचंद जयंती पर जितने कार्यक्रम इस बार सोशल मीडिया में हुए, उतने शायद ही कभी सार्वजनिक मंचों पर होते हों। 31 जुलाई से एक हफ्ते पहले से प्रेमचंद की कहानियां बच्चों से लेकर बड़ों तक कई-कई संस्थाओं के पेजों पर रोज पढ़ी गई। इन पाठों, चर्चाओं, वेबिनारों में साहित्यकार, आलोचक, अध्यापक से लेकर छोटे बच्चे तक शामिल रहे। वेबिनार शब्द इतना लोकप्रिय हो गया है कि सर्च इंजनों पर कोरोना शीघ्र ही पीछे छूट जाने वाला है। छूटे, बहुत हुआ!

अच्छा लिखने-पढ़ने-समझने वाले बहुत से लोग जो मंचों पर बोलने में शर्माते हैं या जिन्हें कोई बुलाता नहीं। वे डिजिटल मंच पर खूब धड़ल्ले से बोल रहे हैं और अच्छा बोल रहे हैं। किसी एक गीत या गेय कविता पर दस-पंद्रह घरों में इतनी ही महिलाओं का नृत्य एक साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म ही दिखा सकता है। बिना प्रयास मंच, सज्जा और पात्र बदलते चले गए! ऐसा एक बहुत सुंदर कार्यक्रम महिला डॉक्टरों ने अपनी-अपनी छतों से पेश किया! संगीत की कक्षाएं चल रही हैं, नृत्य की कार्यशालाएं हो रही हैं, प्रतियोगिताएं हो रही हैं और पुरस्कार बट रहे हैं।   

इस बदली दुनिया के नए चलन के कष्ट कम नहीं. एक मित्र की पोस्ट से पता चला कि एक किसान को अपनी गाय बेचनी पड़ी क्योंकि उसके बेटे को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए स्मार्ट फोन चाहिए था. कई घरों में स्मार्ट फोन नहीं हैं, वे क्या करें? कुछ माता-पिता अपना फोन बच्चों के लिए घर छोड़कर जा रहे हैं ताकि वे ऑनलाइन पढ़ या खेल सकें। कोरोना-काल में विश्व बदल गया है लेकिन गरीबों-वंचितों की दुनिया शायद ही बदले। यह हम लॉकडाउन के दौरान कामगारों की पीड़ादायक घर-वापसी में देख ही चुके हैं।

(सिटी तमाशा, 01 अगस्त, 2020)           

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